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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1167 ) हरिताल दे० हरि के नीचे। / हर्ष हिष्+घञ] 1. आनन्द, खुशी, प्रसन्नता, संतोष, एक हरिद्रा हिरि-दु+ड+टाप् | 1. हल्दी 2. पिसी हुई सुखात्मक भाव, आनन्दातिरेक, उल्लास, आल्हाद, हल्दी दे० न० 22149 पर मल्लि०। सम०-आभ प्रमोद हर्षों हर्षो हृदयवसतिः पञ्चवाणस्तु बाणः (वि०) पीले रंग का, गणपतिः गणेशः गणेश देव -प्रसन्न० 1122, सहोत्थितः सैनिकहर्षनिःस्वनः--रघु० का विशेष रूप, राग, रागक (वि.) 1. हल्दी के 3.61 2. पुलक, रोमांच, रोंगटे खड़े होना-जैसा कि रंग का 2. अनुराग में अस्थिर, (प्रेम में) चंचलमना 'रोमहर्ष' में 3. हर्ष', 33 या 34 संचारिभावों में से हलायुध में इसकी परिभाषा क्षणमात्रानुरागश्च एक हर्षस्त्विष्टावाप्तेर्मनः प्रसादोऽश्रुगद्गदादिकरः हरिद्राराग उच्यते)। . --सा० द० 195, या, इष्टप्राप्त्यादिजन्मा सुखविशेषो हरियः [हरि-या+क पीले रंग का घोड़ा। हर्षः .. रस० / सम० -अन्वित (वि०) आनन्दयुक्त, हरिश्चन्द्रः [हरिः चन्द्र इव, सुडागमः ऋषायेव] सूर्यवंश प्रसन्न, इसी प्रकार 'हर्षाविष्ट', उत्कर्षः प्रसन्नता का का एक राजा (यह त्रिशंकु का पूत्र था, अपनी दान- आधिक्य, आनंदातिरेक, - उदयः आनन्द का होना, शीलता, धमिष्ठता तथा सचाई के लिए अत्यंत प्रसिद्ध --कर (वि०) तृप्त करने वाला, प्रसन्न करने वाला, था। एक बार इसके कुल-पुरोहित वशिष्ठ ने इसकी -जड (वि०) मन्द, मारे खुशी के जडवत् हो जाने प्रशंसा विश्वामित्र की उपस्थिति में की, विश्वामित्र वाला-रघु० ३।६८,--विवर्धन (वि०) आनंद को ने विश्वास नहीं किया। इस पर विवाद खड़ा हो बढ़ाने वाला, स्वनः आनंद की ध्दनि / गा, अंत में यह निर्णय किया गया कि विश्वामित्र / हर्षक (वि०) (स्त्री०-र्षका, षिका) [हृष् + णिच् ---ण्वुल्] स्वयं इसके सत्य की परीक्षा लें। तदनसार विश्वा खुश करने वाला, प्रसन्न करने वाला, आनंदयुक्त, मित्र ने इसे अत्यंत कठिन परीक्षण में डाला जिससे सुखकर। कि यह पता लग सके कि क्या अब भी यह अपने हर्षण (वि.) (स्त्री०-णा,-णी) [हृष -+णिच् + ल्युट] वचनों पर दृढ़ रहता है। इतना होने पर भी राजा खुशी पैदा करने वाला, प्रसन्न करने वाला, आनंद से ने उस परीक्षण में उदाहरणीय साहस का परिचय भरा हुआ, सुखद, - णः 1. कामदेव के पाँच बाणों में दिया / यद्यपि इसे इस परीक्षा में अपने राज्य से हाथ से एक 2. आंख का एक रोग 3. श्राद्ध की एक धोना पड़ा, अपने पत्नी और पुत्र को बेचना पड़ा, यहाँ अधिष्ठात्री देवता,-णम् प्रहर्ष, खुशी, प्रसन्नता, आनन्द, तक कि अन्त में अपने आपको भी एक चांडाल के घर उल्लास - दुहुंदामप्रहर्षाय सुहृदां हर्षणाय च-महा। बेचना पड़ा। अपने अदम्य साहस और सचाई के हर्षयित्नु (वि.) हृष्+णिच् + इत्तु] आनन्ददायक, सुखलिए हरिश्चन्द्र को अपनी पत्नी को मायाविनी मान / कर, खुश करने वाला, प्रसन्नता देने वाला। कर मारने के लिए भी तैयार होना पड़ा, तब कहीं हर्षलः हृष् +उलच] 1. हरिण 2. प्रेमी। विश्वामित्र ने अपनी हार मानी और योग्य राजा को हल (भ्वा० पर० हलति हलित) हल चलाना / प्रजा समेत स्वर्ग में ऊंचा आसन दिया गया)। हलम् [हल घार्थे करणे क लांगल, खेत जोतने का एक हरीतकी [हरि पीतवर्ण फलाद्वारा इता प्राप्ता-हरि+इ प्रधान उपकरण- वहसि वषि विशदे वसनं जलक्त+कन+ ङीष हर्र का पेड़। दाभम् / हलह तिभीतिमिलितयमुनाभम् --या-हलं हर्त (वि०) (स्त्री० ii) [ह+तच] उठा कर ले जाने कलयते-गीत०१। सम० आयुधः बलराम का वाला, छीनने वाला, लूटने वाला, ग्रहण करने वाला विशेषण, धर,-भूत् (पं.) 1. हाली, हलचलाने _ आदि, (पुं०) चोर, लुटेरा--भर्तृ० 2 / 16 2. सूर्य / / वाला 2. बलराम का नाम केशवधृतहलधररूप हमन् (नपुं०) [ह+मनिन् मह फाड़ना, जंभाई लेना। जय जगदीश हरे-गीत०, अंसन्यस्ते सति हलभूतो हमित (भू० क० कृ०) हिर्मन --इतच] 1. जिसने मुंह मेचके वाससीव मेघ० ५९,-भूतिः, भूतिः हल फाड़ा है, जिसने जम्हाई ली है 2. डाल दिया गया, चलाना, कृषिकर्म, किसानी, हतिः (स्त्री०) 1. हल फेंका गया 3. जलाया गया / के द्वारा प्रहार करना या खूड निकालना 2. जुताई हर्म्यम् [ह-।-यत्, मुटु च] 1. प्रासाद, महल, कोई भी विशाल या हल चलाना। भवन या बड़ी इमारत हयंपृष्ठं समारूढः काकोऽपि हलहला अहो, वाह रे आदि आश्चर्यसूचक अव्यय / गरुडायते-सुभा०, बाह्योद्यानस्थितहरशिरश्चन्द्रिका- हला हि इति लीयते ह-ला+क+टाप] 1. सखी, सहेली धौतहा -मेघ०७, ऋतु० 1128, भट्टि०८।३६, रघु० 2. पृथ्वी 3. जल 4. मदिरा (अव्य०) नाटकोय 6147, कु०६।४२२. तंदूर, अंगीठी, चूल्हा 3. आग भाषा में) किसी सखी या सहेलो को संबोधित करना का कुंड, यंत्रणा-स्थान, नरक। सम० अङ्गानम्,-णम् ----हला शकुन्तले अव तावन्महतं तिष्ठ-श०१, महल का अगिन,-स्थलम् महल का कमरा। तु० 'हंडा' भी। +इल आ कहीं न कर, खुश करने वा For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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