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- शि० २।१७, अमरु, १५।७२, ९४, कण्ठाश्लेषप्रणयिनि जने - मेघ० ३।१०६, २. संपर्क, घनिष्ट संबंध, संबंध, पा ९वाँ नक्षत्र । आश्व ( वि० ) ( स्त्री [० श्वी ) [ अश्व + अण् ] घोड़े से सम्बन्ध रखने वाला, घोड़े के पास से आने वाला, —श्वम् घोड़ों का समूह । avare ( वि० ) ( स्त्री० त्यी ) [ अश्वत्थ + अण् ] पीपल के वृक्ष से संबंध रखने वाला, या पीपल से बना हुआ, त्यम् पीपल का फल, बरबटे । आश्वयुज ( वि० ) ( स्त्री० जी ) [ अश्वयुज् + अण् ] आश्विन मास से संबंध रखने वाला, जः आश्विन मास - मनु० ६।१५, जो आश्विन की पूर्णिमा का दिन ।
आवलक्षणिकः अश्वलक्षण-ठक् ] सलोतरी, अश्वचिकित्सक, साइस, (घोड़े की देखभाल करने वाला) । आश्वासः [ आ + श्वस् + ञ ]1. सांस लेना, मुक्त श्वास लेना, चेतना लाभ 2. तसल्ली, प्रोत्साहन 3. रक्षा और सुरक्षा की गारंटी 4. रोकथाम 5. किसी पुस्तक का पाठ या अनुभाग । आश्वासनम् [ आ + श्वस् + णिच् + ल्युट् ] प्रोत्साहन, दिलासा, तसल्ली - तदिदं द्वितीयं हृदयाश्वासनम्
-श० ७।
आश्विक: [ अश्व + ठञ ] घुड़सवार । आश्विनः [ अश् + विनि ततः अण् ] मास का नाम ( जिसमें चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र के निकट होता है ) आश्विनेयौ (द्वि० द० ) [ अश्विनी + ढक् ] 1. दो अश्विनी कुमार ( देवताओं के वैद्य) 2. नकुल और सहदेव के नाम, पांच पांडवों में से अन्तिम दो ।
आश्विन (वि० ) ( स्त्री० - नी ) घोड़े द्वारा व्याप्त (यात्रा आदि) नोऽध्वा --- सिद्धा० ।
आवादः [ आषाढ़ी पूर्णिमा अस्मिन्मासे अण् ] 1. हिन्दुओं का एक महीना ( जून और जुलाई में आने वाला), - आषाढस्य प्रथमदिवसे मेघ० २, शेते विष्णुः सदाषाढ़े कार्तिके प्रतिबोध्यते - वि० पु० 2. ढाक की लकड़ी का दण्ड जिसे संन्यासी धारण करते हैं-अथाजिनाषाढ़घर: प्रगल्भवाक् कु० ६१३०, – डा २०वाँ या २१ व नक्षत्र - पूर्वाषाढ़ा तथा उत्तराषाढा, ढी आषाढ़ मास की पूर्णिमा ।
माष्टमः [ अष्टम + ञ] आठवां भाग । आसू, आ: ( अव्य० ) निम्नांकित अर्थों को प्रकट करने वाला विस्मयादिद्योतक अव्यय - (क) प्रत्यास्मरण -आः उपनयतु भवान् भूर्जपत्रम् - विक्रम ० २ (ख) क्रोध -- आः कथमद्यापि राक्षसत्रासः - उत्तर० १- आ पापे तिष्ठ तिष्ठ – मा० ८ (ग) पीड़ा-आः शीतम् - काव्य १० (ष) अपाकरण ( सरोष विरोध )
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- आः क एष मयि स्थिते मुद्रा० १-आः वृथामंगलपाठक वेणी० १ (ङ) शांक, खेद - विद्यामातरमाः प्रदश्यं नृपशून् भिक्षामहे निस्त्रपाः उद्भट | आसू ( अदा० आ० ) ( आस्ते, आसित ) 1. बैठना, लेटना, आराम करना - एतदासनमास्यताम् विक्रम ० ५ - आस्यतामितिचोक्तः सन्नासीताभिमुखं गुरोः मनु० २।१९३ 2. रहना, वास करना तावद्वर्षाण्यासते देवलोके - - महा०, यत्रास्मै रोचते तत्रायमास्ताम् का० १९६ - कुरूनास्ते - सिद्धा० 3. चुपचाप बैठे रहना, शत्रुतापूर्ण व्यवहार न करना, बेकार बैठना आसीनं त्वामुत्थापयति द्वयम् शि० २५७, 4 होना, अस्तित्व या विद्यमानता होना 5. स्थित होना, रक्खा होना -- जगन्ति यस्यां सविकाशमासत- शि० १।२३८. मानना, टिके रहना, किसी अवस्था में ठहरना या निरन्तर रहना ( अनवरत या निर्बाध क्रिया को प्रकट करने के लिए बहुधा वर्तमान कालिक कृदन्त प्रत्ययों के साथ इस धातु का प्रयोग होता है- विदारयन्प्रगर्जश्चास्ते - पंच० १, फाड़ता रहा और गरजता रहा 7. परिणत होना, परिणाम होना ( सम्प्र० के साथ ) - आस्तां मानसतुष्ट्ये सुकृतिनां नीतिर्नवोढेव वः - हि० १०२१२ 8. जाने देना, एक ओर कर देना या रख देना, -आस्तां तावत् रहने दो, जाने दो, प्रेर०- बिठाना, बिठलवाना, स्थिर करना - आसयत्सलिले पृथ्वीम् सिद्धा०, अधि - लेटना, बसना, अधिकार करना, प्रविष्ट होना ( स्थान में कर्म० के साथ ) -- निदिष्टां कुलपतिना स पर्णशालामध्यास्य - रघु० ११९५, २१७, ४ ७६, ६।१०, भगवत्या प्राश्निकपदमध्यासितव्यम् - मालवि ० १, अनु- 1. निकट बैठाया जाना 2. सेवा करना, सेवा में प्रस्तुत रहना- सखीभ्यामन्वास्यते - श० ३, अन्वासितमरुन्धत्या रघु० ११५६ 3. घरना देना -तामन्वास्य- रघु० २।२४, उद् उदासीन या बेलाग होना, निश्चिन्त या निरपेक्ष होना, निष्क्रिय या अकर्मण्य होना तत्किमित्युदासते भरता: मा० १- विधाय वरं सामर्षे नरोऽरौ य उदासते शि० २१७२, भग० ९९, मुद्रा० १, उप 1. सेवा में प्रस्तुत होना, सेवा करना, पूजा करना - अम्बामुपास्य सदयाम् अस्व ० १३, उद्यानपालसामान्यमृतवस्तमुपासते कु० २/३६ 2. उपागमन करना, की ओर जाना-उपासांचक्रिरे द्रष्टुं देवगन्धर्वकिन्नराः - भट्टि० ५/१०७, ७१८९, 3. भाग लेना, (पुण्य कृत्यों का ) अनुष्ठान करना 4. (समय) बिताना उपास्य रात्रिशेषं तु — रामा० 5. भोगना, झेलना अलं ते पांडुपुत्राणां भक्त्या क्लेशमुपासितुं महा०, मनु० ११।१८४ 6. आश्रय लेना, काम में लगाना, प्रयोग करना - लक्षणोपास्यते यस्य कृते - सा० द० २, 7. धनुर्विद्या का अभ्यास करना 8.
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