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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वाला। मन ( 1213 ) अनुसंधानम् अनु+सम् + धा+ ल्युट्] गवेषणा, खोज। / धुंधला नि मासान्ध इवादर्शश्चन्द्रमा न प्रकाशते अनुसंधिः अनु : सम् + धा+कि पूछ ताछ-२० 21129 / / रा० 3 / 16 / 13 / अनुसंसृतिः [अनु +-सम् +स-क्तिन्] जन्म मरण की | अनंभट्टः तर्कसंग्रह, नामक पुस्तक के रचयिता का नाम / आवत्ति। अन्नाद (वि०) अन्नमतीति - अद ---अचान वे खाने अनुसंस्था (भ्वा०) अनुगमन करना, अनुसरण करना। वाला .... अहमन्नादः तै००७।। अनुसंस्था (स्त्री०) सती प्रथा / अन्य (वि.) अन् अध्यादि य दूसग, और, भिन्न / अनुसृत (वि०) [अनु+सृ---क्त] 1. जुगत 2. चूने वाला, सम०-~अन्य (वि.) आपसी, पारस्पग्लि, दे० टाटप,गिरने वाला-- उष्णा सानुसतासकण्ठीम् अन्योन्य, अपदेशः किसी सी के बहाने अप्रत्यक्ष रा० 5 / 5 / 25 / उक्ति / अनुक्यम् (वेद०) [अन---उच समवायेक निपात: कुत्दमा अन्वन्तः |अन- अन्तः पय्या, सोफ़ा, मंच, ऊँचा आसन .. यत् रीढ़ की हड्डी, कशेरुकीय, मेरुदण्ड / मान० 16143 / अनूपय् (भ्वा०) बाढ़ ला देना, भर दना -अनगयामास अन्वर्थनामन अन- अर्थ+नामन जिसका नाम उसके विदर्भजाश्रुती नै० 12 / 69 / अपने चरित्र के अनुसार यथार्थ है, पथ: नाम तथा गुण अनेकपद (वि.) नि.ब] ओक संख्याओं से युक्त, बहुत से अवयवों से बना हुआ। अन्वारभ् (अनु --आ+रभ्) (मा. आ.) (वेद०) अन्तः [अम्+तन] अन्तिम अंश, अवशिष्ट अंश तेऽनया अनुरंजन करना, अनुकूल करना, प्रसन्न करना--अग्नि कात्यायन्याऽन्तं करवाणीति...ब. 2141 / राम. मन्वारभामहे। -~ओष्ठः अधरोष्ठ, निचल! होठ, चक्रम् शकुन, | अन्याहार्य (वि.) [अन --आ++णिन्य जो तथा भविष्यसुचक भाव का जानना कौ० अ०, क्रिया बाद में की जाय / -~-परिच्छदः बर्तन के ऊपर कलई आदि की परत | अन्वयजितः [प० त० नीच कुल में उत्पन्न व्यक्ति, अपम, आछा - लक्ष्मी प्राप्येवान्वयजितः रा०। अन्तवान् (पुं०) [अन्त - मनुर, भस्य यत्वम्] दिशाओं का | अन्वयाधिन् (वि.) अपत्य बंशज, सन्तान / स्वामी (दिगन्तानामीश्वरः)- महा० 3 / 1975 / अन्वित (वि०) [अन : ३.क्त युक्त, योग्य ... तपसा अन्तर् (अ०) [अम् ।-अरन्, तुडागमश्च] (इसका प्रयोग / चान्वितो वेष: रा० 5 / 3 / 13 / धाओं के साथ उपसर्ग की भांति होता है, और इसे / अन्वीक्षिक (वि० [अ० / ईक्षा-ठा हितपी, बरा गति माना जाता है) अन्दर, में, भीतर / सम. भला देखने वाला ---प्रजातीक्षिकया बुद्धया श्रेयो -- अङ्गम (अन्तरङ्गम) जो अत्यन्त घनिष्ठ सम्बंध हचस्य विचिन्तयन --- रा० 7 / 3 / 4 / / रखता है था जिससे ऊपरी संबंध न होकर धनिष्ठ | अप्पितम् (अपांपितम) अग्नि, आग ! संबध रहता है अन्तरङ्गबहिरङ्गयोरन्तरङ्ग बलीयः | अप (उप०) न पाति रक्षति पतनात पाड] धातुओं से -~-मै० सं०१२।।२९ पर शा०भा०-गर्मिणीग्याय: पूर्व उपसर्ग के रूप में प्रयक्त होता है... अर्थ होता है, इस न्याय के अनुसार जब एक बात के भीतर दूसरी ह्रास, कमी विकृति, निरोध, अभाव आदि / सम० बात छिपी रहती है जैसे गर्भाशय में गर्भ, तब इसका - अङ्गः अन्त, समाप्ति, अस्त (पि०) परित्यक्त, प्रयोग होता है-मी० सू० 10 // 3 // 62 पर शा० भा०, दूर फेंका हुआ,- आकीर्ण (वि०) दूर फेंका हुआ, आनुशयः जो अपने हाथों को घटनों के बीच में रख अस्वीकृत,-कोतिः बदनामी, कलंक, कोष (वि.) कर सोता है -- अन्तर्जानुशयो यस्तु भुञ्जते सक्तभाजनः आच्छादन रहित, म्यान से पृथक को हुई कोई वस्तु, -~~-महा० 3 / 50075, ---मुख (वि०) जिसको -~-टीक (वि०) 1. जिसे किसी भाप्य या टीका की दृष्टि अन्दर की ओर होती है-अन्तर्मखा: सततमा- सहायता प्राप्त न हो 2. (अ---एटीक) जिस पर स्मविदो महान्त:--विश्व० 139, - वैशिक: अन्तः कोई ढकना या पदार्थ न हो, दा (वि०) झालर पुर का अधिकारी-समुद्रमपकरणमन्तर्वशिक हस्ता- या भगजी न लगा हुआ (बस्त्र) तथा न्यायधतं धार्य दादाय परिचरेपः को० अ० 1121 / न चापदशमेव च महा० 13 / 104186, -- दानम् अन्तरम् [अन्तं राति ददाति - रा-क] स्तम्भतल का [अप+दल्यूट] वह आख्यायिका जिसमें भूत और अङ्गमल (आधार) से सन्धान करना / भावी जन्मों का वर्णन हो, वेशः भय, खतरा अन्तारः अन्त-ऋ---अण | गडरिया, गोपाल - श० चि०। -- अपदेशः पदे लक्ष्ये स्यात्प्रसिद्धनिमित्तयोः। औदार्य अन्धः [अन्ध-+-अच] 1. जिसे आँखों से दिखाई न दे, अंधा शौर्यधर्यष नि:सीमव्यपदेशयोः-नाना०,-तम् झुक ---अन्धः क्षुषान्धोप्यसौ--- विश्व 101 2. अस्पष्ट, / कर भागना, दौड़ना---रा० 640 / 25, नयः अनै For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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