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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५९ ) आर्जुनिः [अर्जुनस्यापत्यम्-इञ] अर्जुन का पुत्र, अभिमन्यु । | आद्रकम् [आर्द्रा-वुन हरा अदरक, गीला अदरक । आर्त (वि.) [आऋक्त] 1. कष्ट प्राप्त, उपहत, आर्द्रयति (ना० धा०-पर०) गीला करना, तर करना पीड़ित, प्रायः समास में कामात, क्षुधात, तृषार्त, । -भर्तृ० २।५१ । आदि 2. बीमार, रोगी-आर्तस्य यथौषधम् - रघु० आर्ध (वि.) [अर्ध+अण] (समास के आरम्भ में ही १२२८, मनु० ४।२३६ 3. दुःखित, कष्टप्राप्त, संकट प्रयुक्त) आघा। सम-धातुक (वि.) (स्त्री०-की) ग्रस्त, अत्याचार-पीड़ित, अप्रसन्न—आर्तत्राणाय वः (व्या० में) आधी धातुओं में लागू होने वाला, शस्त्रं न प्रहर्तमनागसि-श० १।११, रघु० २।२८, - (कम्) आर्धधातुक छ: गणों से सम्बन्ध रखने ८३३१, १२।१०, ३२ । सम०--नादः,--ध्वनिः, वाली विभक्तियाँ व प्रत्यय (विप० 'सार्वधातुक') ---स्वरः दर्दभरी आवाज,-बन्धुः, साधुः दुःखियों -मासिक (वि.) (स्त्री०-की) आधे महीने रहने का मित्र। वाला। आर्तव (वि०) (स्त्री-वा,--वी) [ऋतुरस्य प्राप्त:-अण्] | आधिक (वि०) (स्त्री०- की) [अर्ध-ठक ] आधे का 1. ऋतु के अनुरूप ऋतुसम्बंधी, मौसमी-अभिभूय साझीदार, आधे से संबंध रखने वाला,-क: जो आधी विभूतिमार्तवीम् - रघु० ८।३६, कु० ४।६८, वसन्त- फसल के लिए खेत जोतता है, वैश्य स्त्री से उत्पन्न कालीन-रघु० ९।२८, 2. मासिक स्राव सम्बन्धी, सन्तान जिसका पालन-पोषण ब्राह्मण के द्वारा होता है, -: बर्ष का अनुभाग, वर्ष--बी घोड़ी-वम 1. दे० उद्धरण, 'अधिक' के नीचे । (स्त्रियों का) मासिक स्राव--नोपगच्छेत्प्रमत्तोऽपि ! आर्य (वि०) [ऋ--ण्यत् ] 1. आर्यन, या अर्य के योग्य स्त्रियमार्तवदर्शने—मनु० ४।४०, ३१४८ 2. मासिक 2. योग्य, आदरणीय, सम्माननीय, कुलीन, उच्चपदस्थ स्राव के पश्चात् गर्भाधान के लिए उपयुक्त दिन 3. - यदार्यमस्यामभिलापि मे मनः-श० ११२२, यह शब्द फूल । प्रायः नाटकोपयोगी भाषा में सम्मान सूचक विशेषण आर्तवेयी रजस्वला स्त्री। के रूप में प्रयुक्त होता है, संबोधन को आदरपूर्ण पद्धति आतिः (स्त्री०) [आ+ऋ+क्तिन्] 1. दुःख, कष्ट, व्यथा है, आर्य सम्माननीय या आदरणीय श्रीमान जी । आर्ये पीड़ा, क्षति ( शारीरिक या मानसिक)-आति न पश्यसि आदरणीय या सम्माननीय श्रीमती जी। लोगों को पुरूरवसस्तदर्थे-विक्रम० २।१६, आपन्नातिप्रशमनफला: संबोधित करने के लिए 'आर्य' शब्द के प्रयोग के सम्पदो ह्यतमानाम्-मेघ० ५३ 2. मानसिक वेदना, निम्नांकित नियम हैं--(क) वाच्यौ नटीसूत्रधारावार्यदारुण दुःख-उत्कण्ठाति-अमरु ३९, 3. बीमारी, रोग नाम्ना परस्परम् (ख) वयस्येत्युत्तमैर्वाच्यो मध्यरार्येति 4. धनुष की नोक 5. विनाश, विध्वंस । चाग्रजः (ग) (वक्तव्यो) अमात्य आयेति चेतरैः (घ) आस्विजीन (वि०)(स्त्री०-नी) [ऋत्विज तत्कर्मार्हति खज] स्वेच्छया नामभिविविध आर्येति चेतरः-सा.द. ऋत्विज के पद के उपयुक्त। ४३१, 3. अत्युत्कृष्ट, मनोहर, श्रेष्ठ,--र्यः 1. ईरान के आत्विज्यम् [ऋत्विज्+-ष्यञ्] ऋत्विज का पद, मर्यादा । लोग, हिन्दूजाति जो अनार्य, दस्यु तथा दास से भिन्न आर्य (वि.) (स्त्री०-थों) 1. किसी वस्तु या पदार्थ से है। 2. जो अपने देश के निवग तथा धर्म के प्रति निष्ठा सम्बन्ध रखने वाला 2. अर्थ सम्बन्धी, अर्थाश्रित, वान् है---कर्तव्यमाचरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन्, तिष्ठति (विप० शाब्द) आर्थी उपमा आदि । प्रकृताचारे स वा आर्य इति स्मतः । 3. पहले तीन आधिक (वि.) (स्त्री०-की) [अर्थ+ठक] 1. सार्थक 2. वर्ण (विप० शद्र) 4. सम्माननीय या आदरणीय पुरुष बुद्धिमान् 3. धनवान् 4. तथ्यपूर्ण, वास्तविक । प्रतिष्ठित व्यक्ति 5. सत्कुलोत्पन्न पुरुष 6. सच्चरित्र आई (वि.) [अर्द +रक् दीर्घश्च] 1. गीला, नमीदार, पुरुष 7. स्वामी, मालिक 8. गुरु, अध्यापक 9. मित्र सीला --तन्त्रीमा नयनसलिलै:--मेघ० ८०, ४३, 2. 10. वैश्य 11. श्वसुर (जैसा कि “आर्यपुत्र" में) 12. अशुष्क, हरा, रसीला 3. ताजा, नयाकामीवाः- बुद्धभगवान्,..र्या 1. पार्वती 2. श्वश्रु 3. आदरणीय पराध:--अमरु २, कान्तमा पराधम्-मालवि० ३। महिला 4. छन्द, दे० परिशिष्ट । सम-आवर्तः श्रेष्ठ १२, 4. मृदु, कोमल-प्रायः स्नेह, दया, तथा करुणा और उत्तम (आर्य) लोगों का आवास, विशेषतः वह जैसे शब्दों के साथ क्रमशः "खिला हुआ" "पसीजा भूमि जो पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र तक फैली हुई है हुआ" "पिघला हुआ” अर्थ प्रकट करता है-स्नेहान- तथा जिसके उत्तर में हिमालय एवं दक्षिण में विन्ध्य हवय-- दया से पिघले हुए दिल वाला,---ा छठा | पर्वत है -तु० मनु० २।२२, आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासनक्षत्र । सम०-काष्ठम् हरी लकड़ी,---पृष्ठ (वि.) मुद्राच्च पश्चिमात, तयोरेवान्तरं गिर्योः (हिमबिध्ययोः) सींचा हुआ, विश्रांत किया हुआ---आईपृष्ठाः क्रियन्तां आर्यावर्त विदुर्बधाः । १३४ भी-गद्य (वि.) 1. वाजिनः-श० १,-शाकं ताज़ा अदरक । श्रेष्ठ पुरुषों से सम्मानित, श्रेष्ठ पुरुषों का मित्र, सम्मा For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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