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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विपक्व (वि+पच्+क्त] 1. पूर्णरूप से पका हुआ, परि। विपरिणमनम्, विपरिणामः [वि+परि+नम् + ल्युट, पक्व 2. विकसित, पूर्ण अवस्था को प्राप्त-कि० घश्वा ] 1. परिवर्तन, बदलना 2. रूपपरिवर्तन, 6 / 16 3. पकाया हुआ। रूपान्तरण / विपक्ष (वि.) [विरुद्धः पक्षो यस्य प्रा० ब०] वैरी, / विपरिवर्तनम् [वि+परि+वृत्+ल्यूट्] इधर उधर मुड़ना, शत्रुतापूर्ण, प्रतिकूल, विरुद्ध, क्षः 1. शत्रु, विरोधी, लुढ़कना। प्रतिरोधी-रघु० 17175, शि० 11159 2. वह | विपरीत (वि.) [वि+परि++क्त ] 1. प्रतिवर्तित, पत्नी जिसकी दूसरी के साथ प्रतिद्वन्द्विता चल रही विपर्यस्त 2. प्रतिकूल विरोधी, प्रतिवर्ती, औंधा-रघु० हो- रघु० 10120 3. झगड़ाल कि० 17443 2 / 53 3. अशुद्ध, नियमविरुद्ध 4. मिथ्या, असत्य 4. (तर्क में) नकारात्मक दृष्टान्त, विपक्षियों की ओर --भामि०२।१७७ 6, अननकल, उलटा 6. व्यत्यस्त, से दिया गया दृष्टान्त (अर्थात् वह पक्ष जिसमें साध्य उलटे ढंग से अभिनय करने वाला 7. अरुचिकर, का अभाव हो), निश्चितसाध्याभाववान् विपक्षः अशुभ,-तः एक रतिबंध, ता 1. दुश्चरित्रा, असती -तर्क०, मुद्रा० 5.10 / पत्नो 2. पुंश्चली स्त्री। सम० कर,-कारक-कारिन, विपंचिका, विपंची [विपंची कन् / टाप्] 1. वीणा ---कृत (वि.) कुमार्गी, विरुद्ध ढंग से कार्य करने 2. खेल, क्रीडा, मनोरंजन | वाला-शि० १४१६६,-चेतस्,-मति (वि०) जिसका विपणः, विपणनम् [वि+पण्+पत्र , ल्युट् वा] 1. विक्री | दिमाग फिर गया हो,--रतम् रतिक्रिया का उलटा मनु० 3 / 152 2, छोटा व्यापार / आसन, तु० 'पुरुषायित'। विपणिः, णी (स्त्री०) [विपण- इन्, विपणि-+डीष] | विपर्णकः [विशिष्टानि पर्णानि यस्य -प्रा० ब०] पलाश 1. बाजार, मण्डी, हाट, हा हा नश्यति मन्मथस्य | का वृक्ष, ढाक का पेड़ / विपणिः सौभाग्यपण्याकरः --मच्छ० 8138, शि० विपर्ययः [वि+परि+इ+अच् ] 1. वैपरीत्य, व्यतिक्रम, 5 / 24, रघु०१६।४१ 2. बिक्री के लिए रक्खा हुआ औंधापन-आहितो जयविपर्ययोऽपि मे इलाध्य एव माल, सामान 3 वाणिज्य, व्यापार-मनु० 10 / 116 / परमेष्ठिना त्वया--रघु० 11386, 8189, नमस: विपणिन् (पुं०) [विपण ---इनि] व्यापारी, सौदागर, स्फुटतारस्य रात्रेरिव विपर्ययः (न भाजनम्) कि. दुकानदार शि० 5 / 24 / 1344, विपर्यये तु--श० 5, 'यदि अन्यथा हुआ' विपत्तिः (स्त्री०) [वि+पद्+क्तिन] 1. संकट, दुर्भाग्य, यदि इसके विपरीत हुआ 2. (अभिप्राय, वेश आदि अनर्थ, अनिष्टपात, आफत संपत्तौ च विपत्तौ च बदलना-कथमेत्य मतिविपर्ययं करिणी पंकमिवावमहतामेकरूपता--सुभा० 2. मृत्य, बिनाश अति सीदति-कि० 216, इसी प्रकार 'वेषविपर्यय:'--पंच. रभसकृतानां कर्मणामाविपत्तेर्भवति हृदयदाही शल्य- 1 3. अभाव, अनस्तित्व --- समुद्रगारूपविपर्ययेऽपि तुल्यो विपाकः- भर्त० 2 / 99, रघु०१९।५६, वेणी० --कु० 7142, त्यागे श्लाघाविपर्यय:--- रघु० 1122 416, हिमसेकविपतिः नलिनी --रघु० 8 / 45 3. वेदना, 4. लोप, हानि निद्रा संज्ञाविपर्ययः .. कु. 6 / 44, यातना--त्तिः (पुं०) श्रेष्ठ पदाति, पैदल-सिपाही- 'सुधबुध न रहना' 5. पूर्ण विनाश, ध्वंस 6. विनिमय, कि० 15 / 16 / अदल बदल 7. श्रुटि, उल्लंघन, भूल, कुछ का कुछ विपथः [विरुद्धः पन्था--प्रा० स०] बुरी सड़क, कुमार्ग / समझना 8. संकट, दुर्भाग्य, उलटा भाग्य 9. शत्रुता, (शा० तथा आलं०)। दुश्मनी। विपद् (स्त्री०) [वि+पद्+क्विप्] 1. संकट, दुर्भाग्य, | विपर्यस्त (भू० क. कृ०) [ विपरि+अस+क्त ] आपदा, दुःख-तत्त्वनिकषग्रावा तु तेषां (मित्राणां) 1. परिवर्तित, व्युत्क्रान्त, उलटा हुआ--हत विपर्यस्तः विपद् हि० 11210 2. मृत्य सिंहादवापद्विपदं संप्रति जीवलोकः-उत्तर० 1 2. विरोधी, प्रतिकूल नृसिंहः रघु० 18135 / सम०-उद्धरणम्,-उद्धारः, 3. भूल से वास्तविक समझा हुआ। मुसीबत से राहत, विपत्ति से मुक्ति,-काल: आव- | विपर्यायः [वि---परि++घा] 1. उलटापन, वैपरीत्य, श्यकता का समय, संकट-काल, मुसीबत, युक्त दे० 'विपर्यय'। (वि०) अभागा, दुःखी। विपर्यासः [वि। परि+अस्+घञ्] 1. परिवर्तन, वैपविपदा-दे० 'विपद्'। रीत्य, व्यतिक्रम-विपर्यास यातो घनविरलभावः क्षितिविपन्न (भू० क. कृ.) [विपद् +क्त] 1. मरा हुआ रुहाम् .. उत्तर० 127 2. विपरीतता, अननुकूलता 2. लुप्त, नष्ट 3. अभागा, कष्टग्रस्त, दुःखी, मुसीबत- ---- यथा 'देवविपर्यासात्' में 3. अन्त: परिवर्तन, अदलजदा 4. क्षीण 5. अयोग्य, अशक्त (दे० वि पूर्वक बदल-प्रवहण विपर्यासेनागता मृच्छ० 8 4. त्रुटि, - पद्),- न्न: सांप। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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