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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ४०९ ) जैवातृक ( वि० ) ( स्त्री० - की) [ जीव् + णिच् + आतृकन् ] 1. दीर्घजीवी, जिसके लिए दीर्घायु की इच्छा की जाय - जैवातृक ननु श्रूयते पतिरस्या:-- दश० २, दुबला-पतला, कृशकाय, कः 1. चन्द्रमा-- राजानं जनयाम्बभूव सहसा जैवातृक त्वां तु यः -- भामि० २७८ 2. कपूर 3. पुत्र 4. दवाई, औषधि 5. किसान । जवेयः [ जीवस्य गुरोः अपत्यम् जीव + ढक् ] बृहस्पति के पुत्र कच की उपाधि | यम् [ जिह्म + ष्यञ् ] टेढ़ापन, धोखा, झूठा व्यवहार । जोङ्गः [ जुंङ्गति अरोचकत्वं परित्यजति अनेन जुङ्ग + अटन् नि० गुणः 1 गर्भवती स्त्री की प्रबल रुचि, दोहद । जोटिङ्गः [ जुट् +इन्, जोटि + गम् + ड, रिक्तत्वात् मुम् ] शिव की उपाधि । जोषः [ जुप् +य् ] 1. सन्तोष, सुखोपभोग, प्रसन्नता, आनन्द 2. चुप्पी, बम् ( अव्य० ) 1. इच्छानुसार, आराम से 2. चुपचाप किमिति जोषमास्यते - श० ५, भामि० २।१७ । जोषा, जोषित् (स्त्री० ) [ जुष्यते उपभुज्यते - जुब् + घञ + टापू, जुब् + इति । स्त्री, नारी - तु० योषा, योषित् । जोषिका [ जुष् + ल् + टाप्, इत्वम् ] 1. नई कलियों का समूह 2. स्त्री, नारी । ज्ञ (वि० ) [ज्ञा + क ] ( समास के अन्त में ) 1. जानने वाला, परिचित कार्यज्ञ, निमित्तज्ञ, शास्त्रज्ञ, सर्वज्ञ 2. बुद्धिमान् जैसा कि 'जंमन्य' में (अपने आपको बुद्धिमान् समझता हुआ), - नः 1. बुद्धिमान् और विद्वान् पुरुष 2. चैतन्य विशिष्ट आत्मा 3. बुध नक्षत्र 4. मंगल नक्षत्र 5. ब्रह्मा का विशेषण । ज्ञपित, ज्ञप्स (नि० ) [ ज्ञा + णिच् + क्त, ] जताया गया, संसूचित, स्पष्ट किया गया, सिखाया गया । ज्ञप्तिः (स्त्री० ) [ज्ञा + णिच् + क्तिन् ] 1. समझ, 2. बुद्धि 3. घोषणा । ज्ञा ( कया० उभ० जानाति, जानीते, ज्ञात) 1. जानना ( सब अर्थों में ) सीखना, परिचित होना मा ज्ञासीत्वं सुखी राम यदकार्षीत् स रक्षसाम् - भट्टि० १५/९, 2. जानना, जानकार होना, परिचित या विज्ञ होना जाने तपसो वीर्यम् - श० ३१, जानन्नपि हि मेवावी जडवल्लोक आचरेत् -- मनु० २।११० १२३, ७ १४८ 3. मालूम करना, निश्चय करना, खोज करना--ज्ञायतां कः कः कार्यार्थीति -- मृच्छ०९ 4. समझना, जानना, अवबोध करना, महसूस करना, अनुभव करना जैसा कि दुःखज्ञ, सुखज्ञ आदि में 5 परोक्षण करना, जांच करना, वास्तविक चरित्र जानना आपत्सु मित्रं जानीयातु - हिं० ११७२, चाण० २१ 6. पहचानना न त्वं दृष्ट्वा न पुनरलकां ज्ञास्यसे कामचारिन् मेघ० ५२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६३ 7. लिहाज करना, खयाल करना, मान करना - जानामि त्वां प्रकृतिपुरुषं कामरूपं मघोनः मेघ ० ६ 8. काम करना, व्यस्त करना ( संब० के साथ ) सर्पिषो जानीते--- सिद्धा० - वह घी से अपने आपको यज्ञ में व्यस्त करता है (सर्पिषा सर्पिषः ) प्रेर०- ( ज्ञापयति, ज्ञपयति ) 1. घोषणा करना, सूचित करना, जतलाना, ज्ञात करना, अधिसूचित करना 2. निवेदन करना, कहना ( आ० ) - सन्नन्त - जिज्ञासते, जानने की इच्छा करना, खोजना, निश्चय करना -- रघु० २।२६ भट्टि० ८ ३३, ४,९१, अनु, अनुमति देना, इजाजत देना, स्वीकृति देना, 'हाँ' करना सहमत होना, स्वीकार कर लेना - अनुजानीहि मां गमनाय उत्तर० ३ 2. सगाई करना, विवाह में वचनबद्ध होना, वचन देना ( विवाह में ) मां जातमात्रां घनमित्रनाम्नेऽन्वजानाद्भार्या मे पिता- दश० ५० 3. क्षमा करना, माफ करना 4. प्रार्थना करना 5. अपनाना अप, छिपाना, गुप्त रखना, इनकार करना, मुकरना ( आ०) शतमपजानीते - सिद्धा०, आत्मानमपजानानः शशमात्रोऽनयद्दिनम् भट्टि० ८/२६, अभि० 1. पहचानना - नाभ्यजानान्नलं नृपम् महा० 2. जानना, समझना, परिचित होना, जानकार होना- भग० ४ १४, ७ १३, १८, ५५ 3. ध्यान रखना खयाल रखना, मानना 4. मान लेना, स्वीकार कर लेना, अव-, तुच्छ समझना, घृणा करना, तिरस्कार करना, अपेक्षा करना – अवजानासि मां यस्मात् - रघु० १११७, भट्टि० ३१८, भग० ९।११, आ, जानना, समझना, खोजना, निश्चय करना ( प्रेर०) आज्ञा देना, आदेश देना, निदेश देना 2. विश्वास दिलाना 3. विसर्जित करना, जाने के लिए छुट्टी देना, परि, जानकार होना, जानना, परिचित होना - वृषभोऽयमिति परिज्ञाय पंच० १, मनु० ८११२६ 2. खोजना, निश्चय करना - सम्यक् परिज्ञाय पंच० १ 3. पहिचानना - तपस्विभिः कैश्चित् परिज्ञातोऽस्मि - श० २, प्रति (आ० ) 1. प्रतिज्ञा करना - हरचापारोपणेन कन्यादानं प्रतिजानीते - प्रस० ४ भट्टि० ८ २६, ६४, मनु० ९/९९२. पुष्ट करना, 3. बताना, अभिपुष्टि करना, दावा करना, वि- 1. जानना, जानकार होना भर्तृ० ३।२१ 2. सीखना, समझना, जान लेना 3. निश्चय करना मालूम करना 4. लिहाज करना, मान लेना, खयाल करना ( प्रेर0) 1. निवेदन करना, प्रार्थना करना ( विप० आज्ञापयति ) - आर्यपुत्र अस्ति में विज्ञाप्यम् - ( रामः ) ननु आज्ञापय - उत्तर० १, रघु० ५/२० 2. समाचार देना, सूचना देना 3. कहना, बतलाना, सम्-, ( आ० ) जानना, समझना, जानकार होना 2. पहचानना 3. मेलजोल से रहना, परस्पर सहमत For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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