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नाकार [बा+शु+अच्] 1. अग्नि 2. असुर, राक्षस 3. | शब्द की भावना अधिक स्थायी और पूर्णता की वायु।
निश्चायक है-तुल०-वरः खल्वेष नाशी:-श०४, मावावमाधाशोर्भाव:- अण] 1. वेग फूर्ती 2. खींची हुई आशिसो गुरुजनवितीर्णा वरतामापद्यन्ते-का० २९१,
पाराग, अरिष्ट (अधिकतर 'आसव' लिखा जाता है)। अमोघाः प्रतिगृह्णन्तावानुपदमाशिष:-रघु० ११४४, बामा [बा+अ+अच्] 1. (क) उम्मीद, प्रत्याशा, जयाशी:- कु० ७१४७, 2. प्रार्थना, चाह, इच्छा-कु.
भविष्य-तामाशां च सुरद्विषाम् - रघु० १२१९६, ५।७६, भग० ४।२१, 3. सांप का विषेला दांत (तु० माशा हि परमं दुःखं नैराश्यं परमं सुखम् --सुभाष०, 'आशीविष')। सम०-वादः,---वचनम् (आशीर्वादः स्वमाशे मोघाशे 2. मिथ्या आशा या प्रत्याशा 3. स्थान, आदि), आशीर्वाद, मंगलाचरण, किसी प्रार्थना या प्रदेश, दिग्देश, दिशा-अगस्त्याचरितामाशामनाशास्य- सद्भावना की अभिव्यक्ति--आशीर्वचनसंयुक्तां नित्यं जयो पयो-रघु० ४।४४, कि० ७९ । सम० यस्मात् प्रकुर्वते --सा० द० ६, मन० २।३३,-विषः
-अस्थित,--जनन (वि.) आशावान्, आशा बढ़ाने (आशीविषः) साँप । बाला,-गज दिग्गज दे० 'अष्टदिग्गज', तन्तुः आशा
आशो [आशीर्यते अनया आ+श+क्विप्-पृषो०,] 1. कीर, क्षीण आशा-मा० ४।३, ९।२६ -- पाल: साँप का विषला दांत, 2. एक प्रकार का सर्पविष 3. दिकपाल दे० 'अष्टदिकपाल',-पिशाचिका आशा की
आशीर्वाद, मंगलाचरण । सम०--विष: 1. साँप, कल्पना-सृष्टि,-बन्ध: 1. आशा का बन्धन, विश्वास, -गरुत्मदाशीविषभीमदर्शन:-रघु० ३।५७, 2. एक भरोसा, प्रत्याशा- गुर्वपि विरहदुःखमाशाबन्धः साह
विशेष प्रकार का साँप-कर्णाशीविषभोगिनि प्रशमिते यनि-श० ४११५, मेघ १०, 2. तसल्ली 3. मकड़ी
-वेणी०६।१। का जाला,-भंग; निराशा, नाउम्मीद,-हीन (वि.) |
माशु (वि.)[अश्+उण् ] तेज़, फुर्तीला, शुशु (नपुं०) निराश, हताश।
चावल (जो बरसात में ही शीघ्रतापूर्वक पक जाते हैं) मामा दे.' (आ)वाढः ।
-शु (अव्य०) तेजी से, जल्दी से, तुरन्त, सीषा माहास्य (स०१०) [मा+शास्+ण्यत्] 1 वरदान द्वारा -वर्ती भानोस्त्यजाशु-मेघ ० ३९४२२ । सम-कारिन्,
प्राप्य 2. अभिलषणीय, वांछनीय--रघु० ४।४४, -कृत् (वि.) जल्दी करने वाला, चुस्त, फुर्तीला
-स्यम् वाञ्छनीय पदार्थ, चाह, इच्छा,-मालवि. --कोपिन् (वि.) गुस्सैला, चिड़चिड़ा, - (वि०) ५२०,3. आशीर्वाद, मंगलाचरण-आशास्यमन्यत्पु- फुर्तीला, तेज (गः) 1. वायु 2. सूर्य 3. बाण-पपामरुपराभूतम्-रघु० ५।३४ ।
बनास्वादितपूर्वमाशुग:-रषु० ३।५४, ११३८२, १२।९१ नाशिमित (वि.) [आ+शिक्+क्त] झनकार (आभू- --तोष (वि०) अनायास प्रसन्न होने वाला (--पः) षणों की) कु. ३।२६।।
शिव की उपाधि,प्रीहिः बरसात में ही पक जाने गापित (वि०) [आ+अश्+क्त] 1. भुक्त, खाया हुआ वाले चावल । ___2. खाकर तृप्त,--तम् भोजन करना।
आशुशुक्षणिः [आ+शुष+सन +अनि ] 1. वायु, हवा 2. माशितजामीन (वि.) [आशिता अशनेन तृप्ता गावो यत्र,
अग्नि - मंत्रपूतानि हवींषि प्रतिगृह्णात्येतत्प्रीत्याशुशु-वन निपातनात् मुम्] पहले पशुओं द्वारा चरा
पशुओं द्वारा रा| आग्न - मत्रपूतान
क्षणि:---.४४।
आशेकुटिन (पं.) [आशेतेऽस्मिन् इति-आ+शी+विच मातिभव (वि.) [आशित+भू+खच्, मुम् ] तृप्त होने | स इव कुटति इति णिनि पहाड़ ।
बाला, संतप्त होने वाला (भोजन के रूप में)-.-बम् । आशोषणम् [आ+शुष्+णिच् -- ल्युट्] सुखाना। 1. माहार, भोज्य पदार्थ 2. अधाना, तृप्ति (पुं० भी) आशौचम् [अशौच+अण्] अपवित्रता-दे० 'अशौच' दशा-फलैर्येष्वाशितंभवम्-भट्टि०४।११ ।
हम् शावमाशीचं ब्राह्मणस्य विधीयते--मनु० ५।५९, माभिर (वि०) [आ+अश्+हरच् ] भोजनभट्ट,र: 1. ६१, ६२, याज्ञ० ३११८ अग्नि 2. सूर्य 3. राक्षस।
आश्चर्य (वि.) [आ+चर+ण्यत् सुट] चमत्कारपूर्ण, मामिस् (स्त्री०) (°शी:, शीाम्-आदि) [आ+शास् विलक्षण, असाधारण, आश्चर्यजनक, अद्भुत-आश्चर्यो
+विवप्, इत्वम् ] 1. आशीर्वाद, मंगलकामना (परि- गवां दोहोऽगोपेन-सिद्धा०, तदनु ववृषुः पुष्पमाश्चर्यभाषा-वात्सल्याचत्र मान्येन कनिष्ठस्याभिधीयते, मेघाः-रघु० १६२८७ आश्चर्यदर्शनो मनुष्यलोक: इष्टावधारकं वाक्यमाशीः सा परिकीर्तिता।) 'आशिस्' -श०७,~-र्यम् 1. अचम्भा, चमत्कार, कौतुक मौर 'वर' भिन्नार्थक शब्द है, आशीर्वाद तो केवलमात्र -किमाश्चर्य क्षारदेशे प्राणदा यमदूतिका--उद्भट, किसी की मंगलकामना या सद्भावना की अभिव्यक्ति कर्माश्चर्याणि -उत्तर०१-आश्चर्यजनक काम-भग० है-यह चाहे पूरी हो या न हो, इसके विपरीत 'वर'। १११६, २२९ 2. अचरज, विस्मय, अचम्भा 3.
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