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( ७१ )
अभिज्ञानम् [अभिज्ञा +ल्युट] 1. पहचान, तदभिज्ञान- | अभिधानम् [अभि+धा+ल्युट्] 1. कहना, बोलना, नाम
हेतोहि दतं तेन महात्मना-रामा० 2. स्मरण, प्रत्या- रखना, संकेत करना,--एतावतामर्थानामिदमभिधानम् स्मरण 3. (क) पहचान का चिह्न (पुरुष या वस्तु), जिरु. 2. प्रकथन, वचन दे० पा० २।३।२ सिद्धा. 3. -वत्स योगिन्यस्मि मालत्यभिज्ञानं च धारयामि नाम, संज्ञा, पद,-अभिधानं तु पश्चात्तस्याहम-मा० ९, भट्टि०८1११८, १२४ इसी प्रकार शाकु- श्रीषम्-का० ३२, तवाभिधानास व्यथते नताननः न्तलं 4. चन्द्रमंडल में काला चिह्न। सम०-आभ- कि० १। ऋणाभिधानात् २४, (समस्तपद के अन्त रणम् पहचान का भूषण, अंगूठी श० ४ ।
में) पुकारा गया, नाम लिया गया--ऋणाभिधानात् अभितः (अव्य.) [ अभि+तसिल ] (क्रि. वि. के रूप । बंधनात्-रघु० ३।२०, 4. भाषण, व्याख्यान 5. कोश,
में अथवा कर्म के साथ संब० अव्य के रूप में प्रयुक्त) | शब्दावली, लुगत (अंतिम दो अर्थों में पुं० में भी) 1. निकट, की ओर, सब ओर से,—अभितस्तं पृथा- __ 1. सम-कोशः,--माला शब्दकोश । सूनुस्नेहेन परितस्तरे-कि० ११३८, 2. (क) निकट अभिधायक(स्त्री० --यिका,--पिनी)) (वि.)[अभि+धा मिला हआ, समीप में,...ततो राजाब्रवीद्वाक्यं सुमंत्रम- | अभिधायिन
+बुल, णिनि वा] भितः स्थितम्-रामा० (ख) के सामने, की उप- 1. नाम रखने वाला, वाचक,-कर्षः कूल्याभिधायिनी स्थिति में,-तन्वन्तमिद्धमभितो गुरुमंशुजालम-कि० --अमर०,-संकेत करता है, अर्थ बतलाता है, भाव २१५९, 3. सम्मुख, मुंह के आगे, सामने कि० ६१, रखता है, 2. कहने वाला, बोलने वाला, बतलाने५, १४, 4. दोनों ओर, --चूडाचुंबितककपत्रमभितस्तू- वाला,----लक्ष्मीमित्यभिधायिनि प्रियतमे-अमरु० २३, णीद्वयं पृष्ठत:-उत्तर० ४।२०, भट्टि० ९।१३७, 5. वाच्याभिधायी पुरुषः पृष्ठमांसाद उच्यते--त्रिका० । पहले और पीछे 6. सब ओर से, चारों ओर से, |
अभिधावनम् अवि-धाव् + ल्यट] आक्रमण, पीछा करना। (कर्म० या संब० के साथ)-परिजनो यथाव्यापारं
। यथाव्यापार अभिधेय (सं० कृ०) [अभि+या+यत्] 1. नाम दिये
गमक राजानमभितः स्थितः--मालवि० ११७, 7. पूर्ण रूप से,
जाने योग्य, कथनीय, वाच्य 2. नाम के योग्य (तर्क० पूरी तरह से, सर्वत्र 8. शीघ्र ही।
में) अभिधेयाः पदार्थाः,-यम् 1. सार्थकता, अर्थ, भभितापः [अभिप्- घा] अत्यंत गर्मी-चाहे शरीर की भाव, तात्पर्य-कि० १४५, 2. भावाशप 3. विषय,
हो या मन की, भावावेश, कष्ट, अधिक दुःख या पीड़ा -इहाभिधेयं सप्रयोजनम--काव्य० १, इति प्रयो-शि० ९।१, कि०९।४, बलवान्युनमें मनसोऽभितापः जनाभिधेयसंबंधा:-मग्य 4. मख्यार्थ (=अभिधा.) -विक्रमः ३ ।
---अभिवेयाविनाभतप्रतीतिर्लक्षणोच्यते-- काव्य०२। अभिताम्र (वि.) [प्रा० स०] बहुत लाल, लालसुर्ख | अभिध्या [अभि+ध्ये+अ+टाप्] 1. दूसरे की संपत्ति -रघु० १५१४९।
के लिए ललचाना, 2. प्रवल कामना, चाह, सामान्य अभिवक्षिणम् (अव्य०) [ अव्य० स० ] दक्षिण की ओर इच्छा,--अभिध्योपदेशात्--ब्रह्म० 3. ग्रहण करने की
(=तु. प्रदक्षिणम् ) । अभिनवः --द्रवणम् [अभिद्रु+अ+ल्युट वा] आक्रमण, | अभिध्यानम् अभि+ध्य-+ ल्युट्] 1. चाहना, प्रबल इच्छा हमला।
करना, ललचाना, कामना करना 2. मनन करना, अभिवोहः [अभि-दूह+घञ ] 1. चोट पहुंचाना, षड्यंत्र | प्रचितन । रचना, हानि, क्रूरता 2. गाली, निन्दा।
अभिनन्दः [ अभि+नन्द्+घञ्] 1. प्रहर्ष, प्रफुल्लता, अभिधर्षणम् [ अभि+ -+ ल्युट् ] 1. भूत प्रेतादि से । प्रसन्नता 2. प्रशंसा, सराहना, अभिनन्दन, बधाई देना, आविष्ट होना 2. अत्याचार ।
3. कामना, इच्छा, 4. प्रोत्साहन, कार्य में प्रेरणा । अभिधा [अभि+धा+अङ-+-टाप्] 1. नाम, संज्ञा (प्रायः अभिनन्दनम् [अभि+नन्+ल्युट्] 1. प्रहर्षण, अभिवादन,
समास में). कुसुम वसन्ताद्यभिधः-सा० द० २ स्वागत करना, 2. प्रशंसा करना, अनुमोदन करना 2. शब्द, ध्वनि 3. शाब्दिक शक्ति या शब्दार्थ, संके- 3. कामना, इच्छा। तन, शब्द की तीन शक्तियों में से एक,---वाच्यार्थो अभिनन्दनीय) (सं० कृ०) [अभि+नन्द+अनोय, ण्यत् भिषया बोव्यः - सा० द० २ (अभिधा--शब्द के अभिनन्ध वा ] प्रहृष्ट होना, प्रशंसित होना, सराहा संकेतित अर्थ को बतलाती है) स मुख्योर्थस्तत्र मुख्यो । जाना,-काममेतदभिनन्दनीयम्-०५, रघु० ५।३१। यो व्यापारोऽस्याभियोच्यते--काव्य. २ । सम० अभिनन (वि०)[प्रा० स०] झुका हुआ, विनीत,-स्तना---ध्वंसिन (वि०) अपने नाम को नष्ट करने वाला भिरामस्तकाभिनम्राम् रघु० १३।३२। -मूल (वि०) शब्द के संकेतित या मुख्यार्थ पर अभिनयः [अभि+नी+अच् 1 नाटक खेलना, अंग आधारित।
विक्षेप, नाटकीय प्रदर्शन (किसी मनोभाव या आवेश को
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