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( ३१९ ) ..-वारिः,-वारिषिः, दुग्ध सागर,-विकृतिः जमा (वि.) ओछे मन का, कमीना,-- रसः शहद,-रोगः हुआ दूध,-वृक्षः 1. बड़, गूलर, पीपल और मधूक नाम मामूली बीमारी (सुश्रुत में ४४ रोगों का उल्लेख के वृक्ष 2. अंजीर,--शरः मलाई, दूध की मलाई, है),-शंखः छोटा शंख या घोंघा (सीपी),-सुवर्णम्
-समुद्रः दुग्धसागर,-सारः मक्खन,-हिंडीरः दूध के | हल्का या खोटा सोना अर्थात् पीतल । झाग या फेन ।
क्षुद्रल (वि०) [क्षुद्र-। लच् ] सूक्ष्म, हल्का (विशेष कर क्षीरिका [क्षीर+ठन +टाप ] दूध से बना भोज्य पदार्थ । | रोगों व जंतुओं के लिए प्रयुक्त)। क्षोरिन् (वि.) [क्षीर+ इनि ] दूधिया दुधार दूध देने क्षुध (दिवा० पर०-क्षुध्यति, क्षुधित) भूखा होना, भूख वाला।
लगना-भट्टि० ५।६६, ६।४४, ९।३९ । क्षीय (म्वा० दिवा०, पर०---क्षीवति, क्षीव्यति) 1. मत- क्षुध (स्त्री०) क्षुधा क्षुध+क्विप, क्षुध+टाप् ] भूख,
वाला होना, मदोन्मत होना, नशे में होना 2. थूकना, -- सीदति क्षुधा--मनु० ७४१३४, ४११८७ । सम० मुंह से निकालना।
---आर्त,--आविष्ट क्षुधापीडित,-क्षाम (वि.) शीव (वि.) [क्षो+क्त नि०] उत्तेजित, मतवाला, मदो- भूखा होने से दुर्बल-भट्टि० २।२९,-पिपासित (वि०)
न्मत्त-ध्रुवं जये यस्य जयामृतेन क्षीवः क्षमाभर्तुरभू- भूखा प्यासा,--निवृत्तिः (स्त्री०) भूख शान्त होना। स्कृपाण:-विक्रमांक० २९६, क्षीवो दुःशासनासृजा क्षुधालु (वि०) [क्षुध+आलुच् ] भूखा --वेणी० ५।२७।
क्षुधित (वि०) [क्षुध्+क्त ] भूखा क्ष (अदा० पर०-क्षौति, क्षत) 1. छींकना-अवयाति । क्षुपः [क्षुप्+क] छोटी जड़ों के वृक्ष, झाड़, झाड़ी।
सरोषया निरस्ते कृतकं कामिनि चुक्षुवे मृगाक्ष्या-शि०क्षम (भ्वा० आ०, दिवा०, श्या० पर०-क्षोभते, क्षुभ्यति,
९१८३, चौर० १०, भट्टि० १४१७५ 2. खाँसना । क्षुम्नाति, क्षुभित, क्षुब्ध) 1. हिलाना, कंपित करना, क्षुण्ण (भू० क० कृ०) [क्षुद्+क्त] 1. कूटा हुआ, कुचला क्षुब्ध करना, आंदोलित करना,--महा ह्नद इव क्षुम्यन् हुआ---रघु० १११७ 2. (आलं०) अभ्यस्त, अनुगत --भट्टि० ९१११८, रघु० ४।२१, शि० ८।२४ -क्षुद्रजनक्षुण्ण एष मार्गः--का० १४६ 3. पीसा हुआ 2. अस्थिर होना 3. लड़खड़ाना (आलं० भी), प्र—दे० क्षुद्र । सम०-मनस् (वि०) पश्चात्तापी, पछ- | -वि---सम कांपना, क्षुब्ध होना, आंदोलित होना । ताने वाला।
क्षुभित (वि०) [ क्षुभ्+क्त ] 1. हिलाया हुआ, आंदोलित क्षुत् (स्त्री०), क्षुतम्,--ता [क्षु+क्विप्, तुगागमः; क्षु+ आदि० -- महाप्रलयमारुतक्षुभितपुष्करावर्तक-वेणी० क्त, क्षुत-+-टाप् | छींकने वाली, छींक ।
३१२ 2. डरा हुआ 3. क्रुद्ध । क्षुद् (रुधा०, उभ० - क्षुणत्ति, क्षुते, क्षुण्ण) 1. कुचलना, | क्षुब्धः (वि.) क्षुभ्+क्त] 1. आन्दोलित, चंचल, अस्थिर
घिसना, (पैरों से) कुचल डालना, रगड़ना, पीस देना 2. डांवाडोल 3. डरा हुआ,-ब्ध० मन्थन करने का --क्षुणनि सर्पान् पाताले ---भट्टि० ६।३६, ते तं व्या- डण्डा-शोभैव मन्दरक्षुब्धक्षभिताम्भोधिवर्णना--शि० शिषताक्षौत्सुः पादर्दन्तस्तथाच्छिदन-१५।४३, १६।६६ २१०७ 2. रति क्रिया का विशेष आसन, रतिबन्ध । 2. उत्तेजित करना, क्षुब्ध होना (आ०), प्र-, कुच- क्षुमा [क्षु-मक् ] अलसी,एक प्रकार का सन । लना, खरोंचना, पीसना---मित्रघ्नस्य प्रचुक्षोद गदयोगं | क्षुर् (तुदा० पर०-क्षुरति, क्षुरित) 1. काटना, खुरचना विभीषणः---भट्टि० १४१३३ ।।
2. रेखाएँ खींचना, हल से खेत में खूड बनाना । क्षुद्र (वि) क्षिद्+रक] (म० अ०-- क्षोदीयस्, उ० अ. क्षुरः [क्षुर-+क] 1. उस्तरा . रघु० ७।४६, मनु० ९।
--क्षोदिष्ट) 1. सूक्ष्म, अल्प, छोटा सा, तुच्छ, हलका २६२ 2. उस्तरे जैसी नोक जो तीर में लगाई जाय 2. कमीना, नीच, दुष्ट, अधम.-क्षुद्रेऽपि नूनं शरणं 3. गाय या घोड़े का सुम 4. बाण। सम-कर्मन् प्रपन्ने--कु० ॥१२ 3. दुष्ट 4. क्रूर 5. गरीब, दरिद्र (नपुं०)-- क्रिया हजामत बनाना,--चतुष्टयम् हजामत 6. कृपण, कंजूस---मेघ० १७,-द्रा 1. मधुमक्खी करने की आवश्यक चार चीजें,-धानम्,-भाण्डम् 2. झगड़ाल स्त्री 3. अपाहज या विकलांग स्त्री 4. वेश्या । उस्तरे का खोल,-धार (वि०) उस्तरे जैसा तेज, ----उपसृष्टा इ. क्षुद्राधिष्ठितभवनाः–का० १०७ । ----प्रः बाण जिसकी नोक घोड़े की नाल जैसी हो-तं सम० अञ्जनम् कुछ रोगों में आंखों में लगाया जाने क्षुरप्रशकलीकृतं कृती - रघु० ११।२९, ९।६२ वाला अंजन या लेप,-अन्त्रः हृदय के भीतर का छोटा 2. खुी, घास खोदने का खुर्पा,--माविन्,--मुण्डिन् सा रंध,-कम्बुः छोटा शंख,-कुष्ठम् एक प्रकार का (पुं०) नाई। हल्का कोठ,-घण्टिका 1. चूंघरु 2. घूघर वाली कर- अरिका, क्षुरी [क्षुर-+ङीष्,+क+-टाप् ह्रस्वः, क्षुर धनी,-बावनम् लाल चंदन की लकड़ी, .- जन्तुः कोई +डीष ] 1. चाकु, छुरी 2. छोटा उस्तरा । भी छोटा जीव, ---वंशिका डांस, गो मक्खी,----बुद्धि । क्षरिणो [क्षर+इनि+कोष ] नाई की पत्नी ।
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