________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परीष्टिः (स्त्री०) [परि+इप--क्तिन्] 1. अनुसंधान, | खलीकर्त शक्यते न ममाग्रत:--- मालवि.२, परोक्षे पूछताछ, गवेपणा 2. सेवा, परिचर्या 3. आदर, पूजा, कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम-नाण० 18, नोदाश्रद्धाजलि। हरेदस्य नाम परोक्षमपि केवलम् -- मनु० 2 / 119 / पहः [प+उ] 1. जोड़, गाँठ 2. अवयव, अंग 3. समुद्र 4. सम-भोगः स्वामी की अनुपस्थिति में किसी वस्तु स्वर्ग, वैकुण्ठ, 5. पहाड़। का उपभोग,---वृत्ति (वि०) आँखों से दूर रहने वाला परुत् (अव्य०) [पूर्वस्मिन वत्सरे-इति पूर्वस्य परभावः उत् (ति:--स्त्री०) अदृष्ट और अज्ञात जीवन / च गत वर्ष, पिछला साल / परोष्टिः, परोष्णी [ पर+उप--क्तिन् परः शत्रु: उष्णो परवारः | ब० स० घोड़ा। यस्याः व० स०] तेलचट्टा (झींगुर के आकार काले परुष (वि.) [4--उपन] 1. कठोर, रूखा, सरूत, कड़ा रंग का एक कीड़ा)। (विप० मृदु या इलक्ष्ण) परुपं चर्म, परुपा माला- | पजन्यः [प-शन्य, नि० पकारस्य जकार:] 1. बरसने आदि 2. (शब्द आदि) कट, अपभाषित, निष्ठुर, वाला मेघ, गरजने वाला बादल, बादल या मेघ . निष्करुण, क्रूर, निर्मम, (वाक) अपस्पा परुषाक्षर- प्रवद्ध इब पर्जन्यः सारंगैरभिनंदित:--रघु० 17 / 15, मीरिता--रघु० 9 / 8, पंच० 1150, (व्यक्ति भी) यंत नदयो वर्षतु पर्जन्या:-तै० सं०, मच्छ० 10 // 60 गीत० 9, याज्ञ० 11309 3. (शब्द) कर्णकटु, अरु. 2. वाग्गि, अन्नाद्भवंति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः चिकर-तेन वनपरुषस्वनं धनः रघु० 11146, मेघ० भग० 3 / 14 3. वृष्टि का देवता अर्थात् इन्द्र / 4. रूखा, स्थल, वरदरा, (वाल) मैला-कुचला। पर्ण (चुरा० उभ०-पर्णयति-ते) हराभरा करना--.वसंतः शुद्धस्नानात्परुपमलक...-मेघ० 19 5. तीक्ष्ण, प्रचण्ड, पर्णयति चम्पकम् / मजबूत, उत्सुक, (वायु आदि) वेधक ----परुपपवनवे पर्णम् [पर्ण + अन्] 1. पंख, बाजू जैसा कि 'सुपर्ण' में गोतिक्षप्तसंशुष्कपर्ण:ऋतु० 1 / 22, 2 / 28 6. ठोस, 2. बाण का पंख 3. पत्ता 4. पान का पत्ता,--णः ढाक गाढ़ा 7. मलिन, मैला, पम् कठोर या दुर्वचनय क्त का पेड़। सम० ----अशनम् पत्ते खाकर जीना (नः) भाषण, अपभाषण / मम० ---इतर (वि०) जो रूखा बादल, -- असिः काली तुलसी,....आहार (वि०) पत्ते न हो, कोमल, मृदु---रघु० ५।६८,-उक्तिः -यच- खाकर निर्वाह करने वाला, - उटजम पत्तों की कुटिया, नम् अपभापित / साधुओं की झोपड़ी, आश्रम,--कारः पनवाड़ी, तमोली, पवस् (नपुं०) [प-उस] 1. सन्धि, प्रन्थि, जोड़, गाँठ 2. पान बेचने वाला,-कुटिका, - कुटी पत्तों की बनी अवयव, गरीर का अंग / कुटिया,.-कृच्छः प्रायश्चित्त संबंधी साधना जिसमें परेत (भू० क० कृ०) [पर-इ+त] दिवंगत, मृत्य प्राप्त, प्रायश्चितकार को पाँच दिन तक पत्ते और कुशाओं मृत -तः प्रेत, भून / सम०-भर्तृ, राज् (पुं०) का काढ़ा पीकर रहना पड़ता है, दे० याज्ञ० 31317, मृत्यु का देवता, यमराज शि० ११५७,-भूमिः इसके ऊपर मिताक्षरा भी,...खंडः फलपत्तों के बिना (स्त्री०),--वासः कब्रिस्तान कु०६८ / वक्ष (-डम) पत्तों का ढेर,----चीरपटः शिव का परेवि, परेवः (अव्य०) परस्मिन अहनि, नि० माध०] विशेषण, - चोरकः एक प्रकार का सुगंध द्रव्य,--नरः दूसरे दिन, और दिन / पत्तों से बनाया गया पुतला जो अप्राप्त शव की जगह परेष्टुः (स्त्री०), परेप्ट का [पर+इप तु, परेप्टु+कन् रखकर जलाया जाता है,-मेदिनी प्रियंगुलता, +टाप्] वह गाय जो कई बार व्या चुकी हो। -भोजनः बकरी,-मुब् (पुं०) जाड़े की मौसम, परोक्ष (वि०) [अक्षण: परम--अ० स०] 1. दष्टिपरास शिशिर ऋतु,---मगः वृक्षों की शाखाओं पर रहने वाला स परे, या बाहर, जो दिखाई न दे, अगोचर 2. जंगली जानवर, - रुह (पुं०) वसंत ऋतु,--लता पान अनुपस्थित-स्थाने वृता भूपतिभिः परोक्षः ...रघ० की बेल ---,वीटिका पान का बीड़ा,-शय्या पत्तों की 7113 3. गप्न, अज्ञान, अपरिचित परोक्षमन्मथो सेज, .. शाला पनों की बनी कुटिया, साधुओं का ---- जनः -ग. 2018, 'काम के प्रभाव से अपरिचित' आश्रमनिर्दिष्टां कुलपतिना स पर्णशालामध्यास्य---रघु० -हि०प्र० १०,-क्षः सन्यामी,---क्षम 1. अनुपस्थिति 1195, 12 / 40 / अगोचता 2. (व्या० में) भूतकाल (जो वक्ता ने न | पर्णल (वि०) [ पर्ण-लच 1 पत्तों से भरा हुआ, पतों देखा हो) परोक्षे लिट-पा० 3 / 115, 'परोक्ष' के वाला--भट्रि० 6 / 143 / कर्म०, नया अधिक के ए० 0 .-(अर्थात परोक्षम्, | पर्णसिः[-असि, णुक ] 1. पानी के मध्य बड़ा भवन, गरो) अनपस्थिति में' 'दष्टि में पर' पीठ पोले। ग्रीम भवन 2. कमल 3. शाक सब्जी 4. सजावट अर्थ का प्रकट करने के लिए क्रियाविशेषण के रूप में | प्रसाधन, शृंगार। प्रयक्त होते है (सब के बिना, या साथ)—परोक्षे / पणिन (40) [ पर्ण+इनि ] वृक्ष / For Private and Personal Use Only