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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 1211 ) यस्य ] सीधा, साक्षात् - अथवा अनन्तरकृतं किञ्चिदेव / अनावर (वि.) [न.ब.] नंगे सिर वाला, जिसके सिर निदर्शनम् --महा० 12 / 305 / 9 / पर पगड़ी या टोपी कुछ भी न हो। अनन्य (वि.) [नास्ति अन्यः विषयो यस्य ] जो किसी | अनारम्भः [न० त०] शुरू न करना, आरम्भ न होना। और के साथ भाग न ले रहा हो, निविरोध - अनन्यां | अमायंता न० त०] अनुपयुक्तता, अयोग्यता। पृथिवी भुक्ते सर्वभूतहिते रतः--कौ० अ०। अनावाप (वि.) जो किसी नई वस्तु का अधिग्रहण नहीं अनपग (वि.) [न० ब०] स्थिर, दढ़ / करता है। अनपवृक्त (वि०) जो त्यागा हुआ न ही, अत्यक्त---न अनाश्वास (वि०) [न० ब०] जिस पर निर्भर न किया पेतमनपवृक्तं सच्छक्यमुपेतुम-मै० सं० 12 / 1 / 12 जा सके कर्मण्यस्मिन्ननाश्वासे धूमधूम्रात्मनां भवान् पर शा० भा०। - भाग० 1118 / 12 / अनपार्थ (वि०) [न० ब०] यथार्थ कारण से युक्त, | अनाश्वासम् (अ०) बिना सांस लिए, बिना आराम किये। न्याय्य, उचित / अनास्था स्त्री०) अन् ।-आस्था -+कटाप] 1. असअनभिधानम् [न० त०] 1. अभीप्सित अर्थ का अप्रकाशन हिष्णता 2. भरोसे का न होना, धैर्य का अभाव - नै. 2. व्याकरणसम्मत शब्द जो प्रयोग में न आता हो। श८८ पर ना० भा०। अनभिवावकः [ न० त०] विरोध करने वाला, प्रतिवादी | अनिद (वि०) जो देखा या समझा न जा सके---इत्यभि --न खल भवानस्मत्संकल्पानभिवादकः . अवि०१। ष्ट्रय पुरुषं यद्पमनिदं यथा -भाग०१०।२।४२ / अनभ्यन्तर (वि.) [न० ब०] अपरिचित, अनजान, अनिमित्तम् (क्रि० वि०) जो ज्ञान का वैध साधन न हो, अनभ्यस्त-अनभ्यन्तरे खल्बावा मदनगतस्य वृत्तान्तस्य ... अनिमित्तं विद्यमानोपलम्भनात्-मै० सं०१।१।४। अनिमेषः [अ-+- निमिष+घञा रति क्रिया का विशिष्ट अनराल (वि०) [ ना०व०] सीधा, अवक्र - यत्स्नेहादन प्रकार, मैथुन का विशिष्ट आसन। रालनालनलिनीपत्रातपत्रं धृतम् उत्त० 3316 / अनिरिण (वि.) [अन् + ईर् +इनन्, ह्रस्व जहाँ किसी अनलः [ नास्ति अल: पर्याप्तिर्यस्य, अनान प्राणान लाति प्रकार की उथल-पुथल या ऊँच-नीच न हो-तस्मिन आत्मत्वेन वा ] क्रोध, करिणां मुदे सनलदानलदाः देशे त्वनिरिणे ते तु युद्धमरोचयन् महा०९।५५।१८। -- कि० 5 / 25 / सम०-आत्मजः स्कन्द / अनिर्वचनम् (न० त०] चुप रहना, ज़ोर से न बोलना अनवकाशिक: न० ब०] एक पैर से खड़ा होकर कठोर ___ मी० सू० 108 / 52 पर शा० भा० / तपस्या करने वाला - गात्रशय्या अशय्याश्च तथैवान- अनिलभद्रका एक प्रकार का रथ (आकार की दृष्टि से रथ यकाशिका:-रा० 3 / 6 / 3 / सात प्रकार-नभस्वत्, प्रभजन, निवात, पवन, परिअनवक्लप्तिः (स्त्री०) [अनव-क्लप-क्तिन ] असं- षद, इन्द्रक और अनिल-- के गिनाये गये हैं. मान० भावना, अविश्वसनीयता। 43 / 112-5 / अनवगीत (वि.)[न. ब01 निरपराध, निर्दोष-प्रकृत्या अनिलम्भसमाविः ध्यान का एक विशेष प्रकार--७०। कल्याणी मतिरनवगीतः परिचय: उत्तर०१२। अनिविष्ट (वि०) [अ--नि+विश्-क्ति] अविवाहित, अनवद्याङ्गी (स्त्री०)न ब.] वह स्त्री जिसके शरीर --कल स्वयमनिविष्ट:--- अवि०१। के अङ्गों में कोई दोष या त्रुटि न हो, अतः देवी का अनिष्ठर (वि०) जो कठोर न हो, या कर न हो। विशेषण। अनिष्ण (वि.) जो निपुण न हो, कुशल न हो / अनवद्यरागः [न० त०] एक प्रकार का रन कौ० अ० अनिसर्ग (वि०) अप्राकृतिक / 2 / 11 / अनीकस्थानम् प० त०] सैनिक चौकी- कौ० अ०१।१६। अनवर (वि०) [न० ब०] जो अघम न हो, जो घटिया अनीप्सित (वि.) [अन्+आप+ सन्+क्त] अवांछित, न हो। अनचाहा। अनहंवादिन् (वि०) [अन / अहंवाद-- इनि | अनभि- अनीर्षु (वि.) [अन्+ईl + उण, यलोपः] जो ईर्ष्याल मानी, जो गर्व न करता हो। न हो, जो डाह न करे-भृतपुत्रा भृतामात्या भृतदाअनाक्रन्द (वि.) पीड़ा से पागल या अत्यन्त व्याकूल राह्यनीर्षवः महा० 12 / 221 / - इति लोकमनाक्रन्दं मोहशाकरिलतम - महा० | अनीह (वि.) [अन्+ईह+अच] जो प्रयत्नशील न हो, 12 // 33135 / आलसी। अनाघ्रात (वि.) [अन्+आ+घ्रा- क्त ] न संघा | अनुकच्छम् प्रा० स०] कच्छ या दलदली भूमि के साथ हुआ, जो हाथ से न छुआ गया हो--अनाघ्रातं पुष्पं साथ- आविर्भूतप्रथममुकुलाः कन्दलीश्चानुकच्छम् किसलयमलनं कररु है: श०१ / मेघ००२१ / For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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