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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पत्नी, चितना कर्तव्यों का विचार असली बेटा क्षेत्रे समवेता ययत्सवः--भग० १११, ---घटः वैशाख । के महीने में ब्राह्मण को प्रतिदिन दिये जाने वाले सुगन्धित जल का घड़ा, --चक्रभृत् (पुं०) बौद्ध या जैन, -चरणम्, -चर्या कानून का पालन, धार्मिक कर्तव्यों का सम्पादन--कु०७।८३, -चारिन् (वि.) भद्रव्यवहार करने वाला, कानन का पालन करने वाला, सद्गुणी, नेक-रघु० ३।४५, (पु०) संन्यासी --चारिणी 1. पत्नी 2. पतिव्रता सतो साध्वी पत्नी, -चिंतनम् , -चिता भलाई या सदगुणों का अध्ययन, नैतिक कर्तव्यों का विचार, नीति-विमर्श, -ज: 1. धर्म से उत्पन्न, वैष, पुत्र, असली बेटातु० मनु०९।१०७ 2. युधिष्ठिर का नाम, -जन्मन् (पुं०) युधिष्ठिर का नाम, -जिज्ञासा धर्म सम्बन्धी पूछताछ, सदाचरण विषयक पृच्छा--अथातोधर्मजिज्ञासा -जै०,-जीवन (वि.) जो अपने वर्ण के नियमानुसार निर्दिष्ट कर्तव्यों का पालन करता है, (नः) वह ब्राह्मण जो दूसरों के धर्मानुष्ठान में साहाय्य प्रदान कर अपनी जीविका चलाता है,- (बि.) सही बात को जानने वाला, नागरिक तथा धार्मिक कानूनों का जानकार--मनु० ७१४१, ८।१७९, १०।१२७ 2. न्यायशील, नेक, पुण्यात्मा,---त्यागः अपने धर्म का त्याग करने वाला, धर्मच्यत,--- दाराः (१०, ब०व०) वैध पत्नी-स्त्रीणां भर्ता धर्मदाराश्च पुंसा--मा० ६।१८, --द्रोहिन् (पुं०) राक्षस, धातुः बुद्ध का विशेषण, -..ध्वजः, ध्वजिन् (०) धर्म के नाम पर पाखंड रचने वाला, छद्मवेशी, नन्दनः यधिष्ठिर का विशेषण--नाथः कानुनी अभिभावक, वैध स्वामी,---नाभः विष्णु का विशेषण,--निवेशः धार्मिक भक्ति,-निष्पत्तिः (स्त्री०) कर्तव्य का पालन, नीति-पालन, धार्मिक अनुष्ठान,-पत्नी वैधपत्नी, धर्मपत्नी-रघु० २१२,२०,७२,८१७, याज्ञ० २६१२८, --पथः भलाई का मार्ग, चाल चलन का सन्मार्ग, --पर (वि०) धर्मपरायण, पुण्यात्मा, नेक, भला, –पाठकः नागरिक या धार्मिक कानूनों का अध्यापक, ---पाल: कानून का रक्षक (आलं. से इसे 'दंड' कहते हैं), दण्ड, सजा, तलवार,-पीडा कानून का उल्लंघन करना, कानून के प्रति अपराध,-पुनः 1. धर्मसम्मत पूत्र, (जो कर्तव्य ज्ञान की दृष्टि से उत्पन्न किया या माना गया हो केवल कामवासना का परिणाम न हो) 2. युधिष्ठिर का विशेषण, ...प्रवकत (पुं०) 1. धर्म का व्याख्याता, कानूनी सलाहकार, 2. धार्मिक शिक्षक, धर्म-प्रचारक,-प्रवचन 1. कर्तव्यविज्ञान- उत्तर० ५।२३ 2. धर्म की व्याख्या करना, (नः) बुद्ध का विशेषण,बा(वा)णिजिक: 1. जो अपने सद्गुणों से व्यापारी की भांति लाभ उठाने का प्रयत्न । करता है 2. लाभदायक व्यवसाय को करने वाले व्यापारी की भांति जो पुरस्कार पाने की इच्छा से धार्मिक कृत्यों का सम्पादन करता है,--भगिनी 1. वैधभगिनी 2. धर्मगुरु की पुत्री 3. धर्मबहन, अनरूप धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हुए जिसको बहन मान लिया जाता है,- भागिनी साध्वी पत्नी, ---भाणक: व्याख्यानदाता जो महाभारत तथा भागवत आदि ग्रन्थों की व्याख्या सार्वजनिक रूप से अपने श्रोताओं के सामने रखता है,- भ्रातु (पु.) 1. धर्मशिक्षा का सहपाठी, धर्म का भाई 2. वह व्यक्ति जिसको अनुरूप धार्मिक कर्तव्यों का पालन करते हुए, भाई मान लिया जाता है,---महामात्रः धर्ममंत्री, धार्मिक मामलों का मंत्री, मूलम् नागरिक या धार्मिक कानूनों की नींव, वेद, युगम् सतयुग, कृतयुग,-यूपः विष्णु का विशेषण,-रति (वि.) भलाई और न्याय में प्रसन्नता प्राप्त करने वाला, नेक, पुण्यात्मा, न्यायशील--रघु० १२३,--राज् (पुं०) यम का विशेषण, -राजः 1. यम 2. जिन 3. युधिष्ठिर, और 4. राजा का विशेषण,--रोधिन् (वि.) 1. कानून के विरुद्ध, अबैध, अन्याय्य 2. अनैतिक, --लक्षणम् 1. धर्म का मूल चिह्न 2. वेद, (णा) मीमांसा दर्शन, --लोपः 1. धर्माभाव, अनैतिकता, कर्तव्य का उल्लंघन-रघु० ११७६,-वत्सल (वि.) कर्तव्यशील, धर्मात्मा,---वतिन् (वि०) न्याय परायण, नेक, --वासरः पूर्णिमा का दिन,.... वाहनः 1. शिव का विशेषण 2. भैंसा (यम की सवारी), ----दिद् (वि०) (नागरिक तथा धर्म विषयक) कर्तव्य का ज्ञाता, ---विधिः वैध उपदेश, या व्यादेश,- विप्लवः कर्तव्य का उल्लंघन, अनैतिकता,-वीरः (अलं० शा० में) भलाई या पवित्रता के कारण उत्पन्न वीर रस, शौर्यसहित पवित्रता का रस, रस० में निम्नांकित उदाहरण दिया गया है :--सपदि विलयमेतु राजलक्ष्मीपरि पतन्त्वथवा कृपाणधाराः, अपहरतुतरां शिरः कृतान्तो मम तु मतिर्न मनागपंतु धर्मात् । ----वृद्ध (नि०) सद्गुण व पवित्रता की दृष्टि से आगे बढ़ा हुआ (बूढ़ा)---कु० ५।१६,-वैतंसिकः वह जो अपने आपको उदार प्रकट करने की आशा में, अवैधरूप से कमाये हए धन को दान कर देता है, -शाला 1. न्यायालय, न्यायाधिकरण 2. धर्मार्थसंस्था, शासनम्,-शास्त्रम् धर्मसंहिता न्यायशास्त्र हि० १२१७, याज्ञ. ११५, ... शील (वि०) न्यायशील, पुण्यात्मा, सदाचारी या सदगुणी,-संहिता धर्मशास्त्र (विशेष रूप से मनु, याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों द्वारा प्रणीत स्मृतियाँ), --सङ्गः 1. सद्गुण या न्याय से अनुराग या आसक्ति 2. पाखंड, सभा न्यायालय, For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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