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आलस्य (वि० ) [ अलसस्य भावः ष्यञ ] सुस्त ढीलाढाला, काहिल - स्यम् सुस्ती, शिथिलता, स्फूर्ति का अभाव -- शक्तस्य चाभ्यनुत्साहः कर्मस्वालस्यमुच्यते --- सुश्रुत: आलस्य ( स्फूर्ति का अभाव ) ३३ व्यभिचारिभावों में से एक है- उदा० न तथा भूषयत्यङ्ग न तथा भाषते सखीम्, जृम्भते मुहुरासीना बाला गर्भभरालसा -- सा० द० १८३ । आलातम् [ अलात + अण् ] जलती हुई लकड़ी । आलानम् [ आ + ली + ल्युट् ] 1. वह स्तंभ जिससे हाथी
बाँधा जाय, बाँधे जाने वाला खंबा, रस्सा भी जिससे हाथी बाँधा जाता है- अरुन्तुदमिवालानमनिर्वाणस्य दन्तिनः रघु० १।७१, ४।६९, ८१, आलाने गृह्यते हस्तो - मृच्छ० १५०, 2. हथकड़ी, बँध 3. जंजीर, रस्सा 4. बंधना, बाँधना ।
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आलानिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ आलान + ठञ ] उस यूनी का काम देने वाली वस्तु जिसके सहारे हाथी बाँधा जाता है, आलानिकं स्थाणुमिव द्विपेन्द्रः- रघु० १४।३८ ।
आलापः [ आ + लप् + घञ ] 1. बातचीत, भाषण, समालाप - अये दक्षिणेन वृक्षवाटिकामालाप इव श्रूयते - श० १, 2. कथन, उल्लेख ।
आलापनम् [ आ + लप् + णिच् + ल्युट् ] बोलना, बातचीत
करना ।
आलाबु:-बू ( स्त्री०) घीया, पेठा कद्दू, कुम्हड़ा । दे० 'अलाबु' ।
आलावर्तम् [ आलं पर्याप्तमावर्त्यते इति - आल + आ + वृत् + णिच् + अच् ] कपड़े का बना पंखा । आलि (fro ) [ आ + अल्+इन् ] 1. निकम्मा, सुस्त 2. ईमानदार - लि: 1. विच्छू 2. मधुमक्खी, लि, लो ( स्त्री० ) 1. ( किसी स्त्री की) सहेली -निवार्यतामालि किमप्ययं वटुः - कु० ५१८३, ७।६८, अमरु २३, 2. पंक्ति, परास, अविच्छिन्न रेखा (तु० आवलि) -तोयान्तर्भास्करालीव रेजे मुनिपरम्परा - कु० ६१४९, रथ्यालि
८२, 3. रेखा, लकीर 4. पुल 5 पुलिया, बांध । आलिङ्गनम् [आ+लिङग् + ल्युट् ] परिरंभण, गले लगाना, | गवाही देना - ( स प्राप) आलिङ्गननिर्वृतिम् - रघु० १२।६५ ।
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आलिङ्गन (वि० ) [ आ + लिङ्ग । इनि | गलबाहीं देने वाला, (पुं०-गी), आलिङ्ग्यः जौ के दाने के आकार जैसा बना छोटा ढोल |
आलिञ्जरः [अलिञ्जर एव स्वार्थे अण् ] मिट्टी का बड़ा घड़ा । आलिवः स्वकः [ आलिन्द + अणु, स्वार्थे कन् च] 1. घर के सामने बना चौतरा, चबूतरा 2. सोने के लिए ऊँचा बनाया हुआ स्थान । आलिम्पनम् [ आ + लिप् + ल्युट्, मुम् च ] उत्सवों के अव
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सर पर दीवारों पर सफेदी करना, फर्श लीपना आदि; तु० 'आदीपनम्' |
आलोढम् [ आ + लिह + क्त ] बन्दूक से निशाना लगाते समय दाहिने घुटने को आगे बढ़ा कर और बायें पैर को मोड़ कर बैठना, अतिष्ठदालीढविशेषशोभिना
- रघु० ३।५२, दे० कु० ३।७० पर मल्लि० । आलु: [ आ + लु+डु ] 1. उल्लू 2. आबनूस, काला आबनूस, लु: ( स्त्री०) घड़ा, ल (नपुं०) लट्ठों को बाँध कर बनाया गया बेड़ा, धन्नई ( दो घड़ों को बाँध कर बनाई गई नौका) ।
आलुञ्चनम् [ आ + लुञ्च् + ल्युट् ] फाड़ना, टुकड़े-टुकड़े
करना ।
आलेखनम् [ आ + लिख + ल्युट् ]1. लिखना 2. चित्रण
करना 3. खुरचना, नी कूंची, कलम ।
आलेख्यम् [ आ + लिखु + ण्यत् ] 1. चित्रकारी, चित्र - इति संरम्भिणो वाणीर्बलस्यालेख्यदेवताः - शि० २।६७, रघु० ३ | १५, 2. लिखना । सम० --- लेखा बाहरी रूपरेखा, चित्रण, शेष (वि० ) चित्र को छोड़ कर जिसका और कुछ शेष न रहा हो अर्थात् मृत, मरा हुआ - आलेख्यशेषस्य पितुः – रघु० १४११५,
आलेपः- पनम् [ आ + लिप् + घटन, ल्युट् वा ] 1. तेल या उबटन आदि का मलना, लीपना, पोतना 2. लेप । आलोकः-कनम् [ आ+लोक् + घञ्ञ, युट् वा ]1. दर्शन
करना, देखना 2. दृष्टि, पहल, दर्शन - यवालोके सूक्ष्मम् श० १1९, कु० ७/२२, ४६, सुख-विक्रम ० ४१२४, 3. दृष्टि परास - आलोके ते निपतति पुरा सा बलिव्याकुला ar - मेघ० ८५, रघु० ७।५ कु० २४५, 4. प्रकाश, प्रभा, कान्ति-निरालोकं लोकं मा० ५ ३० ९ ३७, 5. भाट, विशेषत: भाट द्वारा उच्चरित स्तुति-शब्द (जैसे 'जय, आलोकय ) - ययावुदीरितालोकः
- रघु० १७/२७, २९, का० १४ ।
आलोचक (वि० ) [ आ + लोच् + ण्वुल् ] आलोचना करने वाला, देखने वाला, कम् दर्शन-शक्ति, दृष्टि का
कारण ।
आलोचनम् - ना [ आ + लोच् + ल्युट्, युच् वा ] 1. दर्शन करना, देखना, सर्वेक्षण, समीक्षा 2. विचार करना, विचार-विमर्श |
आलोडनम् - ना [ आ + लुड् + णिच् + ल्युट् ]1. बिलोना हिलाना, क्षुब्ध करना 2. मिश्रण करना । आलोल (वि० ) [ प्रा० स० ]1. कुछ कांपता हुआ, (आँखों को) घुमाता हुआ 2. हिलाया हुआ, विक्षुब्ध अमरु ३, मेघ० ६१ । आवनेयः [अवनि + ढक् ] भूमिपुत्र, मंगल ग्रह की उपाधि । आवस्य ( वि० ) [ अवन्ति + ञ्यङ] अवन्ति से आने वाला,
या संबन्ध रखने वाला, स्त्यः अवन्ती का राजा,
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