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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपलम् [विभक्तं पलं येन-प्रा० ब०] क्षण, समय का ) --कि० 18 / 14 3. गहरा, अगाध-महावी० 112, अत्यंत छोटा प्रभाग (जो पल का साठवां या छठा रोमाञ्चित, पुलकित शि०१६॥३, (यहाँ 'प्रथम' भाग समझा जाता है)। अर्थ भी घटता है, --ल: 1. मेरु पर्वत 2. हिमालय विपलायनम् विशेषेण पलायनम् -प्रा० स०] दौड जाना, | पर्वत 3. संमाननीय पुरुष / सम-छाय (वि.) विभिन्न दिशाओं को भाग जाना / छायादार, छायामय,---जघना विशाल कूल्हों वाली विपश्चित (वि.) [विप्रकृष्ट चिनोति चेतति चिन्तयति स्त्री,-मति (वि०) मनीषी, प्रज्ञावान,- रसः गन्ना, वा-वि+प्र+चित्+विब, पृपो०] विद्वान्, ईख / बद्धिमान-विपश्चितो विनिन्यरेनं गुरवो गुरुप्रियम् / विपुला [ विपूल-टाप् ] पृथ्वी / रघु० 3 / 29, पुं० - एक विद्वान या बुद्धिमान् | विपूयः [वि+पू+क्यप् ] 'मुंज' नामक घास / पुरुष, मुनि- भवति ते सभ्यतमा विपश्चितां मनोगत विप्रः [ वप् रन पूषो० अत इत्वम् ] 1. ब्राह्मण, उशवाचि निवेशयंति ये--कि० 1414 / रण, दे० 'ब्राह्मण' के अन्तर्गत::. मलि, बुद्धिमान पुरुष विपाकः वि--पच्-घा] 1. खाना पकाना, भोजन 3. पोपल का पेड़ / सम० ऋषिः- ब्रह्मर्षि दे०, बनाना 2. पाचनशक्ति 3 पकना, पक्वता, परिपक्वता, - काष्ठम् रूई का पौधा,- प्रियः पलाश का वृक्ष, विकास (आलं० भी)-अमी पृथस्तंबभूतः पिशङ्गता ढाक,... समागम् ब्राह्मणों का जमाव या धर्मपरिषद, गता विपाकेन फलस्य शालयः-कि० 4 / 26, वाचा -- स्वम् ब्राह्मणों की संपत्ति / बिपाको मम ...-भामि० 4 / 42, 'मेरे परिपक्व, पूर्ण विप्रकर्षः [ वि-प्र-कृष -घा दूरी, फासला। विकसित अथवा गौरवान्वित शब्द' 4. परिणाम, फल, विप्रकारः [वि --प्र+कृ-घा | 1. अपमान, कट व्यवनतीजा, पूर्वजन्म अथवा इस जन्म के कर्मों का फल, ---.. | हार, दुर्वचन, तिरस्कारयुक्त व्यवहार कि० 3 / 55 अहो मे दारुणतरः कर्मणां विपाक: --- का० 354, 2. क्षति, अपराध 3. दुष्टता 4. विरोध, प्रतिक्रिया ममैव जन्मांतरपातकानां विपाकविस्फूर्जथरप्रसह्यः / 5. प्रतिहिंसा। -रधु० 14162, भर्तृ० 199 महावी० 5 / 56, विप्रकीर्ण (वि.) [वि+प्र+--क्त ] 1. इधर उधर 5. (क) अवस्थापरिवर्तन उत्तर० 4 / 6, (ख) फैलाया हुआ, तितर बितर किया हुआ, बिखेरा हुआ असंभावित बात या घटनाव्यतिक्रम, भाग्य का पलटा 2. ढीला, (बाल आदि) बिखरे हुए 3. प्रसारित, खाना दुःख, संकट, उत्तर० 313, 4112 6. कठि- बिछाया हुआ . चौड़ा, विस्तृत / नाई, उलझन 7, रसास्वाद, स्वाद / विप्रकृत (म० क० कृ०) वि-+-प्र+-+क्त] 1. आहत, विपाटनम् [वि---पट् --णिच् + ल्युट ] 1. खण्ड खण्ड / जिसे ठेस पहुंचाई गई है, घायल 2. अपमानित, जिसे करना, फाड़ कर खोलना 2. उखाडना 3. अपहरण। / गाली दो गई है, जिसके साथ कव्यवहार किया गया विपाठः (0) एक प्रकार का लंबा तीर / है 3. जिससे विरोध किया गया है 4. प्रतिहिसित, विपाण्ड, विपाण्डर (वि.)। विशेषेण पाण्डः, पाण्डर: जिससे बदला ले लिया गया है (दे० विप्र पूर्वक कृ)। प्रा० स०] विदर्ण, पीला, कि० 516, शि० 9 / 3, विप्रकृतिः (स्त्री०) 1. क्षति, आघात 2. अपमान, अपशब्द, इसी प्रकार 'विपांडर' - शि० 4 / 5, रत्न० 2 / 4 / कट व्यवहार 3. प्रतिहिंसा, बदला। विपादिका (स्त्री) 1 पैर का एक रोग, बिवाई 2. प्रहे- विप्रकृष्ट (भू० क. कृ.) / वि+प्र-+-कृष्+क्त ] लिका, पहेली। 1. खींच दिया गया, हटाया हुआ 2. फासले पर, विपाश, विपाशा (स्त्री०) [ पाश विमोचयति-विपश् दूर का, दूरवर्ती 3. सुदीर्घ, लम्बा किया गया, णिच् + क्वि, विपश्-+-णिच् + अच् -टाप् / विस्तारित। पंजाब को एक नदी, वर्तमान व्यास नदी। विप्रकृष्टक (वि०) [ विप्रकृष्ट+कन् ] दूरवर्ती, फासले विपिनम् / वेपन्ते जनाः अत्र वे+इनन, ह्रस्व ] जंगल, पर।। वन, व टिका, झुरमुट--वृन्दावन विपिने ललितं वित- विप्रतिकारः [विप्रति+कृ--घा ] 1 प्रतिक्रिया, नोत् शुभानि यशस्थम् गोत. 1, विपिनानि प्रका- विरोध, वचनविरोध 2. प्रतिहिसा। शानि शक्तिमत्वाच्चकार सः --रघु० 4 / 31 / विप्रतिपत्तिः (स्त्री०) वि-प्रति-+पद्-+क्तिन / विपुल (वि.) [विशेपेग पोलति-वि+पूल+क | 1. पारस्परिक असंगति, प्रतियोगिता, संघर्ष, झगड़ा, 1. विशाल, विस्तृत, आयत, विस्तीर्ण, चौड़ा, प्रशस्त विरोध (मतों का या हितों का) :. असहमति, विपुलं नितम्बदेशे ...मालवि० 3 / 7, शिरसि तनु- . आपत्ति 3. हैरानी, घबड़ाहट 4. पारस्परिक सम्बन्ध विपुलश्च मध्यदेशे--मच्छ 0 3122, इसी प्रकार विपु- परिचय, जानपहचान / लम् पृष्ठम्, विपुलः कुक्षि: 2. बहुत, पुकल, पर्याप्त, विप्रतिपन्न (भू. क. कृ०) [ विप्रति+पद्+क्त ] For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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