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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1128 ) के आवश्यक सामान या उपकरणों से युक्त, समुचित / रूप से सुसज्जित, इसी प्रकार 'सोपकार'। सोपद्रव (वि.) [सह उपद्रवेण-ब०स०] संकट और उप___ द्रवों से युक्त। सोपष (वि.) [सह उपधया ब०स०] जालसाजी और धोखे से भरा हुआ, कपटपूर्ण / सोपषि (वि.) [सह उपधिना--ब०स०] जालसाज, अव्य० कपट के साथ, जालसाजी करके अरिषु हि विजयार्थिनः क्षितीशा विदधति सोपधि सन्धिदूषणानि क. 1145 पप्लवेन-ब -जैसे कि चन्द्र सोपप्लव (वि.) [सह उपप्लवेन-ब.स.] 1. संकटग्रस्त 2. शत्रुओं द्वारा आक्रान्त 3. ग्रहणग्रस्त (जैसे कि चन्द्र व सूर्य)। सोपरोष (वि.) [सह उपरोधेन-ब०स०] 1. अवरुद्ध, बाधायुक्त 2. अनुगृहीत,--धम् (अव्य०) सानुग्रह, सादर। सोपसर्ग (वि.) [सह उपसर्गेण-ब०स०] 1. संकटग्रस्त, दुर्भाग्यग्रस्त 2. अनिष्टसूचक 3. किसी भूत प्रेत से आविष्ट 4. उपसर्ग से युक्त (व्या० में)। सोपहास (वि.) [सह उपहासेन ब०स०] व्यंगपूर्ण हंसी से युक्त, उपालंभपूर्ण, व्यंग्यमय, सम् (अव्य०) उपालंभपूर्वक, उलाहने के साथ। सोपाक: [=श्वपाकः, पृषो०] पतित जाति का पुरुष, चांडाल, दे० मनु० 10 // 38 / सोपाधि (वि०) सोपाधिक (वि०) (स्त्री०-की) [सह उपाधिना-ब०स०, पक्षे कप] 1. किसी शर्त या सीमा से प्रतिबद्ध, विशिष्ट लक्षणों से युक्त, सीमित, मर्यादित, विशिष्ट (दर्शन में) 2. विशिष्ट विशेषण से युक्त। सोपानम् [उप---अन् ---घा --उपान: उपरिगतिः सह विद्यमानः उपानः येन-ब०स०] पौड़ी, सोढी का डंडा, जीना, सीढ़ी--आरोहणार्थ नवौवनेन कामस्य सोपानमिव प्रयुक्तम् कु० 1139 / सम०-पक्तिः (स्त्री०),-पयः,-पद्धतिः (स्त्री०), परम्परा, मार्गः सीढ़ी, जीना वापी चास्मिन् मरकतशिलाबद्धसोपानमार्गा मेघ० 76, समारुरुक्षुर्दिवमायुषः क्षये ततान सोपानपरम्परामिव-रघु०३।९, 6 / 3, 16.56 / सोमः [ सू+मन् ] 1. एक पौधे का नाम, प्राचीन काल के यज्ञों में आहुति देने के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण औषधि 2. 'सोम' नामक पौधे का रस-जैसा कि सोमया तथा सोमपीथिन शब्दों में 3. अमत, देवताओं का पेय पदार्थ 4. चन्द्रमा (पुराणों में चन्द्रमा को अत्रि ऋषि की आँख से उत्पन्न होने वाला वर्णन किया गया है (तु. रघु० 2175), ऐसा भी वर्णन मिलता है कि समुद्रमन्थन के अवसर पर चन्द्रमा भी समुद्र से 1 निकला। पुराणों में वर्णित सत्ताइस नक्षत्र जो दक्ष की कन्याएँ बतलाई गई है, चन्द्रमा की पत्नियाँ कही जाती है। चन्द्रमा को कलाओं के पाक्षिक क्षय की घटना का भी समाधान यह किया गया है कि चन्द्रमा की अमृतमयी कलाओं को विविध देवताओं ने बारी बारी से पी लिया, इसी प्रसंग में एक और कथा का भी आविष्कार किया गया है जिसमें बतलाया गया है कि चन्द्र / रोहिणी (दक्ष की 27 कन्याओं में से एक) पर विशेष रूप से अनुरक्त था, अतः उसके श्वसुर दक्ष ने इसे 'क्षयरोग से ग्रस्त होने का शाप दे दिया, बाद में चन्द्रमा की अन्य पत्नियों के बीच में पड़ने पर यह शाप सीमित कालावधि (पाक्षिक) में बदल दिया गया। यह भी वर्णन मिलता है कि चन्द्रमा ने बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण किया उससे चन्द्रमा का बुध नामक एक पुत्र पैदा हुआ। यही बुध बाद में राजाओं के चन्द्रवंश का प्रवर्तक हुआ, (दे० तारा (ख) भी) 5. प्रकाश की किरण 6. कपूर 7. जल 8. वायु, हवा 9. कुबेर 10. शिव 11. यम 12. (समास के अन्तिम पद के रूप में प्रयुक्त) मुख्य, प्रधान, उत्तम जैसा कि नसोम' में,-मम 1. चावलों की कांजी 2. आकाश, गगन / सम० अभिषवः सोमरस का खींचना,-अहः सोमवार,-आख्यम् लाल कमल,-ईश्वरः शिव की प्रसिद्ध प्रतिमा ‘सोमनाथ', -उद्धवा नर्मदा नदी-- रघु० 5 / 59 (यहाँ मल्लि. ने अमर० का उद्धरण दिया है 'रेवातु नर्मदा सोमोद्भवा'),-कान्तः चन्द्रकान्त: मणि,---क्षयः चन्द्रमा की कलाओं का ह्रास, -- ग्रह सोमरस रखने का पात्र, -ज (वि०) चन्द्रमा से उत्पन्न. (-जः) वुधग्रह का विशेषण, (-जम्) दूध, धारा आकाश, गगन,-नाथः प्रसिद्ध शिव लिंग' या वह स्थान जहाँ यह प्रतिमा स्थापित की गई है (इसी प्रतिमा की अतुल धन राशि व वैभव ने गजनी के मोहम्मद गोरी को आकृष्ट किया, जिसने 1024 ई० में सोमनाथ का मन्दिर तोड़ा और उसके खजाने को उठा कर ले गया)-तेषां मार्गे परिचयवशाजितं गुर्जराणां यः सन्तापं शिथिलमकरोत सोमनाथं विलोक्य / / विक्रमांक. 18587, -प,-पा (पुं०) 1. सोमपायी 2. सोमयाजी 3. पितरों का विशेष समूह,-पतिः इन्द्र का नाम,----पानम् सोमरस का पीना,...-पाथिन्,- पीथिन् (पं०) सोमरस को पीने वाला - तत्र केचित् .... सोमपीथिन उदुम्बरनामानो ब्रह्मवादिनः प्रतिवसन्ति स्म मा० 1, ---पुत्रः,भूः सुतः बुध के विशेषण,---प्रवाकः सोमयज्ञ के पुरोहितों को वरण करने वाला, बन्धुः कुमुद,- यज्ञः, यागः सोमयज्ञ,--योनिः एक प्रकार का पीला और सुगन्धित चन्द्रमा- रोगः, स्त्रियों का For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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