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काबू पाया हुआ, भय क्रोध° 4. निमग्न, लीन अधिकार में किया हुआ, जुटा हुआ । आविस ( अव्य० ) [ आ + अव् - इस् ] निम्नांकित अर्थ प्रकट करने वाला अव्यय - 'आंखों के सामने' 'खुले रूप में' 'प्रकटतः' ( प्रायः यह अव्यय - अस्, भू और कृ धातु से पूर्व लगता ह) - आचार्यकं विजयि मान्मथमाविरासीत् मा० ११२६, (याति) आविष्कृतारुणपुरस्सर एकतोऽर्क:- श० ४११, तेपामा विरभूद्ब्रह्मा कु० २१२ रघु० ९।५५ ।
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आवतम् [ आ + व् + क्त ] यज्ञोपवीत (चाहे किसी प्रकार सव्य, अपसव्य पहना हुआ हो ) । आबुक: ( नाटयशालीय भाषा में ) पिता । आत: [ आप क्विप्, आपमुत्तनोति इति उद् । तन् + उ ] बहनोई, जीजा, उत्तर० १ ० ६ ।
आवृत् (स्त्री० ) [ आ + वृत् + क्विप्] 1 मुड़ती हुई, प्रविष्ट होती हुई 2. क्रम, आनुपूर्व्य, पद्धति, रीति -- अनयंवावृता कार्य पिण्डनिर्वापणं सुतैः मनु० ३।१४८ याज्ञ० ३१२, 3. रास्ते का मोड़, मार्ग, दिशा 4. शुद्धीकरण संबधी संस्कार - मनु० २०६६ । आवृत्त ( भू० क० कृ० ) [ आ + वृत् + क्त ] 1. मुड़ा हुआ, चक्कर खाया हुआ, लौटा हुआ 2. दोहराया हुआ, - द्विरावृत्ता दश दिया: सिद्धा० 3. याद किया हुआ, अध्ययन किया हुआ । आवृत्तिः (स्त्री० ) [ आ + वृत् + क्तिन्] 1 मुड़ना, लौटना, वापिस आना, तपोवनावृत्तिपथम् रघु० २१८, भग० १ २३, 2 प्रत्यावर्तन, प्रतिनिवर्तन 3. चक्कर खाना, चारों ओर जाना 4. ( सूर्य का ) उसी स्थान पर फिर लौटना उदगावृत्तिपथेन नारदः - रघु० ८ ३३, 5. जन्म-मरण का वार २ होना, सांसारिक जीवन, अनावृत्तिभयम् कु० ६।७७6. आवृत्ति, दोहराना, संस्करण ( आधुनिक प्रयोग ), 7. दोहराया हुआ पाठ, अध्ययन - आवृत्तिः सर्वशास्त्राणां वोधादपि गरीयसी उद्भट० ।
आवृष्टि ( स्त्री० ) [ आ + वृप् + क्तिन् ] वरसना, वारिश की बौछार ।
आवेगः [ आ + विज्+घञ्न् ] 1. वेचैनी, चिन्ता, उत्तेजना, विक्षोभ, घबड़ाहट - अलमावेगेना० २ अमरु ८३ 2. उतावली, हड़बड़ी 3. क्षोभ - (३३ व्यभिचारि-भावों में से एक समझा जाता है) ।
आवेदनम् [ आ + विद् + णिच् + ल्युट् ] 1. समाचार देना, सूचना देना 2. अभ्यावेदन 3. अभियोग का वर्णन ( विवि० में ) 4. अभिवाचन, अर्जीदावा । आवेश: [ आ + विश् + घन्] 1 प्रविष्ट होना, प्रवेश 2. अधिकार में करना, प्रभाव, अभ्यास, स्मय' अभिमान का प्रभाव - रघु० ५।१९ 3. एकनिष्ठता, किसी पदार्थ
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के प्रति अनुरक्ति 4. घमंड, हेकड़ी 5. हड़बड़ी, क्षोभ, क्रोध, प्रकोप 6. आसुरी भूतबाधा 7. लकवे की बेहोशी या मिरगी की मूर्छा ।
आवेशनम् [आ + विश् + ल्युट् ] 1. प्रविष्ट होना, प्रवेश 2. आसुरी प्रेतबाधा 3. प्रकोप, क्रोध, प्रचण्डता 4. निर्माणी, कारखाना - मन० ९।२६५, 5. घर । आवेशिक (वि०) (स्त्री० की) 1. विशिष्ट, निजी 2. अन्तर्हित-कः अतिथि, दर्शक ।
आवेष्टक: [ आ + वेष्ट् + णिच् + ण्वुल् ] अहाता ।
दीवार, बाड़,
आवेष्टनम् [आ + वेष्ट् + णिच् + ल्युट् ] 1. लपेटना, बँधना, बांधना 2. ढकना, लिफ़ाफ़ा 3. दीवार, बाड़, अहाता । आश (वि० ) [ अश् +अण्] खानेवाला, भोक्ता ( बहुघा समास के अन्तिम पद के रूप में प्रयुक्त होता है) उदा० हुतारा, आश्रयाश, शः [ अश् + घञ्न् ] खाना (जैसा कि 'प्रातराश' में ) ।
आशंसनम् [आ + शंस् + ल्युट् ] 1. प्रत्याशा, इच्छा - इष्टा
शंसनमाशी:- सिद्धा० 2. कहना, घोषणा करना । आशंसा [ आ + शंस् + अ ] 1. इच्छा, अभिलाष, आशा -- निदधे विजयाशंसां चापे सीतां च लक्ष्मणे – रघु० १२/४४ भट्टि० १९/५, 2. भाषण, घोषणा 3. कल्पना -आशंसापरिकल्पितास्वपि भवत्यानन्दसान्द्रो लयः मा० ५।७ ।
आशंसु (वि० ) [ आ + शंस् + उ ] इच्छुक, आशावान् । आशङ्का [आ + शङ्क + अ] 1. भय, भय की सम्भावना,
- नष्टाशङ्काहरिणशिशवो मन्दमन्दं चरन्ति श० १।१६, आशङ्कया मुक्तम् भर्तृ० ३1५, 2. सन्देह, अनिश्चयात्मकता, इत्याशङ्कायामाह —गदावर अविश्वास, शक |
3.
आशङ्कित (भू० क० कृ० ) [ आ + शङक् +क्त] 1. भीत,
डरा हुआ, तम् 1 भय, 2 सन्देह 3 अनिश्चयात्मकता । आशय: [ आ + शी + अच्] 1 शयनकक्ष, विश्रामस्थल, शरणागार 2. निवास-स्थान, आवास, आसन, आश्रयस्थान --- वायुर्गन्धानिवाशयात् - भग० १५०८, अपृथक् - उत्तर० ११४५, 3. पात्र, आधार - विषमोऽपि विगाह्यते नयः कृततीर्थः पयसामिवाशय: कि० २१३, तु० जलाशय, आमाशय, रक्ताशय आदि 4. पेट 5. अर्थ, इरादा, प्रयोजन, भावइत्याशयः, एवं कवेराराय: ( टीकाकारों के द्वारा बहुधा प्रयुक्त दे० 'अभिप्राय) 6. भावनाओं का स्थान, मन, हृदय—अहमात्मा गुडाकेश सर्वभूताशयस्थितः - भग० १० २०, महावी० २ ३७, 7 सम्पन्नता 8. कोठार 9. मन, इच्छा 10. भाग्य, किस्मत 11. ( जानवरों को पकड़ने के लिए बनाया गया) गर्त - आस्ते परमसंतप्तो नूनं सिंह इवाशये – महा० । सम० - आशः अग्नि ।
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