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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1983 ) सम्पूरक अक्रूरः [न क्रूरः-न० त०] एक यादव का नाम जो कृष्ण अपने वनवास के समय घूमते हुए भगवान् राम, सीता का मित्र और चाचा था। (यही वह यादव था और लक्ष्मण सहित उसके आश्रम में गये। वहाँ जिसने बलराम और कृष्ण को मथुरा में जाकर कंस अगस्त्य ने इनका बहुत आदर-सत्कार किया और को मारने की प्रेरणा दी थी। उसने इन दोनों को राम का मित्र, सलाहकार और अभिरक्षक बन गया। अपने आने का आशय बतलाया और कहा कि किस उसने राम को विष्ण का धनुष तथा कुछ और वस्तुएँ प्रकार अधर्मी कंस ने इनके पिता आनकदंद्रभि, राज- दी (दे० रघु० 15155) ज्योतिष में इसे तारा भी कुमारी देवकी तथा स्वयं अपने पिता उग्रसेन को माना जाता है- तु० रघु० 4 / 21 भी। अपमानित किया। कृष्ण ने अपने जाने की स्वीकृति / अग्निः [ अङ्गति ऊवं गच्छति अङ्ग, नि, न लोपश्च ] दे दी और प्रतिज्ञा की कि मैं उस राक्षस को तीन अग्नि का देवता / ब्रह्मा का ज्येष्ठ पुत्र / इसकी पत्नी रात के अन्दर मार डालगा। कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा का नाम स्वाहा है। उससे इसके तीन सन्तान हुई की पूर्ति में सफल हुआ) दे० 'सत्राजित्' भी। - पावक, पवमान और शचि / हरिबंश में इसका वर्णन मिलता है कि इसके वस्त्र काले हैं, धओं ही अगस्तिः, अगस्त्यः [ विन्ध्याख्यम् अगम् अस्यति, अस् इसकी टोपी है, तथा शिखाएँ इसका भाला है। +क्तिच शक०, या अगं विन्ध्याचलं स्त्यायति स्त इसके रथ में लाल घोड़े जते हैं। यह मेंढे के साथ नाति, स्त्य+क, या अगः कुम्भः तत्र स्त्यानः संहतः या कभी मेंडे पर सवारी करता हुआ वर्णन किया इत्यगस्त्यः ] एक प्रसिद्ध ऋषि या मनि का नाम / गया है। महाभारत में वर्णन मिलता है कि अग्नि ऋग्वेद में अगस्त्य और वशिष्ठ मुनि मित्र और वरुण का शौर्य और विक्रम समाप्त हो गया और वह मन्द की सन्तान माने जाते हैं। कहते हैं कि लावण्यमयी हो गया, क्योंकि उसने राजा श्वेतकी द्वारा यज्ञों में अप्सरा उर्वशी को देखकर इनका वीर्य स्खलित हो दी गई आहुतियाँ खा लीं। परन्तु उसने अर्जुन की गया। उसका कुछ भाग एक घड़े में गिर गया तथा सहायता से खांडबवन को निगलकर अपनी शक्ति कुछ भाग जल में। घड़े से अगस्त्य का जन्म हुआ फिर प्राप्त कर ली। इस सेवा के उपलक्ष्य में ही इसीलिए इसे कुम्भयोनि, कुम्भजन्मा, घटोद्भव, कलशयोनि आदि भी कहते हैं। दर्णन मिलता है कि अर्जुन को गाण्डीव धनुष दिया गया। इसने विन्ध्याचल पर्वत को जो बराबर उठता जा रहा अघः [ अध् कर्तरि अच् ] एक राक्षस का नाम / यह बक था तथा सूर्यमण्डल पर अधिकार करने ही वाला था, और पूतना का भाई था तथा कस का सेनापति / और जिसने इसके रास्ते को रोक दिया था, नीचे हो एक बार कंस ने इसे कृष्ण और बलराम को मारने जाने के लिए कहा। दे० विन्ध्य० (यह आख्यायिका के लिए गोकुल भेजा। उसने वहाँ एक विशालकाय कई विद्वानों के मतानुसार आर्य जाति की दक्षिण देश अजगर का रूप धारण कर लिया जो चार योजन लंबा में विजय और भारत की सभ्यता के प्रति प्रगति का था। इस रूप में वह ग्वालों के मार्ग में लेट गया पूर्वाभास देती है) इसके नाम एक अन्य आख्यायिका तथा अपना मंह पूरा खोल लिया। ग्वालों ने इसे के अनुसार समुद्र को पी जाने के कारण पीताब्धि एक पहाड़ी गफा समझा, वे इसमें घुस गये, सब गौएँ और समुद्र चुलक आदि भी थे, क्योंकि समुद्र ने अगस्त्य भी इसी में चली गई। परन्तु कृष्ण ने इसे समझ को रुष्ट कर दिया था, और क्योंकि अगस्त्य युद्ध लिया। फलतः उसने अन्दर घुसकर अपना शरीर में इन्द्र और देवों की सहायता करना चाहता था इतना फुलाया कि वह अजगररूपी राक्षस टुकड़े-टुकड़े जब कि देवों का युद्ध कालेय नामक राक्षसवर्ग से हो गया तब कहीं इस प्रकार कृष्ण ने अपने साथियों होने लगा था और राक्षस समद्र में जाकर छिप गये की रक्षा की। थे और तीनों लोकों को कष्ट देते थे। उसकी पत्नी | अंगद [अङ्गं दायति शोधयति भूषयति, अङ्गं द्यति वा, है का नाम लोपामुद्रा था। वह विध्य के दक्षिण में या दो+क] तारा नाम की पत्नी से उत्पन्न वालि कुंजर पर्वत पर एक तपोवन में रहता था। उसने का एक पुत्र / जब राम ने समस्त सेना के साथ दक्षिण में रहने वाले सभी राक्षसों को नियन्त्रण में लंका को कुच किया तो अंगद को रावण के पास रक्खा। एक उपाख्यान में वर्णन मिलता है कि किस शान्ति के दूत के रूप में भेजा गया जिससे कि समय प्रकार इसने वातापि नामक राक्षस को खा लिया रहते रावण अपनी जान बचा सके। परन्तु रावण जिसने मेंढे का रूप धारण कर लिया था, और किस ने घृणापूर्वक उसके प्रस्ताव को ठुकरा दिया, फलतः प्रकार उसके भाई को जो अपने भाई का बदला लेने काल का ग्रास बना। सुग्रीव के पश्चात् किष्किन्धा आया था, अपनी एक दृष्टि से भस्म कर दिया। का राज्य अंगद को मिला। सामान्य बोलचाल में For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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