SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 952
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 943 ) 1. परस्परविरुद्ध, विरोधी, असहमत 2. घबड़ाया 4. अनक्य, पार्थक्य, अलगाव 5. प्रेमियों का बिछोह हुआ, व्याकुल, हरान 3. मुकाबले का, विवादग्रस्त .-- शश्रुवे प्रियजनस्य कातरं विप्रलम्भपरिशंकिनो 4. परस्परसंयुक्त या सम्बद्ध / वचः रघु० 19 / 18, वेणी०२।१२ 6. (अल में) विप्रतिषेधः वि-प्रति--सिध+धन 1 1. नियन्त्रण विप्रलम्भ श्रृंगार (इसमें नायक नायिका के विरह में रखना, वश में रखना 2. समान रूप से महत्त्वपूर्ण जन्य सन्ताप आदि का वर्णन किया जाता है) शृंगार दो बातों का विरोध, दो समान हितों का संघर्ष के दो मुख्य भेदों में से एक, (विपः संभोग) ... अपरः ---हरिविप्रतिषेधं तमाचचक्षे विचक्षणः शि० 2 / 6, (विप्रलम्भः) अभिलाष दिरहेा प्रवास शापहेतुक (तुल्यबलविरोधो विप्रतिषेधः / मल्लि०) 3. (व्या० इति पंचविधः .. काव्य० 4, युनोर युक्तयोर्भावो में) दो नियमों का (जिनसे दो भिन्न नियमों के युक्तयोथवा मिथः / अभीष्टालिङ्गनादीनामनवाप्ती अनुसार व्याकरण की दो भिन्न प्रक्रियाएं सम्भव हो) प्रहृष्यते / विप्रलम्भः स विशेष: .उज्ज्वलनीलमणिः, संघर्ष, समानरूप से महत्त्वपूर्ण दो नियमों की टक्कर तु० सा० द० 212, तथा आगे / .....विप्रतिषेधे परं कार्यम् पा० 11412, इस पर दे० | विप्रलापः वि-प्र--लप -घा : 1. व्यर्थ या निरर्थक काशिका या महाभाष्प) 4. रोक, वर्जन / बात, बकवास, अनाप-शनार, निस्सार 2. पारस्परिक विप्रति (तो) सारः [वि-प्रति+स+घञ , पक्षे दीर्घः] बचनविरोध, विरोधो उक्तियां 3. झगडा, तू-तू मैं-मैं 1. पछतावा, शि० 10120 2. क्रोध, रोष, गुस्सा 4. अपनी प्रतिज्ञा तोड़ना, वचन पूरा न करना। 3. दुष्टता, अनिष्ट / विप्रलयः [विशेषेण प्रलय: प्रा० स० पूर्ण विनाश या विप्रदुष्ट (भू० क. कृ.) [वि+प्र+दुष्+क्त ] विघटन, सर्वनाश, विद्याकल्पेन मरुता मेपानां भूय1. दूपित, विकृत, मलिन 2. भ्रष्ट / सामपि, ब्रह्मणीव विवर्तानां वापि विप्रलयः कृतः विप्रनष्ट (भू० क० कृ०) [वि--प्र+न+क्त ] --उत्तर०६६। ___ 1. खोया हुआ, लुप्त 2. व्यर्थ, निरर्थक / विप्रलुप्त (भू० क. कृ.) [वि+प्र लुप्-त1. अपविप्रमुक्त (भू० क० कृ०) [वि+प्रमुच्+क्त ] हत, छीना हुआ2. बाधायुक्त, हस्तक्षेप किया गया / 1. स्वतन्त्र छोड़ा हुआ, आजाद किया हुआ, खुला विप्र,लोभिन् (पुं० [वि+लुभ् +-णिच् +णिनि] दो वृक्षों छोड़ा हुआ 2. मोली का निशाना बनाया गया, के नाम, अशोक और किकिरात / बन्दूक से दागा गया 3. छुटकारा पाया हुआ। विप्रवासः[वि+प्र-बस-|-घा] परदेश में रहना, विदेश विप्रयुक्त (भू० क० कृ०) [वि-प्र-युज्+क्त ] में निवास करना (अपनी जन्मभूमि से दूर रहना) / :.पृथक किया हुआ, वियक्त, विच्छिन्न 2. अलग | बिप्रश्निका [विशेषेण प्रश्नो यस्याः वि+प्रश्न+कप् हुआ, अनुपस्थित मेघ० 2 3. मुक्त किया हुआ, +टाप, इत्वम् स्त्री ज्योतिषी, जो भाग्य की बातें रिहा किया हुआ वञ्चित, विरहित, बिना (समास में)। विग्रहीण (वि.) [वि-प्र+हा+का वञ्चित, विरहित / विप्रयोगः वि+प्रयज+घा11. अनैक्य पार्थक्य, | विप्रिय (वि.) [वि+प्री-क, इपड़] अरुचिकर, जो वियोग, अलगाव, जैसा कि प्रिय में 2 विशेषकर पसन्द न हो, जो सुखद न हो, जो स्वादिष्ट न हो, प्रेमियों का बिछोह-मा भूदेवं क्षणमपि च ते विद्युता . यम् अपराध, अनिष्ट, अरुचिकर कार्य मनसापि विप्रयोगः मेघ० 115, 10, रघु०१३।२६, 14166 न विप्रियं मया कृतपूर्व तव किं जहासि माम् - रघु० 3. कलह, असहमति / 8152, कु. 417, कि० 9 / 39, शि० 15 / 11 / / विप्रलब्ध (भू० क. कृ.) [वि -प्र+लभ्+क्त ] | विष (स्त्री) [वि-प्रष--- क्विए] 1. (पानी या किसी 1. धोखा दिया गया, ठगा गया 2. निराश किया अन्य द्रव की) बूंद संतापं नवजलविद्युषो गृहीत्वा गया 3. चोट पहुंचाया गया, क्षतिग्रस्त,-क्या वह -शि० 8 / 40, स्वेदविषः - 2 / 18 2. चिह्न, स्त्री जो अपने प्रियतम को नियत स्थान पर न पाकर बिन्दु, धब्बा। निराश हो गई हो (काव्यग्रन्थों में वणित एक विप्रोषित (भू० क. कृ.) [वि-+-प्र-वस्+क्त] 1. परनायिका)-सा०द० 118 पर दी गई परिभाषा -- देश में रहना, जन्मभूमि से दूर होना, अनुपस्थित प्रियः कृत्वागि संकेतं यस्या नायाति संनिधिम् / 2. निर्वासित, देशनिकालाप्राप्त रघु० 12 / 11 / विप्रलब्धेति सा ज्ञेया नितान्तमवमानिता / / सम० भर्तका वह स्त्री जिसका पति परदेश गया विप्रलम्भः [वि+प्रलम्भ-+घञ ] 1. घोखा, छल, चालाकी-कि० 11127 2. विशेषकर मिथ्या उक्तियों विप्लवः [विप्ल+अप] 1. बहना, इधर-उधर टहलना, या झूठी प्रतिज्ञाओं से छलना 3. कलह, असहमति विभिन्न दिशाओं में बहना 2. विरोध, वैपरीत्य, विप्रयुक्त किया हुआ, वियुक्त, मक्त किया हुआ, लाये। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy