SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंत (वि.) [अम्+तन् ] 1 निकट 2 अन्तिम 3 सुन्दर, ---क: 1 मृत्यु 2 साकार मृत्यु, संहारक, यम, मृत्यु का मनोहर,--मेघ० २३, शि० ४।४० (इसका सामान्य देवता,--ऋषिप्रभावान्मयि नान्तकोऽपि प्रभः प्रहर्तुम् अर्थ--'सीमा' या 'छोर' है, यद्यपि 'शब्दार्णव' का रघु० २०६२ । उद्धरण देते हुए मल्लिनाथ इसका अर्थ 'रम्य' करते अंततः (अव्य) [अन्त तसिल ] 1 किनारे से 2 आखिर है) 4 नीचतम, निकृष्टतम 5 सबसे छोटा, तः कार, अन्त में, अंततोगत्वा, निदान 3 अंशतः, कुछ 4 (कुछ अर्थों में नपुं.) 1 (वि.) छोर, मर्यादा, (देश- भीतर, अन्दर 5 अधम रीति से ('अंत' के सभी अर्थ काल की दृष्टि से) सीमा, चरम सीमा, अन्तिम बिन्दु 'अंततः' में समा जाते हैं) या पराकाष्ठा,--स सागरांतां पृथिवीं प्रशास्ति-हि० | अन्ते (अव्य०) [ 'अन्त' का अधि०, क्रि० वि० में प्रयोग ] ४।५०,-दिगते श्रूयते --भामि०१२; 2 छोर, सरहद, 1 अन्त में, आखिरकार 2 भीतर 3 (की) उपस्थिति किनारा. परिसर, सामान्य रूप से स्थान या भूमि,- में, निकट, पास ही। सम० --वास: 1 पड़ोसी, साथी, यत्र रम्यो वनांतः, उत्त० १२५,-ओदकांतात् स्निग्धो 2 छात्र --शि० ३०५५, वेणी० ३१६ –वासिन जनोऽनुगंतव्यः-श० ४, रघु० २।५८; 3 बुनी हुई किनारी तु० अंतवासिन् । का पल्ला-वस्त्र', पट'; 4 सामीप्य, सन्निकटता, | अंतर (अध्य०)[ अम् अरन् तुडागमश्च ] 1 [क्रियाओं पड़ीस, विद्यमानता--गंगा प्रपातांतविरूढशष्पं (गह के साथ उपसर्ग की भांति प्रयुक्त होता है तथा संबंध रम्) रघु० २०३६, पुंसो यमांतं बजतः--पंच०२।११५; बोधक अव्यय समझा जाता है । (क) बीच में, के 5 समाप्ति, उपसंहार, अवसान,-सेकांते--रघु० १।५१, मध्य, में, के अन्दर हन, धा, गम्, भू, 'इ, ली दिनांते निहितम् -रघु० ४११, 6 मृत्यु, नाश, जीवन आदि (ख) के नीचे 2 (क्रि० वि० प्रयोग) (क) का अन्त, ... राका भवेत्स्वस्तिमती त्वदंते--रघु० २।४८, के मध्य, के बीच, के दरम्यान, के अन्दर, मध्य में या अद्य कांतः कृतांतो वा दुःखस्यान्तं करिष्यति-उद्भट अंदर, भीतर (विप० बहिः)—अदह्यतांतः रघु० २।३२, 7 (व्या० में) शब्द का अन्तिम अक्षर 8 समास में अन्तर्यश्च मग्यते-विक्रम० १११, आंतरिक रूप से, अंतिम शब्द 9 (प्रश्न का) निश्चय, निर्णीत या अंतिम मन में (ख) ग्रहण करके या पकड़कर--अंतर्हत्वा निश्चय-उभयोरपि दृष्टोऽतस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः भग० गतः (हतं परिगृह्य) 3 (वियुक्त होने योग्य सम्बन्ध२।१६; 10 अंतिम अंश, अवशेष-यथा निशांत, वेदांत बोधक के रूप में) (क) में, के मध्य, बीच में, के 11 प्रकृति, दशा, प्रकार, जाति 12 वृत्ति, तत्त्व शुद्धांतः । अन्दर (अधि० के साथ)-निवसन्नंतरुणि लंध्यो सम-अवशायिन् (पु०) चांडाल, -अवसायिन वह्निः--पंच० ११३१अप्स्वंतरमृतमप्सु-ऋग् १।२३ (पुं०) 1 नाई 2 चांडाल, नीच जाति का, कर, (ख) के मध्य (कर्म के साथ) वेद०-हिरण्मय्योह ---करण, --कारिन् (वि०) घातक, मारक, संहारक, कुश्योरंतरवहित आस-शत० (ग) में, के अन्दर, -कर्मन् (नपुं०) मृत्यु, ---कालः, -वेला मृत्यु का भीतर, बीच में (संबं० के साथ) प्रतिबल जलधेरंतसमय,--कृत् (पुं०) मृत्यु,-ग (वि०) किनारे तक जाने रौर्वायमाणे वेणी० ३।५, अंतः कंचुकिचकस्य --- वाला, पूरी तरह से जानकार या परिचित, (समास में) रत्न० २।३;-लघुवृत्तितया भिदां गतं बहिरंतश्च नपस्य .—गति, -गामिन् (वि०) नाश होने वाला, गम मंडलम् ---कि० २।५३; 4 समस्त शब्दों में यदि प्रथम नम् 1 समाप्त करना, पूरा करना 2 मृत्यु, --दीपकम पद के रूप में प्रयुक्त किया जाय तो बहधा निम्नांकित सा० शा० में एक अलंकार, ---पाल: 1 सीमा की अर्थ होते हैं:-आंतरिक रूप से, के अन्दर, भीतर, रक्षा करने वाला, 2 द्वारपाल --लीन (वि.) गुप्त, भीतर रह कर, भरा हुआ, अन्दर की ओर, आंतरिक, छिपा हुआ, -लोपः शब्द के अंतिम अक्षर को निकाल गुप्त, तत्पुरुष तथा बहुव्रीहि समास के क्रियाविशेषदेना,-वासिन् ('ते') (वि.) सीमान्त प्रदेश के निकट णात्मक रूप बनाने वाला(नोट-समस्त पदों में 'अन्तर' रहने वाला, निकट ही रहने वाला, (-पं०) विद्यार्थी का र वर्ग के प्रथम द्वितीय वर्ण तथा श, ष, स् से (जो शिक्षा ग्रहण करने के निमित्त सदैव गरु के निकट पूर्व विसर्ग का रूप धारण कर लेता है जैसे अन्तःकरण, रहता है), चांडाल (जो गांव के किनारे रहता है) अन्तःस्थ आदि) । सम० --अग्निः आन्तरिक आग, -वेला-तु. काल:-शय्या 1 भूमिशय्या 2 अंतिम वह अग्नि जो पाचन शक्ति को उत्तेजित करे, -अंग शय्या, मृत्युशय्या 3 कब्रिस्तान या श्मशान भूमि, (वि.) 1 अंदर की ओर, आन्तरिक, अन्तर्गत (अपा० .-सत्क्रिया अन्त्येष्टि संस्कार,--सद् (पुं०) विद्यार्थी, के साथ), त्रयमंतरंग पूर्वेभ्य:-पातंजल० 2 शब्द के तमुपासते गुरुमिवांतसद:-कि० ६।३४ । मलरूप या अंग के आवश्यक भाग से संबद्ध, या अंग अन्तक (वि.) [अन्तयति - अन्तं करोति .....Vवल ] मारने के आवश्यक भाग से संबद्ध, या उसका उल्लेख करने वाला, नाश करने वाला, घातक-रघु० १११२१, । वाला, 3 प्रिय, प्रियतम (-गम्) 1 अंतस्तम अंग, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy