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अधि० अथवा तुमुनंत के साथ)-मलिनो हि यथादों । क्षर् (म्वा० पर०-क्षरति, क्षरित) (इसका प्रयोग अकर्मक रूपालोकस्य न क्षमः-याज्ञ० ३४१, सा हि रक्षण- तथा सकर्मक दोनों प्रकार से होता है) 1. बहना, विधी तयोः क्षमा-रघु० ११५, हृदयं न त्ववलंबितुं सरकना 2. भेज देना, नदी की भांति बहना, उडेलना, क्षमा:-रघु० ८।५९-गमनक्षम, निर्मूलनक्षम आदि निकालना-रघु० १३।७४, भट्टि० ९८ 3. बूंद-बूंद 4. समुपयुक्त, योग्य, उचित, उपयुक्त तन्नो यदुक्त- करके गिरना, टपकना, रिसना 4. नष्ट होना, घटना, मशिवं न हि तत्क्षमते-उत्तर० १११४, आत्मकर्म मिटना 5. व्यर्थ होना, प्रभाव न होना- यशोऽनृतेन क्षम देहं क्षात्रो धर्म इवाश्रित:---रघु०१।१३, श० क्षरति तपः क्षरति विस्मयात्-मनु० ४।२३७ ५।२६ 5. योग्य, समर्थ, अनुरूप-उपभोगक्षमे देशे 6. खिसकना, वञ्चित होना (अपा० के साथ) (प्रेर० —विक्रम० २, तपः क्षमं साधयितुं य इच्छति-श० -क्षारयति) आरोप लगाना, बदनाम करना (प्रायः
१।१८ 6. सहन योग्य, सह 7. अनुकूल, मित्रवत् । 'आ' उपसर्ग के साथ), वि---, पिघलना, घुल जाना। क्षमा [क्षम् +अ+टाप् ] 1. धैर्य, सहिष्णुता, माफी
क्षर (वि.) [क्षर+अच ] 1. पिघलने वाला 2. जंगम -क्षमा शत्रौ च मित्रे च यतीनामेव भूषणम्-हि.
3. नश्वर-क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते २, रघु० १२२, १८।९, तेजः क्षमा वा नैकान्तं
-भग० १५।१६,-रः बादल,--रन् 1. पानी कालजस्य महीपते:-शि० २६८३ 2. पृथ्वी 3. दुर्गा का
2. शरीर। विशेषण । सम-जः मंगलग्रह,-भुज-भुजः राजा। क्षरणम् [क्षर+ल्युट् ] 1. बहने, टपकने, बूंद-बूंद गिरने क्षमित (वि.) (स्त्री०–त्री), क्षमिन् (वि०) (स्त्री० और रिसने की क्रिया 2. पसीना आ जाना—अङगु
-नी) [क्षम् +तच, क्षम्+घिनण, स्त्रियाँ डीप लिक्षरणसन्नवर्तिक:---रघु० १९।१८ । च, ] धैर्यवान्, सहनशील, क्षमा करने के स्वभाव | क्षरिन् (पुं०) [क्षर+इनि ] बरसात का मौसम । वाला-कामं क्षाम्यतु यः क्षमी-शि० २।४३, याज्ञ. | क्षल (चुरा० उभ०--क्षालयति-ते, क्षालित) 1. धोना, २।२००, १११३३ ।
घो देना, पवित्र करना, साफ करना-ऋते रवेः क्षयः [क्षि+अच् ] 1. घर, निवास, आवास–यातनाश्च क्षालयितुं क्षमेत कः क्षपातमस्काण्डमलीमसं नभः
यमक्षये-मनु० ६।६१, निर्जगाम पुनस्तस्मात्क्षयाना- -शि०११३८, हि०४।६० 2. मिटा देना-(अयशः) रायणस्य ह-महा०, 2. हानि, ह्रास, छीजन, घटाव, तेषामनुग्रहेणाद्य राजन् प्रक्षालयात्मन:-महा०, वि-, पतन, न्यूनता-आयुःक्षय:--रघु० ३।६९, धनक्षये वर्धति धोकर साफ करना-रघु०-५।४४। जाठराग्निः -पंच. २११७८ इसी प्रकार चन्द्रक्षय, क्षवः क्षवयुः [क्षु+अप, अथुच वा] 1. छींक 2. खांसी । क्षयपक्ष आदि 3. विनाश, अंत, समाप्ति-निशाक्षये
क्षात्र (वि.) (स्त्री०-त्री) [क्षत्र+अण ] सैनिक याति ह्रियेव पाण्डुताम्-ऋतु. ११९, अमरु ६० जाति से संबंध रखने वाला क्षात्री धर्मः श्रित इव 4 आर्थिक क्षति--मनु० ८।४०१ 5. (मूल्य आदि
तनुं ब्रह्मघोषस्य गुप्त्यै–उत्तर० ६१९, रघु० १११३, का) गिरना 6. हटाना 7. प्रलय 8. तपेदिक 9. रोग
—त्रम् 1. क्षत्रिय जाति 2. क्षत्रिय के गुण -गीता 10. निर्गुणता, (बीजगणित में) ऋण । सम-कर
इस प्रकार बतलाती है 'शौर्य तेजो धृतिर्दाक्ष्यं युद्धे (क्षयंकर भी) (वि०) नाश या तबाही करने वाला,
चाप्यपलायनम्, दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावबर्बादी करने वाला, कालः 1. प्रलयकाल 2. अवनति
जम् --भग० १८१४३ । का समय,कालः तपेदिक की खांसी,-पक्षः कृष्णपक्ष, ! क्षान्त (भ० क००) [क्षम् +क्त ] 1. धैर्यवान्, सहनअँधेरापक्ष,-यक्तिः (स्त्री०),- योगः नाश करने का। शील, सहिष्ण 2. क्षमा किया गया,-ता पथ्वी। अवसर,-रोगः तपेदिक, राजयक्ष्मा,-वायुः प्रलयकाल शान्तिः (स्त्री०) क्षम---क्तिन् ] 1. धैर्य, सहनशीलता, की हवा,-संपद् (स्त्री०) सर्वनाश, ब दी।
। क्षमा--क्षांतिश्चेद्वचनेन किम् --भर्तृ० २।२१, भग० क्षयय [क्षि -अथ ] तपेदिक के रोगी को खांसी,
१८०४२ । तपेदिक।
क्षान्तु (वि०) [क्षम्+तुन्, वृद्धि ] धैर्यवान्, सहनशील, क्षयिन (वि०) (स्त्री०–णी) [क्षय+इनि ] 1. ह्रास- -तुः पिता।
मान, मुझने वाला-आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण क्षाम (वि०) [१+क्त ] 1. दग्ध, झुलसा हुआ 2. क्षीण, -भर्तृ० २१६०, ह्रासोन्मुख, क्षीयमाण-न चाभूत्ताविव पतला, परिक्षीण, कृश, दुवला-पतला क्षामक्षाम क्षयी-रघु० १७१७१, मनु० ९।३१४ 2. क्षयरोगग्रस्त कपोलमाननम्-श० ३।१०, मध्ये क्षामा-मेघ०८२, 3. नश्वर, भंगुर-(पुं०) चन्द्रमा ।
क्षामच्छायं भवनमधुना मद्वियोगेन नूनम् -८०, ८९ क्षयिष्णु (वि०) [क्षि+इष्णुच ] 1. बरबाद करने वाला, 3. क्षुद्र, तुच्छ, अल्प 4. दुर्बल, निःशक्त । नाश कारी 2. नश्वर, भंगुर ।
| क्षार (वि.) [क्षर्+ण बा०] संक्षरणशील, क्षारक या
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