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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१७ ) दाहक, तिक्त, चरपरा, कटु, खारी,-र: 1. रस, अर्क | 2. समय बिताना, अप-, घटना, क्षीण होना, न्यून 2. शीरा, राब 3. कोई क्षारीय या खट्टा पदार्थ-क्षते । होना, परि-, प्र.---, सम्-, 1. कम होना, क्षीण क्षारमिवासां जातं तस्यैव दर्शनम् -उत्तर. ४१७, होना 2. कृश होना, दुबला-पतला होना। क्षारं क्षते प्रक्षिपन्-मच्छ० ५।१८, (क्षारं आते क्षिप् | क्षितिः (स्त्री० [क्षि+क्तिन ] 1. पथ्वी 2. निवास, --एक लोकोक्ति बन गया है- इसका अर्थ है 'पीडा आवास, घर 3. हानि, विनाश 4. प्रलय । सम०--ईशः, को जो पहले से ही असह्य है और बढ़ा देना' 'बुरे -ईश्वरः राजा--- रघ० ११५, ३॥३, ११११,-कणः को और अधिक बुरा कर देना' 'जले पर नमक धूल,—कम्पः भूचाल,-क्षित् (पुं०) राजा, राजकुमार, छिड़कना' 4. शीशा 5. बदमाश, ठग,-- रम् 1. काला -ज: 1. वृक्ष 2. गंडोआ, केचुआ 3. मंगल ग्रह नमक 2. पानी। सम० -अच्छम् समुद्री नमक, 4. विष्णु के द्वारा मारा गया नरक नाम का राक्षस --अजनम् सज्जी का लेप,---अम्बु खारी रस या (-जम्) जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते हुए प्रतीत खारा पानी,--उदः,-- उदकः,- उदधिः,- समुद्रः खारा होते है, (--जा) सीता का विशेषण,--तलम् पृथ्वी समुद्र,... अयं, त्रितयम, सज्जी, शोरा, सुहागा, नदी की सतह, - देवः ब्राह्मण,--धरः पहाड़ कु० ७५९४ नरक में खारे पानी की नदी, भूमिः (स्त्री०), -नाथः,--पः,-पतिः,-पाल:,-भुज् (पुं०) ... मत्तिका रिहाली भूमि-किमाश्चर्य क्षारभूमौ प्राणदा —रक्षिन् (पुं०) राजा, प्रभु-रघु० २०५१, ५/७६, यमदूतिका. -उद्भट,-मेलकः खारा पदार्थ,—रसः | ६१८६, ७३, ९।७५,-पुत्रः मंगल ग्रह,-प्रतिष्ठ (वि०) खारा रस। पृथ्वी पर रहने वाला, -- भूत (पुं०) 1. पहाड़-सर्वक्षारकः [ क्षार+कन्] 1. खार, रेह 2. रस, अर्क क्षितिभृतां नाथ-विक्रम० ४।२७ (यहाँ इस शब्द 3. पिजरा, पक्षियों के रहने की टोकरी या जाल का अर्थ 'राजा' भी है) कि० ५।२०, ऋतु०६।२६ 4. धोबी 5. मंजरी, कलिका । 2. राजा,--मण्डलम् भूमंडल,-रन्ध्रम् खाई, खोडर, भारणम,-णा [क्षर+णिच् + ल्युट, युच् वा ] दोषारोपण, रह, (पु.) वृक्ष,-वर्धनः (पुं०) शव०, मुर्दा शरीर, विशेषकर व्यभिचार का। -वृत्तिः (स्त्री०) पृथ्वी को गति, धैर्ययुक्तव्यवहार, भारिका [क्षर-+-वुल+टाप, इत्वम् ] भूख ।। व्युवासः गुफा, बिल। क्षारित (वि०) 1. खारे पानी में से टपकाया हुआ क्षितः [क्षिद् + रक् ] 1. रोग 2. सूर्य 3. सींग । 2. जिस पर (व्यभिचार) का मिथ्या अपवाद लगाया ! लिप (तुदा० उभ०-- अभि, प्रति या अति पूर्व होने पर गया हो। पर०-, दिवा० पर० क्षिपति-ते, क्षिप्यति, क्षिप्त) क्षालनम् [क्षल+णिच्-+ल्यट] 1. घोना, (पानी से | 1. फेंकना, डालना, भेजना, प्रेषित करना, विसर्जन, घोकेर) साफ करना 2. छिड़कना । जाने देना (अधि० या कभी कभी संप्र० के साथ) क्षालित (वि.) [क्षल-णिच् + क्त] 1. धोया हुआ, साफ़ -मरुद्भध इति तु द्वारि क्षिपेदप्स्वद्भप इत्यपि मनु० किया हुआ, पवित्र किया हुआ 2. पोंछा हुआ, प्रतिदत्त ३१८८, शिलां वा क्षेप्स्यते मयि- महा०, का० १२, (बदला चुकाया हुआ)-उत्तर० १।२८। ९५, प्रतिपूर्वक भी, भर्तृ० ३१६७ 2. रखना, पहनना, hिi (भ्वा० पर०-क्षयति, क्षित या क्षीण) 1. मुझाना, लगाना-स्रजमपि शिरस्यन्धः क्षिप्ता धुनोत्यहिशङ्कया छीजना 2. राज्य करना, शासन करना, स्वामी होना। -श०७।२४, याज्ञ० ११२३०, भग०१६।१९ 3. आरोii (म्वा०, स्वा०, क्या०-पर०---क्षयति, क्षिणोति, पित करना, लगाना (कलंक आदि)--भत्ये दोषान् क्षिणाति) 1. नष्ट करना ग्रस्त कर लेना, बर्बाद क्षिपति--हि. २ 4. फेंक देना, डाल देना, उतार करना, भ्रष्ट करना न तद्यशः शस्त्रभृतां क्षिणोति देना, मुक्त होना-किं कर्मस्य भरव्यथा न वपुषि मां -रघु० २।४० 2. न्यून करना, बर्बाद करना न क्षिपत्येप यत्-मुद्रा० २।१८ 5. दूर करना, नष्ट --रघु० १९।४८ 3. मार डालना, क्षति पहुँचाना करना-मा० १११७ 6. अस्वीकार करना, पणा करना -(कर्मवाक्य-क्षीयते) 1. बर्बाद होना, घटना, 7. अपमान करना, भर्त्सना करना, दुर्वचन कहना, नष्ट होना, न्यून होना (आलं. भी)-प्रतिक्षणमयं धमकाना-मनु ८।३१२, २७०, शा० ३.१०, कायः क्षीयमाणो न लक्ष्यते-हि० ४।६६, प्रत्यासन्न- अधि-, 1. निन्दा करना, कलंक लगाना 2. नाराज विपत्तिमढमनसां प्रायो मतिः क्षीयते-पंच० २१४, करना, अपवाद करना 3. आगे बढ़ जाना, अव-, अमरु ९३, भर्त० २।१९, (प्रेर.-क्षययति या क्षप- 1. उतार फेंकना, छोड़ना, त्यागना 2. तिरस्कार यति) 1. नष्ट करना, दूर हटा देना, समाप्त कर देना करना, भर्त्सना करना, आ-, 1. फेंकना, डाल देना, --ममापि च क्षपयतु नीललोहितः पुनर्भवं परिगत- प्रहार करना 2. सिकोडना 3. वापिस लेना, छीनना, शक्तिरात्मभूः-२०७४३५, रघ० ८५४७, मेघ० ५३ । खींचना, ले लेना-अग्रपादमाक्षिप्य-रषु. ७७, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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