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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुकल्पम् [अनुक्लप ---अच्] 1. घटिया स्थानापत्ति, : अनुप्रभवः [अनुप्र+भू+अप] जन्म-मरण का चक्र / -ध्वनिभिर्वणरनुकल्पयनोदयत्-न० 17 / 12 2.समान, / अनुप्रवण (वि०) अनु -पु. ल्युट्] रुचिकर, सुहावना एक जैसा - ग्रसितं क्षमभम्वृधीन् क्षणादनुकल्पावित- / -कौतुहलानुप्रवणा हर्प जनयतीव मे-महा०१२।३७।३। चण्डपयावकम् याद०। अनुप्रहित (वि.) | अन-प्र-+-धा- क्त निश्चित, अनकलित (वि.) [अनुकूल इतच जिराका स्वागत नियत प्रियपिंणानुप्रहिताः शिवेन-कि० 17 // 33 // सत्कार होता है, सम्मानित-मन्त्रिणो नेगमाश्चैव यथा-: अनुभाजित (वि०) अनु+भज णिच-: क्त पूजा किया हमनु कलिता:-रा० 774 / 6 / गया। अनुक्रमः अनु - कम्- घा] दैनिक व्यायाम अश्वान अनुभू (भ्वा०) (वेद०) बनकल आचरण करना। रक्षत्यनुभमः महा० 111 / 263 / अनुभावित (वि०) अनुभूणिच् ।बत अनुभवशील, अनुक्षयम् (अ०) हर रात, प्रतिरात्रि। प्ररक्षित। अनुगीता (स्त्री०) महाभारत के चौदहवें पर्व का एक अनुभषे (0) अनुभू+ तृच्] भरण पोपण करने अंश। वाला, पालन पोषण करने वाला। अनुघट्ट (भ्वा०) लम्बाई की ओर से सहलाना, रगड़ना। अनुमन्त्रित (वि०) [अनु / भन्म् / क्त] संस्कार किया गया, अनुजनः [अनु ! जन्-1-अ] सेवक, अनचर। विनियुक्त / अननात (वि.) [अनु+ज्ञा - वत] शिक्षित, शिक्षाप्राप्त / अनुमात्रा (स्त्री०) प्रस्ताव, संकल्प। --शिष्याणामखिलं कृत्स्नमनुजातं ससंग्रहम् महा० : अनुपज (रुध०) प्रार्थना करना, याचना करना-धार्तराष्ट्र 12 / 318124 / महामात्यं स्वयं समनुयुरुक्ष्महे महा० 5 / 72 / 3 / अनुत्कट (वि०) [अन् - उद् - कट च्] छाटा, थोड़ा। ! अनयुञ्जक (वि.) अनुयज्+ण्वुल ईर्ष्याल, डाह करने अनुतालः [अन् उद् + तल घन] मधुर स्वर, रसीला वाल।। गान। | अनुराद्ध (वि.) [अनुराध---यत सम्पन्न, अवाप्त / अनुदिशम् (अ.) [प्रा० स०] प्रत्येक दिशा में। अनुरुद्ध (वि.) [अनुरुध्+क्त) 1. रंका हुआ। अनुबष्ट (वि०) [अनु- दृश् / तृच्] हितैषी अनुसूयुरनु- 2. विरुद्ध 3. शान्त किया हुआ, सान्त्वना दिया हुआ। द्रष्टा सत्कृतस्ते पुरोहितः रा०२।१००।११।। | अनुलोमग (वि०) [अनुगत: लोम, गम् : ड] सीधा जाने अनुद्य (वि०) [अन् ब+ ण्यत् ] अनुच्चारणीय - वाला, सीधा चलने वाला। पा० 3 / 13101 सि०। अनुवाकः [अनुच्यते इति, वन्। घा, कुत्दम्] ब्राह्मणअमुधूपित (वि०) (वेद०, खुशामद से फूला हुआ, ग्रन्थों का एक अध्याय, या प्रभाग। उद्धत / अनुविषयः [अनु---वि+सि- अच्, पत्वम् रुवि, स्वाद / अनुनाथनम् [अनु+नाथ् / स्युट] प्रार्थना, याचना, अनु- अनवत् (सकर्मक क्रिया के रूप में प्रयक्त) सेवा कारना, नय युवाभ्यामनुनाथने मिय:-०१६।६४ / पूजा करना सूर्य चैवान्ववतंत-रा० 7 / 10 / 8 / अनुनिशीथम् (अ०) आधी रात के समय / अनुशाला (स्त्री०) उपकक्ष, छोटा कमरा / अनुनेय (वि.) [अनु -- नो- यत् अनुसरणीय, अनुशील- अनुशिष्ट (वि०) अनु शास्-- क्त | 1. सुप्रशिक्षित, नीय / .. तस्मात् पुत्रमनमिष्टं लोक्यमाहुः वृ० 115:17 अनपस्कृत (वि०) [अन्+उप-+-+-क्त. सुडागमः] 2. पूछा गया इति नानुशिष्टस्नु वाचं मन्दमुदीरयन् जिसकी बुद्धिमत्ता में कोई सन्देह न किया जा सके। -रा०६।३०१४ 3 आरिप्ट, निर्दिष्ट अनुशिष्टो... तस्मात्स्वधर्म मास्थाय सुव्रताः सत्यवादिनः / ऽस्म्ययोध्यायां गुरुमध्ये महात्मना-रा० श२६३ / लोकस्य गुरवो मृत्वा ते भवन्त्यनुपस्कृता:-महा० / अनुशायिन् (वि०) [अनु - शो 'णिच् / इनि] साथ-साथ 12 / 11 / 25 2. स्वार्थ को दूर रखने वाला देह- फैला हुआ। स्थागोऽनुपरकृतः मनु० 10 // 62 / / / अनुश्रविक (वि.) [अनु (थु / अप्) श्रय--ठन् ] शास्त्रों अनुपा [अन-!- उप--इ-अच] किसी व्यवस्था का से संग्रह किया हुआ. पायो 18 / अनुपालन करना, अपनी बारी से अपना कार्य करना। अनुषत्य (वि.) [प्रा० स०] (वेद०) जो सत्य के अनुरूप अनुपाल: [अनु+पाल अच् (घांडे आदि पशुओं का) हो सके। रक्षक, पालक / अनुसमयः [अनु ।-राम इ-अन] भिन्न-भिन्न व्यक्ति या अनुप्रकीर्ण (वि.) जनप। कृ ! का] पूर्णत: व्यस्त, प्रसङ्ग के अनुसार भिन्न-भिन्न व्यवहार करना / इसके आच्छादित नोकरमरगणैरनुप्रकाणान कि० 7 तीन प्रकार है - पदार्थानममय, काण्डानुसमय और समुदायानुसमय / 2. For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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