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अवस्था में केवल एक ही अभिन्न तत्त्व (ब्रह्म) पर एकमात्र ध्यान केन्द्रित होता है, और ज्ञाता, ज्ञेय, तथा ज्ञान के विभेद का बोध नहीं रहता यहाँ तक कि आत्मचेतना का भी भास नहीं होता - निर्विकल्पकः ज्ञातृज्ञानादिविकल्पभेदलयापेक्षः, नोचेत् चेतः प्रविश सहसा निर्विकल्पे समाधौ भर्तृ० ३।६१, वेणी० १२३, ( अव्य० - ल्पम् ) बिना किसी संकोच या हिचक के, - विकार ( वि० ) 1. अपरिवर्तित, अपरिवर्त्य, निश्चल 2. विकार रहित -- मालवि० ५।१४ 3. उदासीन स्वर्थहीन - ऋतु० २।२८ - विकास ( वि० ) जो खिला न हो, अविकसित, विघ्न (वि.) बिना किसी प्रकार के हस्तक्षेप के, जिसमें कोई बाधा न हो, विघ्न-बाधाओं से मुक्त (नम् ) विघ्नों का अभाव, विचार (वि०) अविमर्शी, विचार शून्य, अविवेकी- रे रे स्वैरिणि निविचारकविते मास्मत्प्रकाशीभव-चन्द्रा० १2, ( अव्य-रम् ) बिना बिचारे, निस्संकोच, – विचिकिल्स (वि०) सन्देह या शंका से मुक्त, विचेष्ट ( वि० ) गतिहीन, संज्ञाहीन, -- वितर्क ( वि०) जिस पर तर्क या सोच विचार न किया जा सके, विनोद (fro ) आमोद प्रमोद से रहित, मनोरंजनशून्य - मेघ० ८६, विषया विन्ध्य पहाड़ियों में बहने वाली एक नदी - मेघ० २८, - विमर्श (वि०) विचारशून्य, अविवेकी, सोचविचार न करने वाला, -- विवर (वि०) 1. बिना किसी विवर या मुंह के 2. जिसमें कोई छिद्र या अन्तराल न हो, सटा हुआ, शि० ९१४५, विवाद ( वि० ) 1. विवाद रहित 2. जिसमें कोई झगड़ा न हो, कोई विरोध न हो, विश्वसम्मत, विवेक ( वि० ) ना समझ, विवेकशून्य, अदूरदर्शी, मूर्ख, -विशंक (वि०) निडर, निश्शंक, विश्वस्त मनु० ७।१७६, पंच० ११८५ - विशेष (वि०) कोई अन्तर न मानने वाला, बिना भेद-भाव के, किसी प्रकार का भेदभाव न रखने बाला -- निर्विशेषा वयं त्वयि - महा०, निर्विशेषो विशेष :- भर्तृ० ३०५०, 'भेद-भावका अभाव ही अन्तर' 2. जहाँ भिन्नता का अभाव हो, समान, तुल्य ( प्रायः समास में) अभिन्न -- प्रवातनीलोत्पलनिविशेषम् - कु० १९४६, स प्रतिपत्तिनिर्विशेषप्रतिपत्तिरासीत् - रघु० १४।२२ 3. अभेदकारी, गड्डमड्ड (षः) अन्तर का अभाव (निविशेषम् और निविशेषेण शब्द 'बिना किसी भेद-भाव के', 'समान रूप से' 'बिना किसी अन्तर के ' अर्थों को प्रकट करने के लिए क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं, स्वगृहनिर्विशेषमत्र स्थीयताम् - हि० १, रघु० ५/६ ), - विशेषण ( वि०) बिना किसी विशेषण के विष (वि० ) ( सांप आदि ) जिसमें जहर न हो --निर्विषा डुडुभाः स्मृताः -- विषय (बि० ) 1. अपनी जन्मभूमि या निवास स्थान से
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निर्वासित किया हुआ --मनो निर्विषयार्थकामया - कु० ५।३८, रघु० ९।२८ 2. जिसे कार्य क्षेत्र का अभाव हो - किंच एवं काव्यं प्रविरलविषयं निर्विषयं वा स्यात्
- सा० द० १3. ( मन की भांति ) विषय-वासनाओं में अनासक्त घाण (वि०) बिना सींगो का - बिहार ( वि० ) जिसके लिए आनन्द का अभाव हो, वीज (खोज) (वि०) 1. बिना बीज का 2. नपुंसक 3. निष्कारण, वीर (वि०) वीर विहीन निर्वीरमुर्वीतलम् - प्रस० ११३१ २. कायर- वीरा वह स्त्री जिसका पति व पुत्र मर गये हों - वीर्य ( वि० ) शक्तिहीन, निर्बल, पुरुषार्थहीन, नपुंसक - निवर्य गुरुशापभाषितवशात् किं मे तवेवायुधम् - वेणी ० ३।३४, - वृक्ष (वि०) जहाँ पेड़ न हों, वृष (वि०) जहाँ अच्छे बैल न हों, वेग (वि०) निश्चेष्ट, गतिहीन, शान्त, वेगरहित, वेतन (वि०) अवैतनिक, विना वेतन का, वेष्टनम् जुलाहे को नरी, ढरकी, -- वर (वि०) वैरभाव से रहित, स्नेही शान्तिप्रिय ( रम् ) शत्रुता का अभाव, व्यंजन ( वि०) सीधा सादा, खरा 2. बिना मसाले का ( अव्य० ने) सीधासादे ढंग से, बेलाग, ईमानदारी से, व्यथ ( वि० ) 1. पीडा से मुक्त 2. शान्त, स्वस्थ, - व्यपेक्ष ( वि० ) उदासीन, निरपेक्ष रघु० १३।२५, १४१३९, व्यलीक ( वि० ) जो किसी प्रकार की चोट न पहुंचाये 2. पीडारहित 3. प्रसन्न मन से कार्य करने वाला 4. निष्कपट, सच्चा, पाखंडहीन, - व्याघ्र ( वि० ) जहाँ चीतों का उत्पात न हो, व्याज (वि०) 1. स्पष्ट का, खरा, ईमानदार, सरल 2. पाखंडरहित भर्तृ ० २२८२, ( अव्य० -- जम्) सरलता से, ईमानदारी से, स्पष्ट रूप से, अमरु ७९ - व्यापार (वि०) जिसे कोई काम न हो, बेकार, रघु० १५/५६, व्रण (वि०) 1. जिसे चोट न लगी हो, व्रणरहित 2. जिसमें दरार न पड़ी हो, व्रत (वि०) जो अपनी की हुई प्रतिज्ञा का पालन न करे, - हिमम् जाड़े को समाप्ति, हिमशून्य, - हेति (वि०) निरस्त्र, जिसके पास कोई हथियार न हो, हेतु (वि०) निष्कारण, बिना किसी तर्क, या कारण के, हीक (वि०) 1. निर्लज्ज, बेहया ढीठ 2. साहसी, निर्भीक । निरत ( वि० ) [ नि + रम् + क्त ] 1. किसी कार्य में लगा हुआ या रुचि रखने वाला 2. भक्त अनुरक्त, संलग्न, आसक्त वनवासनिरतः का० १५७ 3. प्रसन्न, खुश 4. विश्रान्त, विरत । निरतिः (स्त्री० ) [ नि+रम्+ क्तिन् ] दृढ़ आसक्ति,
अनुरक्ति, भक्ति ।
निरयः [ निस् + इ + अच् ] नरक - निरयनगरद्वारमुद्धाटयंती - भर्तृ० १६३, मनु० ६ ६१ ।
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