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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1984 ) वह व्यक्ति जो दो पक्षों के बीच असफल मध्यस्थता से उसके प्राण वच गये। अनिरुद्ध को उसकी पत्नी करता है, अंगद नाम से पुकारा जाता है। उषा सहित द्वारका में अपने घर लाया गया। अंजना (स्त्री०) मारुति या हनुमान की माता का नाम / | अंधकः [अन्ध+कन एक राक्षस का नाम जो कश्यप और वह कुंजर नामक बानर की कन्या तथा केसरी की दिति का पुत्र था। इसकी शिव ने हत्या कर दी थी। पत्नी थी, एक दिन वह एक पहाड़ की चोटी पर | इसके वर्णन मिलता है कि एक हजार भुजाएं और बैठी थी, कि उसका वस्त्र जरा शरीर से हट गया। सिर थे, 2000 आँखें और पैर थे। वह अंधों की वायु देवता उसके सौन्दर्य पर मग्ध हो गया, उसने दृश्य भाँति चलता था इस लिए लोग उसे अंधक कहते थे, शरीर धारण कर अंजना से अपनी इच्छापूर्ति की। चाहे वह पूर्णतः ठीक ठीक देख सकता था। जब याचना की। अंजना ने उससे प्रार्थना की कि आप उसने स्वर्ग से पारिजात वृक्ष उठा कर ले जाने का मेरा सतीत्व नष्ट न करें। वाय ने इस बात को प्रयत्न किया तो शिव ने उसकी हत्या कर दी। स्वीकार कर लिया, परन्तु कहा कि तुम्हारे शक्ति अभिमन्युः (0) अर्जन के एक पुत्र का नाम / इसकी और कान्ति में मेरे जैसा पुत्र उत्पन्न होगा क्योंकि माता सुभद्रा थी जो श्रीकृष्ण तथा बलराम की बहन मैने तुम्हारी ओर कामवासना की दृष्टि से देखा है। थी। जब द्रोण की सलाह के अनसार कौरवों ने यह कहकर वायु अन्तर्धान हो गया। यह पुत्र ही / 'चक्रव्यूह' नाम की विशिष्ट सन्यस्थिति बनाई, और मारुति या हनुमान् था। वह भी इस आशा से कि आज अर्जुन दूर है, अत्रिः [अद्विन = अत्रि] एक महर्षि का नाम / यह उसके अतिरिक्त और कोई पांडव इस व्यह को तोड़ ब्रह्मा की आँख से उत्पन्न होने के कारण ब्रह्मा के नहीं सकेगा, तो अभिमन्य अपने चाचा ताउओं को दस मानस पुत्रों या प्रजापतियों में से एक है। इसकी विश्वास दिलाया कि यदि आप लोग मेरी सहायता पत्नी का नाम अनसूया था। उससे तीन पुत्र हुए करें तो मैं अवश्य ही इस व्यूह को तोड़ डालंगा। दत्त, दुर्वासा और सोम। रामायण में वर्णन मिलता तदनुसार वह व्यह में प्रविष्ट हुआ, कौरवपक्ष के है कि राम और सीता, अत्रि तथा अनसूया के आश्रम अनेक योद्धाओं को उसने मौत के घाट उतारा। एक में गये। वहां उन्होंने उनका खूब आदर सत्कार बार तो उसने ऐसा घोर पराक्रम दिखाया कि द्रोण, किया (दे० अनसूया)। ऋषि के रूप में वह सप्त- कर्ण दुर्योधन आदि बड़े बड़े महारथी भी उसका मुकाऋर्षियों में से एक है, ज्योतिष की दृष्टि से वह सप्त- बला न कर सके। परन्तु वह बहुत देर तक इस षियों में एक तारा है। कहते है कि चन्द्रमा इस की भीषण युद्ध का सामना न कर सका, अन्त में परास्त आँख से पैदा हुआ--तु० रघु० 275 / हुआ और मारा गया। वह बहुत सुन्दर था / उसकी अदितिः [न दीयते खण्डयते बध्यते बहत्त्वात-दो+क्तिच] दो पत्नियां थी . बलराम की पुत्री वत्सला, तथा दक्ष की एक कन्या का नाम जो कश्यप को ब्याही राजा विराट की पुत्री उत्तरा। जिस समय वह मारा गई: जिस समय विष्ण ने वामनावतार ग्रहण किया गया उस समय उत्तरा गर्भवती थी। उससे परीक्षित तो उस समय वह विष्णु की माता थी। वह इन्द्र को का जन्म हुआ। परीक्षित ही बाद में हस्तिनापुर की भी माता थी। इसके कारण वह उन अन्य देवताओं राजगद्दी पर बैठा। की भी माता कहलाती है जो अदितिनदन कहलाते हैं। अरुणः [ऋ+उनन] विनता में कश्यप से उत्पन्न एक पुत्र अनिरुद्धान निरुद्ध इति ब० स०] प्रद्युम्न के एक पुत्र गरुड था। गरुड का ज्येष्ठ भ्राता ही अरुण बतलाया का नाम / अनिरुद्ध काम का पूत्र और कृष्ण का पोता जाता है। विनता ने समय से पूर्व ही अंडे से बच्चा था। बाणासुर की पुत्री उषा उससे प्रेम करने लगी थी। निकाला, उसकी अभी जंघाएँ नहीं बनी थी, इस लिए उसने जादु की शक्ति से अनिरुद्ध को अपने पिता की उसका नाम 'अनूर' (ऊरुरहित) या 'विपाद' (पैरों नगरी शोणितपुर के अपने भवन में मंगवा लिया। से हीन) पड़ गया। अब अरुण सूर्य का सारथि है। (दे० उषा या चित्रलेखा)। बाण ने कुछ रक्षक उसे उसकी पन्नो श्येनी थी जिससे 'संपाति' और 'जटाय' पकड़ने के लिए भेजे परन्तु पराक्रमी अनिरुद्ध ने उन्हें नामक दो पुत्र पैदा हुए। लोहे की गदा से मौत के घाट उतार दिया। अंतत: | अश्वत्थामन दे० 'द्रोण' भी। वह जादू की शक्ति के द्वारा पकड़ लिया गया। जब अश्विनीकुमार दे० 'संज्ञा कृष्ण, बलराम और काम को उसका पता लगा तो वे अष्टावक्र: [अष्टकृत्वः अष्टस् भागेष वा वक्र: कहोड के एक उसे लेने गये। वहाँ भारी युद्ध हुआ। बाण की पुत्र का नाम / कहोड ऋपि इतने अधिक अध्ययन यद्यपि शिव और स्कन्द सहायता करते थे, तो भी शील थे कि उन्होंने अपनी पत्नी की उपेक्षा की। इस वह पराजित हो गया, परन्तु शिव के बीच में पड़ने अवहेलना से क्षुब्ध होकर उसके अजात पुत्र ने जो For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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