________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ४०८ ) आश्रय लेने वाला आदि--परलोकजुषाम् --रघु० ८। उबासी लेना, मुंह खोलना-व्यजृम्भिषत चापरे-भट्टि० ८५, रजोजुषे जन्मनि ...का० १।
१५।१०८ विजम्भितमिवान्तरिक्षण---मच्छ० ५ जुष्ट (भू० क० कृ०) [ जुष। क्त ] 1. प्रसन्न, संतुष्ट 2 खुलना, खिलना (फूल आदि का) 3. सर्वत्र फैल
2. अभ्यस्त, आश्रित, देखा हुआ, भुगता हुआ-भग० जाना, व्याप्त करना, भर देना- मुखश्रवा मंगलतूर्यनि २।२ 3. सज्जित, सम्पन्न, युक्त ।
स्वनाः "न केवलं सग्रनि मागधीपतेः पथि व्यजम्भन्त जहः (स्त्री.) [ह-+-क्विप नि० हित्वं दीर्घश्च तारा०] दिवौकसामपि----रघु० ३।१९, १२।७२, रजोन्धकारस्य
अग्नि में घी को आहति देने के लिए काठ का बना विजम्भितस्य ७।४२ 4. उदय होना प्रकट होना, अर्धचन्द्राकार चम्मच, नुवा।
समद् --, प्रयत्न करना, हाथपाँव मारना, कोशिश जुहोतिः [जु+श्तिप्] ‘जुहोति' क्रिया से सम्पन्न होने वाले करना--व्यालं बालमृणालतन्तुभिरसौ रोद्ध समुज्जृम्भते
यज्ञानुष्ठानों का परिभाषिक नाम, इससे भिन्न अनुष्ठानों -भर्तृ० २१६ । के लिए दूसरा नाम 'यजति' है--क्षरन्ति सर्वा वैदिक्यो जृम्भः,-- भम्, जृम्भणम्, जृम्भा, जृम्भिका [ जृम्भ+घञ जुहोतियजतिक्रिया:--मनु० २०८४ (दे० मेघातिथि ल्युट् वा, जम्भ+अ+टाप, जृम्भा-कन्, इत्वम् ] तथा दूसरे भाष्यकार, सर्वज्ञ नारायण-जुहोति यज्ञा- 1. जम्हाई लेना, उबासी लेना 2. खुलना खिलना, नुष्ठानों को 'उपविष्ट होम' तथा यजति-यज्ञानुष्ठानों विस्तृत होना-कलिकाश्रयो जम्मा प्रभवति-का० को 'तिष्ठद्धोम' का नाम देते है-दे० आश्वलायन २५७, जम्भारम्भप्रविततदलोपान्तजालप्रविष्ट:-वेणी० --१२२।५ भी)।
२१७, मालती शिरसि जम्भणोन्मुखी-भर्तृ० ११२५ जः (स्त्री०) [जू+क्विप] 1. चाल 2. पर्यावरण 3. राक्षसी 3. अंगड़ाई लेना- (अंगानि) मुहुर्मुहुर्जुम्भणतत्पराणि 4. सरस्वती का विशेषण ।
-ऋतु० ६।१०। जूकः [ग्रीक शब्द] तुला राशि ।
ज़ (भ्वा० दिवा० ऋया० पर० चुरा० उभ० जरति, जीर्यति, जूटः [ जुट+अच, नि० ऊत्वम् ] चिपटे हए तथा मीढी जणाति, जारयति-ते, जीर्ण जारित) 1. बूढ़ा होना,
बनाये हुए केशों का समूह-भूतेशस्य भुजङ्गवल्लि- जर्जर होना, सूचना, मुरझाना-जीयन्ते जीर्यतः केशा वलयस्रङनद्धजूटा जटाः---मा० ११२।।
दन्ता जीर्यन्ति जीर्यतः, जीर्यतश्चक्षुषी श्रोत्रे तृष्णका जटकम् [जूट- कन्बट कर मीढ़ी बनाय हुए बाल, जटा। तरुणायते---पंच० ५।८३, भट्रि० ९।४१ 2. नष्ट होना, जतिः स्त्री० [जू+क्तिन् चाल, वेग।
खा-पी जाना (आलं.) अजारीदिव च प्रज्ञा बलं शोकाजूर् (दिवा० आ०--जूयंते, जूर्ण) 1. चोट पहुँचाना, क्षति तथाऽजरत् ---भट्टि० ६.३०–जेरुराशा दशास्यस्य पहुँचाना, मारना 2. कुद्ध होना (संप्र० के साथ)-भत्रे
---१४१११२ 3. घल जाना, पच जाना-जीर्णमन्न नखेभ्यश्च चिरं जुजूरे भट्टि० ११३८ 3. पुराना
प्रशंसीयात्-चाण० ७९ उदरे चाजरन्नन्ये- भट्टि० होना।
१५।५०। जूतिः (स्त्री०) [ज्वर् +क्तिन्, ऊठ्] बुखार, जूड़ी। जेत (पुं०)[जि---तच | 1. जीतने वाला, विजेता 2. विष्ण ज़ (भ्वा० पर० जरति) 1. नम्र बनाना, नीचा दिखाना
का विशेषण । 2 आगे बढ़ जाना।
जेन्ताकः (पु०) गरम कमरा जिसमें बैठने पर शरीर से जभ, जम्भ (भ्वा० आ०---जभते, जम्भते, जम्भित, ज़ब्ध)
पसीना बहे, शुष्क उष्ण स्नान । 1. उबासी लेना, जमहाई लेना-मन० ४।४३ | जेमनम् [ जिम् + ल्युट् ] 1. खाना 2. भोजन । 2. खोलना, विस्तार करना, खिलना (फल आदि का) जंत्र (वि.) (स्त्री०) [जेत-+अण, स्त्रियां डीप च] -परयुवतिमुखाभं पङ्कजं जम्भतेऽद्य---ऋतु० ३१२२ 1. विजयी, सफल, विजय प्राप्त कराने वाला-इदमिह 3. बढ़ाना, फैलाना, सर्वत्र प्रसार करना- जंभतां मदनस्य जैत्रमस्त्रं विफलगुणातिशयं भविष्यतीति-मा० जम्भतामप्रतिहतप्रसरं क्रोवज्योति: - वेणी० १, तष्णे २५ धनुर्जत्रं रघुर्दधौ-रघ० ४।६६, १६१७२ जम्भसि (पर० अनियमित)-भर्तृ० ३।५ भोगः कोऽपि 2. बढ़िया, --त्रः 1. विजयी, विजेता 2. पारा,--त्रम् स एक एव परमो नित्योदितो जम्भते-३८० 4. प्रकट | ___ 1. विजय, जीत 2. बढ़ियापन । होना, उदय होना, अपनी शान दिखाना, दर्शनीय होना | जैनः [ जिन+अण् ] जैन सिद्धान्तों का अनुयायी, जैन मत व्यक्त होना-संकल्पयोनेरभिमानभूतमात्मानमाधाय | को मानने वाला। मधुर्जजम्भे--कु० ३।२४ 5. आराम में होना 6. (धनुष | जैमिनिः (पुं०) प्रख्यात ऋषि और दार्शनिक जिन्होंने दर्शन की भांति) पीछे मुड़ना, पल्टा खाना प्रेर० जमुहाई संप्रदाय में 'पूर्वमीमांसा' का प्रणयन किया-मीमांसादिलाना, प्रसार करवाना, उद्, प्रकट होना, उदय कृतमन्ममाथ सहसा हस्ती मनि जैमिनिम-पंच० होना, फूटना-नै० २।१०५, वि., जमुहाई लेना, | २०३३ ।
For Private and Personal Use Only