SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1194
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1185 ) अभी गर्भ में ही था, अपने पिता की भर्त्सना की। पण्डावत् (वि.) [पण्डा+मतुप् ] बुद्धिमान्-अश्व०६। इस बात से क्रुद्ध होकर पिता ने शाप दिया कि तुम | प्रकोपः [प्रा० स०] क्रोध, उत्तेजना, आवेश / आठ अंगों से टेढ़े-मेढे पैदा होगे। एक बार कहोड | प्राकारः (40) 1. चहारदीवारी, बाड़ा, बाड़ 2. चारों ने एक बौद्ध से शर्त लगाई और फिर उसमें हार जाने ओर घेरा डालने वाली दीवार, फ़सील-शतमेकोऽपि पर कहोंड को नदी में डुबा दिया गया / युवा अष्टावक्र संधत्ते प्राकारस्थो धनुर्धर:--पंच० 1229 / ने उस बौद्ध को परास्त किया और अपने पिता को बाली (स्त्री०) एक प्रकार का कान का आभूषण-अश्व० मुक्त कराया। इस बात से प्रसन्न होकर पिता ने 24 / समंगा नदी में स्नान करने के लिए कहा। ऐसा कर युधिष्ठिरः [ युधि स्थिरः-अलुक् स०, षत्वम् ] 'युद्ध में वह बिल्कुल सरल अंगों वाला हो गया। अडिग' पांडवों में ज्येष्ठ राजकुमार। इसे 'धर्म' न्याय 'धर्मराज' और 'अजातशत्रु' आदि भी कहते हैं। यह 1. विषकृमिन्याय --विष में पले कीड़ों का नीतिवाक्य / धर्म द्वारा कुन्ती से उत्पन्न हआ था। सैन्यचातूरी की यह उस स्थिति को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया अपेक्षा यह अपनी सचाई और ईमानदारी के लिा जाता है जो दूसरों के लिए घातक होते हुए भी उनके अत्यन्त प्रसिद्ध था। अठारह दिन के महाभारत के लिए ऐसी नहीं होती जो इसमें जन्मे और पले हैं; पश्चात् इसे हस्तिनापुर की राजगद्दी पर सम्राट के क्योंकि वह स्थिति तो उनका स्वभाव बन गया है रूप में अभिषिक्त किया गया था। उसके पश्चात जैसे कि विषकृमि जो विष से ही जन्मा है। विष इसने बहुत दिनों तक धर्मपूर्वक राज्य किया। इसका चाहे दूसरों के लिए घातक हो परन्तु उनके लिए अधिक विवरण जानने के लिए दे० 'दुर्योधन') / घातक नहीं होता जो उसी विषली स्थिति में पले हैं।। वंशम्पायनः (0) व्यास के एक प्रसिद्ध शिष्य का नाम / विषवक्षन्याय -विषवृक्ष का नीतिवाक्य। यह उस इसने अपने शिष्य याज्ञवल्क्य को कहा कि वह समस्त स्थिति को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया जाता यजुर्वेद जो तुमने मुझसे पढ़ा है उगल दो। तदजो यद्यपि उत्पातमय या आघातपूर्ण है तो भी उस नुसार उगल देने पर वशम्यायन के अन्य शिष्यों ने व्यक्ति के द्वारा जिसने उसे बनाया है, नष्ट किये जाने तीतर बन कर वह समस्त यजुर्वेद चाट लिया। इसी के योग्य नहीं। जैसे कि एक वृक्ष चाहे वह विष का लिए यजुर्वेद की उस शाखा का नाम 'तैत्तिरीय' पड़ ही क्यों न हो वह भी लगाने वाले के द्वारा काटा गया / पुराणों का पाठ करने में बैशंपायन अत्यन्त नहीं जाता। दक्ष और प्रसिद्ध था। कहते हैं कि उसने समस्त महा3. स्थालीपुलाकन्याय--पकते हुए बर्तन में से एक चावल भारत का पाठ जनमेजय राजा को सुनाया। देखने का नीतिवाक्य / देगची में पड़े हुए सभी चावलों | हिरण्याक्षः (पुं०) एक प्रसिद्ध राक्षस का नाम / हिरण्यपर गर्म पानी का समान प्रभाव पड़ता है। जब एक कशिपु का जुड़वाँ भाई। ब्रह्मा से वरदान पाकर बह चावल पका हुआ होता है तो यह अनुमान लगा ढीठ और अत्याचारी हो गया, उसने पृथ्वी को समेट लिया जाता है कि अन्य सब चावल भी पक गए हैं। लिया और उसे लेकर समुद्र की गहराई में चला अत: यह नीतिवाक्य उस दशा में प्रयुक्त होता है जब गया। अत एव विष्णु ने वराह का अवतार धारण समस्त श्रेणी का अनुमान उसके एक भाग को देख ! किया, राक्षस को यमलोक पहुँचाया और पृथ्वी का कर लगाया जाय। मराठी में इसे ही कहते है उद्धार किया। "शितावरून भाताची परीक्षा"। 149 For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy