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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३१५ ) क्षणनम् ] क्षण + ल्युट ] क्षति पहुँचाना, मार डालना, । क्षत्रियः [क्षत्रे राष्ट्रे साधु तस्यापत्यं जातौ वा घः तारा०] घायल करना। दूसरे वर्ण या सैनिक जाति का पुरुष-ब्राह्मणः क्षत्रियो क्षणिक (वि.) [क्षण+ठन ] क्षणस्थायी, अचिरस्थायी वैश्यस्त्रयो वर्णाः द्विजातयः-मनु०१०।४। सम० -स्वप्नेषु क्षणिकसमागमोत्सवैश्च--रघु०८/९२, एक- -हणः परशुराम का विशेषण । स्य क्षणिका प्रीतिः-हि० १।६६,का बिजली। क्षत्रियका, क्षत्रिया, क्षत्रियिका [क्षत्रिया+कन +टाप, क्षणिन (वि.) (स्त्री०-नी) [ क्षण+इनि ] 1. अवकाश ह्रस्व:-क्षत्रिय-+-टाप्-क्षत्रिया+कन्+टाप् इत्वम् रखने वाला 2. क्षणस्थायी,-नी बिजली। वा ] क्षत्रिय जाति की स्त्री। क्षत (वि.) [क्षण+क्त घायल, चोट लगा हुआ, क्षति- | क्षत्रियाणी [क्षत्रिय+डीए, आनुक ] 1. क्षत्रिय जाति की ग्रस्त, काटा हुआ, फाड़ा हुआ, चीरा हुआ, तोड़ा हुआ, स्त्री 2. क्षत्रिय की पत्नी। -.-दे०क्षण-रक्तप्रसाधितभुवः क्षतविग्रहाश्च-वेणी. क्षत्रियी [ क्षत्रिय+ङीष् ] क्षत्रिय की पत्नी। १७, रघु० १।२८, २।५६, ३५३, तम् 1. खरोच | संत (वि०) (स्त्री०-त्री) [क्षम् +तृच् ] प्रशान्त, 2. घाव, चोट, क्षति-क्षते क्षारमिवासह्यं जातं तस्यैव । सहिष्णु, विनम्र। दर्शनम् --उत्तर. ४१७, क्षारं क्षते प्रक्षिपन्-मृच्छ० क्षप् (भ्वा०---क्षपति-ते, क्षपित) उपवास करना, संयमी ५।१८ 3. भय, विनाश, खतरा-क्षतात् किल वायत होना--मनु० ५।६९, (प्रेर० या चुरा० उभ०-क्षपइत्युदन:--रघु० २१५३। सम-अरि (वि०) यति-ते, क्षपित) 1. फेंकना, भेजना, डालना विजयी, उदरम् पेचिश, कासः आघात से उत्पन्न | 2. चूक जाना। खांसी,---जम् 1. रुधिर-स छिन्नमूल: क्षतजेन रेणुः । क्षपणः [क्षप्+ल्युट] बौद्धभिक्षु,-णम् 1. अपवित्रता, अशौच -~-रघु० ७१४३, वेणी० २।२७ 2. पीप, मवाद,-योनिः । 2. नाश करना, दबाना, निकाल देना। (स्त्री०) भ्रष्ट स्त्री, वह स्त्री जिसका कौमार्य भंग क्षपणकः [क्षपण+कन् ] बौद्ध या जैनसाधु-ननक्षपणके हो चुका हो,--विक्षत (वि०) विक्षतांग, जिसका देशे रजकः किं करिष्यति-चाण. ११०, कथं प्रथमशरीर बहुत जगह से कट गया हो, तथा घावों से मेव क्षपणक:-.-मुद्रा०४। भरा हो,---वृत्तिः (स्त्री०) दरिद्रता, जीविका के | क्षपणी [क्षप्+ल्युट+डीप् ] 1. चप्पू 2. जाल । साधनों से वंचित,---व्रतः वह विद्यार्थी जिसने अपनी क्षपण्युः [क्षप्-अन्यु, णत्वम् ] अपराध। धार्मिक प्रतिज्ञा या व्रत भंग कर दिया हो। क्षपा [क्षप्-+-अच+टाप् ] 1. रात-विगमयत्यु निद्र एव क्षतिः (स्त्री०) [क्षण-क्तिन् ] 1. चोट, घाव 2. नाश, क्षपाः-श० ६४, रघु० २।२०, मेघ० ११० काट, फाड़-विस्रब्धं क्रियतां वराहततिभि: मुस्ताक्षतिः 2. हल्दी। सम-अटः 1. रात में घूमने वाला 2. राक्षस, पल्वले-श० २६ 3. (आलं.) बर्बादी, हानि, पिशाच-ततः क्षपाटः पृथुपिंगलाक्षः--भट्टि० २।३०, नुकसान-सुखं संजायते तेभ्यः सर्वेभ्योऽपीति का -करः,-नाथः 1. चन्द्रमा 2. कपूर-घनः काला क्षति: सा.द०१७ 4. ह्रास, क्षय, न्यूनता-प्रताप- बादल,—चरः राक्षस, पिशाच । क्षतिशीतला:-कु० २।२४, हि० १२११४। क्षम् (भ्वा०, आ०-क्षमते, क्षाम्यति, क्षान्त या क्षमित) क्षत (पु०)[क्षद् +तुच्] 1. जो काटने और रूपरेखा खोदने 1. अनुमति देना, इजाजत देना, चलने देना-अतो का काम करता है-(मतिकार या संगतराश) 2. परि- नपाश्चक्षमिरे समेताः स्त्रीरत्नलाभं न तदात्मजस्य चारक, द्वारपाल 3. कोचवान, सारथि 4. शूद्रपिता -रघु० ७।३४, १२।४६ 2. क्षमा करना, माफ कर तथा क्षत्रिय माता से उत्पन्न संतान-तु० मनु० १०९ देना (अपराध आदि)-क्षान्तं न क्षमया भर्तृ० ३।१३, 5. दासी का पुत्र (उदा० विदुर) 6. ब्रह्मा, 7. मछली। क्षमस्व परमेश्वर, निघ्नस्य मे भर्तनिदेशरीक्ष्यं देवि क्षत्रः, त्रम् [क्षण+क्विप्=क्षत्, ततः त्रायते-+क] क्षमस्वेति बभूव नम्रः-रघु० १४१५८ 3. धैर्यवान् 1. अधिराज्य, शक्ति, प्रभुता, सामर्थ्य 2. क्षत्रिय जाति होना, चुप होना, प्रतीक्षा करना--रघु० १५।४५ का पुरुष ----क्षतात्किल बायत इत्युदनः क्षत्रस्य शब्दो 4. सहन करना, गम खा जाना, भुगतना-अपि भुवनेषु रूढ़:--रघु० २।५३, ११।६९, ७१-असंशयं क्षमन्तेऽस्मदुपजापं प्रकृतयः-मुद्रा० २, नाज्ञाभङ्गकरान क्षत्रपरिग्रहक्षमा-श० ११२१, मनु० ९।३२२ । सम० राजा क्षमेत स्वसुतानपि-हि० २११०७ 5. विरोध -अन्तकः परशुराम का विशेषण, धर्मः 1. बहादुरी, करना, रोकना 6. सक्षम या योग्य होना---ऋते रवे: सैनिक शरवीरता 2. क्षत्रिय के कर्तव्य,-पः राज्यपाल, क्षालयितुं क्षमेत कः क्षपातमस्काण्डमलीमस नभ:-शि० उपशासक,-बन्धुः 1. क्षत्रिय जाति का पुरुष-मनु० ११३८, ९।६५। क्षम (वि.) [ क्षम् +अच् ] 1. धैर्यवान् 2. सहनशील, क्षत्रिय, तु. ब्रह्मबंधु। विनम्र 3. पर्याप्त सक्षम, योग्य (समास में या संबं०, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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