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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १६५ ) ( विस्मयादि द्योतक अव्य० के रूप में प्रयुक्त) आश्चर्य (कितना अचम्भा है, कितनी अजीब बात है ) आश्चर्य परिपीडितोऽभिरमते यच्चातकस्तृष्णया चात ० २१४ | आइचो ( इच्यो ) तनम् [ आ - - - श्चु ( इच्यु ) त् + ल्युट् ] 1. सिंचन, छिड़काव 2. पलकों के घी चुपड़ना । आश्म ( वि० ) ( स्त्री० - श्मी) [ अश्मन् + अण् ] पत्थर का बना हुआ, पथरीला । आश्मन ( वि० ) ( स्त्री० - नी ) [ अश्मनो विकार:- अण् ] पथरीला, पत्थर का बना हुआ नः 1. पत्थर की बनी कोई वस्तु 2. सूर्य का सारथि अरुण । आश्मिक ( वि० ) ( स्त्री० की ) [ अश्मन् + ठण् ] 1. पत्थर का बना हुआ 2. पत्थर ढोने वाला । आश्यान (भू० क० कृ० ) [ आ + श् + क्त ] 1. जमा हुआ, संघनित - कि० १६ १०, 2. कुछ सूखा - पथश्चाश्यानकर्दमान् रघु० ४।२४, कु० ७१९, घूएँ के सहारे सुखाये हुए (जैसे बाल ) - रघु० १७।२२। आपणम् [ आ + श्रा + णिच् + ल्युट् ] पकाना, उबालना । आश्रम् [अश्रमेव-स्वार्थेऽण् ] आँसू । आश्रमः - मम् [ आ + श्रम् + ञ्ञ ] 1. पर्णशाला, कुटिया, कुटी, झोंपड़ी, संन्यासियों का आवास या कक्ष 2. अवस्था, संन्यासियों का धर्मसंघ, ब्राह्मण के धार्मिक जीवन की चार अवस्थाएँ (ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ तथा संन्यास), क्षत्रिय और वैश्य ) भी पहले तीन आश्रमों में पदार्पण कर सकते हैं, तु० श० ७ २०, विक्रम० ५, कुछ लोगों के विचारानुसार वह चौथे आश्रम में भी प्रविष्ट हो सकते हैं (तु० स किलाश्रममन्त्यमाश्रित: - रघु० ८/१४) 3. महाविद्यालय, विद्यालय 4. जंगल, झाड़ी (जहाँ संन्यासी लोग तपस्या करते हैं ) । सम० गुरु: धर्मसंघ के प्रधान, प्रशिक्षक, आचार्य - धर्मः 1. जीवन के प्रत्येक आश्रम के विशिष्ट कर्तव्य 2. वानप्रस्थी के कर्तव्य य इभामाश्रमधर्म नियुक्ते १० १, पदम् मण्डलम् स्थानम् संन्यासाश्रम ( आस-पास की भूमि समेत ), तपोवन -- शान्तमिदमाश्रमपदम् श० १११६ भ्रष्ट (वि०) धर्मसंघ से बहिष्कृत, स्वधर्मच्युत, वासिन्, आलय:, -सद् (पुं०) संन्यासी, वानप्रस्थ । आश्रमिक, आश्रमिन् ( वि० ) [ आश्रम + ठन्, इनि वा ] धार्मिक जीवन के चार काल या पदों में किसी एक से संबंध रखने वाला | अभय: [ आ + श्रि + अच् ] 1. विश्रामस्थल, सदन, अधिष्ठान -सौहृदादपृथगाश्रयामिमाम् - उत्तर० १०४५, ५.१, 2. जिसके ऊपर कोई वस्तु आश्रित रहती है 3. ग्रहण करने वाला, भाजन - तमाश्रयं दुष्प्रसहस्य तेजसः - रघु० ३।५८ 4. ( क ) शरणस्थान, गरणगृह भर्ता वै ह्याश्रयः स्त्रीणाम् वेता, तदहमाश्रयोन्मूलनेनैव | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्वामकामां करोमि - मुद्रा० २ (ख) आवास, पर 5 सहारा लेने वाला ( प्रायः समास में ) 6. निर्भर करना ( प्राय: समास में) 7. पालक, प्रतिपोषक ---बिनाश्रयं न तिष्ठन्ति पण्डिता वनिताः लता:- उन्नूट 8. यूनी, स्तंभ रघु० ९।६०१ तरकस -बाणमाश्रयमुखात् समुद्धरन् रघु० ११/२६ 10. अधिकार, संमोदन, प्रमाण, अधिकार पत्र 11. मेलजोल, संबन्ध, साहचर्य 12. दूसरे का संश्रय लेने वाला, छः गुणों में से एक । सम० असिद्धः, ब्रिः (स्त्री०) हेत्वाभास का एक प्रकार, असिद्ध के तीन उपभागों में से एक, -आश:, -- भुज् (वि०) संपर्क में आने वाली वस्तुओं ar उपभोग करने वाला ( -शः, – क) अग्नि, -- दुर्वृत्तः क्रियते धूर्तेः श्रीमानात्मविवृद्धये किं नाम खलसंसर्गः कुरुते नाश्रयाशवत् - उद्भट - लिगम् विशेषण ( अपने विशेष्य के अनुरूप अपना लिंग रखने वाला शब्द ) । आश्रयणम् [ आ + श्रि + ल्युट् ]1. दूसरे के संरक्षण में रहना, शरण लेना 2. स्वीकार करना, छांटना 3. शरण, शरणस्थान । आश्रयिन् ( वि० ) [ आश्रय + इनि ] 1. सहारा लेने वाला, निर्भर करने वाला 2. संबद्ध, विषयक –विक्रम० ३।१० । आश्रव (वि० ) [ आ + श्रु+अच् ] आज्ञाकारी, आज्ञापालक भिषजामनाश्रवः रघु० १९०४९, नै० ३१८४, - वः 1. नदी, दरिया 2. प्रतिज्ञा, वादा 3. दोष, अतिक्रमण दे० 'आस्रव' भी । आभिः (स्त्री० ) [ प्रा० स० ] तलवार की धार । आश्रित (भू० क० कृ० ) [ आ + श्रि + क्त ] ( कर्म० के साथ कर्तृवाच्य में प्रयुक्त) 1. सहारा लेते हुए कृष्णाश्रितः कृष्णमाश्रितः सिद्धा० 2. रहने वाला, बास करने वाला, किसी स्थान पर स्थिर रहने वाला 3. काम में लाने वाला, सेवा में रखने वाला 4. अनुसरण करने वाला, अभ्यास करने वाला, पालन करने वाला - कु० ६/६ भट्टि० ७/४२, 5. निर्भर करने वाला 6. ( कर्मवाच्य के रूप में प्रयुक्त) सहारा लिया हुआ, वसा हुआ, तः पराधीन, सेवक, अनुचर; - अस्मदाश्रितानाम् - हि० १, प्रभूणां प्रायश्चलं गौरवमाश्रितेषु कु० ३।१ । आश्रुत ( भू० क० कृ० ) [ आ + श्रु + क्त ] 1. सुना हुआ, 2. प्रतिज्ञात, सहमत, स्वीकृत, तम् पुकार जो दूसरा सुन सके । आश्रुतिः (स्त्री० ) [ आ + श्रु + क्तिन् ] 1. सुनना 2. स्वीकार करना । आश्लेषः [ आ + श्लिष् + घञ ] 1. आलिंगन, परिरम्भण. कोला - कोली- आश्लेषलोलुपवधूस्तन कार्कश्यसाक्षिणी For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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