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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ननीय व्यक्तियों के पास जिसकी पहुंच अनायास होती है, तमायंगृह्यं निगृहीतधेनु: - रघु० २।३३, 2. आदरणीय, भद्र, बेशः वह देश जहाँ आर्य लोग बसे हुए हैं, पुत्रः 1. सम्माननीय व्यक्ति का बेटा 2. आध्यात्मिक गुरु का पुत्र 3. बड़े भाई के पुत्र का सम्मान सूचक पद, पत्नी का पति के लिए तथा सेनापति का राजा के लिए सम्मानसूचक पद 4. श्वसुर का पुत्र अर्थात् पति ( प्रत्येक नाटक में, बहुधा संबोधन के रूप में, अन्तिम दो अर्थों के लिए प्रयुक्त), प्राय ( वि० ) 1. जहाँ आर्य लोग बसे हों 2. जहाँ प्रतिष्ठित व्यक्ति रहते हों, मिश्र ( वि० ) आदरणीय, योग्य, पूज्य ( -- श्रः ) सज्जनपुरुष, गौरवशाली पुरुष, ( ब० व० ) 1. योग्य और आदरणीय व्यक्ति, सभ्य या सम्माननीय व्यक्ति --- आर्यमिश्रान् विज्ञापयामि – विक्रम ० १, 2. श्रद्धेय, मान्यवर (आदरयुक्त संबोधन ) - नन्वार्यमिश्रः प्रथममेव आज्ञप्तम् -- श० १, लिगिन् (पुं० ) पाखंडी -वृत्त (वि०) सदाचारी, भद्र – रघु० १४/५५ - वेश ( वि०) अच्छी वेशभूषा में, आदरणीय वेश धारण किये हुए, सत्यम् अत्युत्कृष्ट और अलौकिक सत्य - हृद्य ( वि०) जो श्रेष्ठ व्यक्तियों को रुचिकर हो । आर्यकः [ आर्य + स्वार्थे कन् ] 1. सम्माननीय या आदरणीय पुरुष, 2. बाबा, दादा | आर्यका, आर्यिका [आर्या + कन् ह्रस्वः, पक्षे इत्वम् ] आदरणीय महिला | १६० आर्ष (वि० ) ( स्त्री० - र्षी ) [ ऋषेरिदम्- अण् ] 1. केवल ऋषि द्वारा प्रयुक्त, ऋषिसंबंधी, आर्ष, वैदिक ( favo 'लौकिक या श्रेण्य' ) -- आर्षः प्रयोगः, संबुद्धी शाकल्यस्येतावनार्षे- सिद्धा० 2. पवित्र, पावन: अतिमानव, र्षः विवाह का एक प्रकार, आठभेदों में से विवाह का एक भेद जिसमें दुलहिन का पिता वर महोदय से एक या दो जोड़ी गाय प्राप्त करता हैआदायार्षस्तु गोद्वयम् - याज्ञ० ११५९, मनु० ९।१९६, विवाह के आठ प्रकारों के नामों के लिए दे० 'उद्वाह', -म् पावन पाठ, वेद । आर्धम्य: [ ऋषभ + ञ्य ] बछड़ा जो पर्याप्त बड़ा हो गया हो, काम में लाया जा सके या सांड़ बनाकर छोड़ा जा सके । आर्षेय (वि.० ) ( स्त्री० घी) [ ऋषि + ढक् ] 1. ऋषि से संबंध रखने वाला 2. योग्य, महानुभाव, आदरणीय । आहंत ( वि० ) ( स्त्री० - ती ) [ अर्हत् + अण् ] जैनधर्म के सिद्धांतों से संबंध रखने वाला, तः जैन, जैनधर्म का अनुयायी, तम् जैनधर्म के सिद्धान्त । आर्हन्ती - न्त्यम् [ अर्हत् + ष्यञ्ञ, नुम् च ] योग्यता । आल:-लम् [ आ + अल् + अच् ] 1. अंडों का ढेर, मछली आदि के अंडे, 2. पीला संखिया । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ) आलगर्दः [ अलगर्द + अण् ] पनिया सांप । आलभनम् [ आ + लभ् + ल्युट् ] 1. पकड़ना, कब्जा करना 2. छूना 3. मार डालना । आलम्बः [ आ+लम्बु +घञ्ञ ] 1. आश्रय 2. थूनी, टेक ( जिसके सहारे मनुष्य खड़ा होकर विश्राम करता है) --- इह हि पततां नास्त्यालंबो न चापि निवर्तनम् - शा० ३।२, 3. सहारा, रक्षा -- तवालम्बादम्ब स्फुरदलघुगर्वेण सहसा - जग ० 4. आशय । आलम्बनम् [ आ + लम्ब् + ल्युट् 1. आश्रय, 2. सहारा, थूनी, टेक - कि० २०१३, सहारा देते हुए – मेघ० ४, 3. आशय, आवास 4. कारण, हेतु 5. (सा० शा० में) जिस पर रस आश्रित रहता है, वह पुरुष या वस्तु जिसके उल्लेख से रस की निष्पत्ति होती है, रस को उत्तेजित करने वाले कारण का रस से नैसर्गिक और अनिवार्य संबंध, रस की निष्पत्ति के कारण (विभाव) के दो भेद हैं- आलंबन और उद्दीपन, उदा० बीभत्स में दुर्गंधयुक्त मांस रस का आलंबन है, तथा दूसरी प्रस्तुत परिस्थितियाँ जो मांसगत कीड़े आदि की घिनौनी भावनाओं को उत्तेजित करती हैं इसके उद्दीपन हैं, दूसरे रसों के विषय में दे० सा० द० २१०-२३८ । आलम्बिन् ( वि० ) [ आ + लम्बू + णिनि ] 1. लटकता हुआ, सहारा लेता हुआ, झुकता हुआ 2. सहारा देने वाला, बनाये रखने वाला, थामने वाला 3. पहने हुए । आलम्भः-भनम् [ आ + लभ्+घञ्ञ, मुम् च, पक्षे ल्युट् ]1. पकड़ना, कब्जा करना, स्पर्श करना 2. फाड़ना 3. मार डालना (विशेषतः यज्ञ में पशु - बलि देना) अश्वा लम्भ, गवालम्भ । आलय: - यम् [ आ + ली + अच् ] 1. आवास, घर, निवास गृह- न हि दुष्टात्मनामार्या निवसन्त्यालये चिरम्रामा० -- सर्वाञ्जनस्थानकृतालयान् रामा० जो जनस्थान में रहा 2. आशय, आसन या जगह- हिमालयो नाम नगाधिराजः – कु० १, इसी प्रकार देवालयम्, विद्यालयम् आदि । आलर्क (वि० ) [ अलर्कस्येदम् - अण् ] पागल कुते से सबंध रखने वाला या उससे उत्पन्न आलक विषमिव सर्वतः प्रसृतम् - उत्तर० १ ४० । आलवण्यम् [ अलवणस्य भावः ष्यञ् ] 1. फीकापन, स्वादहीनता 2. कुरूपता । आलवालम् [ आसमन्तात् लवं जललवम् आलाति-आ + ला+क तारा० ] (वृक्ष की जड़ के चारों ओर) पानी भरने का स्थान, खाई, पूरणे नियुक्ता - श० १ - - विश्वासाय विहगानामालवालाम्बुपायिनाम् रघु० १।१५ । आलस (वि० ) ( स्त्री० - सी ) [ आलसति ईषत् व्याप्रियते -अच् ] सुस्त, काहिल, ढीला-ढाला । For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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