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( ३१८ ) भर्त० ११४३, मेघ०६८4. संकेत करना, इशारा फुर्ती से, तुरन्त-विनाशं व्रजति क्षिप्रमामपात्रमिवाम्भसि करना 5. परिस्थितियों से अनुमान लगाना--जात्या --मनु० ३३१७९, शा० ३।६, भट्टि० २१४४ । सम० व्यक्तिराक्षिप्यते 6. (तर्क के रूप में) आक्षेप करना -कारिन (वि०) आशुकारी, अविलम्बी। 7. अवहेलना करना, उपेक्षा करना 8. तिरस्कार क्षिया [क्षि-+-अङ-+-टाप्] 1. हानि, विनाश, बर्वादो, ह्रास करना, उद्--, उछालना--ऋतु० ११२२, उप-, 2. अनौचित्य, सर्वसम्मत आचार का उल्लंघन--उदा० 1. डालना, फेंकना-वपुषि वधाय तत्र तव शस्त्रमुप- स्वयमहरथेन याति उपाध्यायं पदाति गमयति - क्षिपत:-मा० ५।३१ 2. संकेत करना, इशारा करना सिद्धा। निष्कर्ष निकालना - छन्नं कार्यमुपक्षिपन्ति-मृच्छ० | क्षीजनम् [क्षी+ल्युट पोले नरकुलों में से निकली हुई ९३ 3. आरम्भ करना, शुरू करना 4. अपमान सरसराहट की ध्वनि । करना, डोटना-फटकारना, नि, 1. नीचे रखना,
क्षीण (वि.) [क्षि+क्त, दीर्घः] 1. पतला, कृश, क्षयस्थापित करना, धर देना --याज्ञ० २१०३, अमरु
प्राप्त, निर्बल, घटा हुआ, थका हुआ या समाप्त, खर्च ८० 2. सौंपना, देख रेख में सुपूर्द करना,-..-मनु० ६।
कर डाला हुआ---भार्यां क्षीणेपु वित्तेषु (जानीयात्)३, ३३१७९, १८० 3. शिविर में रखना 4. फेंक देना
हि० ११७२, इसी प्रकार क्षीणः शशी, क्षीणे पुण्ये अस्वीकार करना 5. प्रदान करना, परि-, 1. घेरना,
मत्यलोक विशन्ति 2. सुकुमार, नाजुक 3. थोड़ा अल्प गङ्गास्रोतःपरिक्षिप्तम्-कु० ६३८ 2. आलिंगन
4. निर्धन, संकटग्रस्त 5. शक्तिहीन, दुर्वल । सम० करना, पर्या-, बाँधना, (बालों को) एकत्र करना
.–चन्द्रः घटता हुआ अर्थात् कृष्णपक्ष का चन्द्रमा - (केशान्तं) पर्याक्षिपत् काचिदुदारबन्धम् ----कु०
--धन (वि.) जिसके पास पैसा न रहा हो, निर्धन ७।१४, प्र-, 1. रखना, डालना- नामेध्यं प्रक्षिपेदग्नी
--पाप (वि०) जो अपने पाप कर्मों का फल भुगत कर -मनु० ४।५३, क्षार क्षते प्रक्षिपन्—मृच्छ ० ५।१८
निष्पाप हो गया हो,-पुण्य (वि०)जो अपने सब पुण्य 2. बीच में डालना, अन्तहित करना-इति सूत्रे कैश्चि
कों का फल भोग चुका हो, तथा अगले जन्म के प्रक्षिप्तं—कयट, वि-, 1. फेंकना, डालना 2. मन
लिए जिसे और पुण्य कार्य करने चाहिएँ,-मध्य मोड़ना 3. ध्यान हटाना, सम् --, 1. संचय करना,
(वि.) जिसकी कमर पतली हो,-- वासिन् (वि०) ढेर लगाना-आतपात्ययसंक्षिप्तनीवारासु निषादिभिः
खंडहर में रहने वाला,-विक्रान्त (वि०) साहसहीन, -रघु० ११५२, भट्टि० ५।८६ 2. पीछे हटना, नष्ट
पौरुषहीन- वृत्ति (वि.) जीविका के साधनों से करना 3. छोटा करना, कमी करना, संक्षिप्त करना
वञ्चित, बेरोजगार। संक्षिप्यंत क्षण इव कथं दीर्घयामा त्रियामा - मेघ०
क्षीब, क्षोब दे०क्षीव, क्षीव । १०८, मनु० ७।३४ ।
क्षीर:-रम् [घस्यते अद्यसे घस।ईरन, उपघालोपः, क्षपणम | क्षिप+क्युन बा०] 1. भेजना, फेंकना, डालना
घस्य ककारः पत्वं च] 1. दूध,---हंसो हि क्षीरमादत्ते 2. झिड़कना, दुर्वचन कहना।
तन्मिश्रा वर्जयत्यपः - श०६।२७ 2. वक्षों का दुधिया क्षिपणिः,-णी (स्त्री०) [क्षिप्+अनि, क्षिपणि+डोष ]
रस-ये तत्क्षीरस्रतिसुरभयो दक्षिणेन प्रवृत्ता:--मेघ० 1. चप्पू 2. जाल 3. हथियार,—णिः प्रहार ।
१०७, कु० १९ 3. जल । सम०-अदः शिशु, दूधक्षिपण्यः [क्षिप्+कन्युच् ] 1. शरीर 2. बसंत ऋतु ।
पीता बच्चा,----ब्धिः दुग्धसागर "ज: 1. चन्द्रमा लिपा [ क्षिप्+अङ+टाप् ] 1. भेजना, फेंकना, डालना
2. मोती, जम् समुद्री नमक, जा-तनया लक्ष्मी का 2. रात्रि ।
विशेषण,--आह्वः सनोवर का वृक्ष,--उदः दुग्धसागर क्षिप्त (भू० क० कृ०) [क्षिप्+क्त] 1. फेंका हआ, बिखेरा
--क्षीरोदवेलेब सफेनपुजा-कु० ७।२६, तनयः हुआ, उछाला हुआ, डाला हुआ 2. त्यागा हुआ
चन्द्रमा, तनया, सुता लक्ष्मी का विशेपण,----उदधि 3. अवज्ञात, उपेक्षित, अनादृत 4. स्थापित 5. ध्यान
क्षीरोद,- ऊमिः दुग्धसागर की लहर - रघु० ४।२७, हटाया हुआ, पागल (दे० क्षिप),---प्तम गोली लगने
- ओदन: दूध में उबाले हुए चावल,-कण्ठः दूधपीता से बना घाव । सम०—कुक्कुरः पागल कुत्ता,-चित्त
बच्चा (कण्ट में दूध रखने वाला)..... त्वया तत्क्षीर(वि.) उचाट मन, विमना,-~-देह (वि.) प्रसृतशरीर,
कण्ठेन प्राप्तमारण्यकं व्रतम् ... महावी० ४१५२, ५।११, लेटा हुआ।
--जम् जमा हुआ दूध,---द्रुमः अश्वत्थवृक्ष, --धात्री क्षिप्तिः (स्त्री०) [क्षिप्+क्तिन् ] 1. फेंकना, भेज देना । दूध पिलाने वाली नौकरानी, धाय, धिः,---निधिः
2. (पहेलियां आदि के) कूट अर्थ को प्रकट करना। दुग्धसागर---इन्दुः क्षीरनिवाविव-रघु० १।१२,--धेनुः क्षिप्र (वि.) [क्षिप्+रक] (म० अ०-क्षपीयम्, उ० अ० (स्त्री०) दूध देने वाली गाय,-नोरम 1. पानी और
क्षेपिष्ठ) सजीव, आशुगामी,-प्रम् (अव्य०) जल्दी, । दूध 2. दूध जैसा पानी 3. गाढ़ालिंगन,-पः बच्चा
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