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( २३६ )
राक्षसों का सफाया कर दिया। इसीलिए पुरंजय 'ककुत्स्थ '--- ' कूबड़ पर बैठा हुआ' कहलाता है) । ककुवः — दम् कस्य देहस्य सुखस्य वा कुं भूमिं ददाति
---- दा + क ] 1. पहाड़ का शिखर या चोटी 2. कूबड़ या डिल्ला ( भारतीय बैल के कंधे का उभार ) 3. मुख्य, सर्वोत्तम, प्रमुख --- ककुदं वेदविदां तपोधनश्च
-- मृच्छ० ११५, इक्ष्वाकुवंश्यः ककुदं नृपाणाम् रघु० ६।७१ 4. राजचिह्न नृपतिककुदं रघु० ३ ७०, १७।२७ ।
ककुद्मत् (वि० ) [ ककुद् - मतुप् ] 1. कूबड़ या डिल्ले से युक्त - ( पु० ) पहाड़ ( जिसके श्रृंग हो) 2. भैंसा
-महोदग्राः ककुद्यन्तः- रघु० ४।२२, कूबड़ वाला बैल १३।२७, कु० ११५६. ती कूल्हा और नितंब । ककुद्मिन् ( वि० ) [ ककुद् + मिति ] शिखरधारी, कूबड़
युक्त (पुं० ) 1. कूबड़धारी बैल 2. पहाड़ 3. राजा रैवतक का नाम – कन्या - सुता बलराम की पत्नी रेवती - शि० २।२० ।
ककुद्वत् (पुं०) [ ककुद् + मतुप् वत्वम् ] कूबड़वारी भैंसा ।
ककुदन्रम् [ कस्य शरीरस्य कुम् अवयवं दृणाति ककु | दृ + खच्, मुम् ] नितंबों का गड्ढा, जघनकूप याज्ञ० ३।९६ |
ककुभ् (स्त्री० ) क + स्कुभ् + क्विप् ] 1. दिशा, भूपरिधि का चतुर्थ भाग - वियुक्ताः कान्तेन स्त्रिय इव न राजति ककुभः मृच्छ० ५।२६, शि० ९/२५ 2. आभा, सौन्दर्य 3. चम्पक पुष्पों की माला 4. शास्त्र 5. शिखर, चोटी ।
ककुभः [ कस्य वायोः कुः स्थानं भाति अस्मात् ककु + भा+क पृषो० वा कं वातं स्कुम्नाति विस्तारयति - क + स्कुभ् + क] 1. वीणा के सिरे पर मुड़ी हुई लकड़ी 2. अर्जुनवृक्ष – ककुभसुरभिः शैलः उत्तर० १।३३, भम् कुटज वृक्ष का फूल - मेघ० २२ । कक्कुलः [ कक्क् + उलच् ] बकुल वृक्ष ।
ककोल., ली [ कक् + क्विप्, कुल् + ण - कक् च कोलश्चेति कर्म० स० स्त्रियां ङीष् ] फलदार वृक्ष - कक्कोली फलजग्धि मा० ६।१९ अने० पा०, लम्, --- लकम् 1. कक्कोल का फल 2. इसके फलों से तैयार किया गया गन्धद्रव्य ।
कक्खट ( वि० ) [ कक्ख् + अटन् ] 1. कठोर, ठोस 2. हंसने वाला ।
कक्खटी [ कक्खट + ङीप् ] खड़िया । कक्षः [ कष् + स ] 1. छिपने का स्थान 2. नीचे पहने जाने वाले वस्त्र का सिरा, कच्छे का सिरा 3. बेल, लता 4. घास, सूखी घास - यतस्तु कक्षस्तत एव वह्निः - रघु० ७५५, ११।७५, मनु० ७३११० 5. सूखे
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वृक्षों का जंगल, सूखी लकड़ी 6. काख - - प्रक्षिप्योदचिषं कक्षे शेरते तेऽभिमारुतम् - शि० २१४२ 7. राजा का अन्तःपुर 8. जंगल का भीतरी भाग- आशु निर्गत्य कक्षात् ऋतु० ११२७ कक्षांतरगतो वायुः - रामा० 9. ( किसी वस्तु का ) पार्श्व 10 भैंसा 11. द्वार 12. दलदली भूमि, -क्षा 1. ककराली या कांख का फोड़ा जिसमें पीड़ा होती है 2. हाथी को बांधने की रस्सी, हाथी का तंग 3. स्त्री की तगड़ी, कटिबन्ध, करधनी, कटिसूत्र – शि० १७।२४ 4. चहारदीवारी की दीवार 5. कमर, मध्यभाग 6. आँगन, सहन 7. बाड़ा 8. भीतर का कमरा, निजी कमरा, सामान्य कमरा - कु० ७७०, मनु० ७।२२४, गृहकलहंसकाननुसरन् कक्षांतरप्रधावितः - का० ६३, १८२ 9 रनिवास 10. समानता 11. उत्तरीय वस्त्र 12. आपत्ति, सतर्क उत्तर (तर्क० में) 13. प्रतिस्पर्धा, प्रतिद्वन्द्विता 14. लांग 15. लांग बांधना 16. कलाई, क्षम् 1. तारा 2. पाप । सम० अग्निः जंगली आग, दावाग्नि- रघु० ११।९२, - अन्तरम् भीतर का या निजी कमरा, - अवेक्षकः 1. अन्त: पुर का अधीक्षक 2. राजोद्यानपाल 3. द्वारपाल 4. कवि 5. लम्पट 6. खिलाड़ी, चित्रकार 7. अभिनेता 8. प्रेमी 9. रस या भावना की शक्ति, -धरम् कन्धों का जोड़, पः कछुवा, - (क्षा) पट: लंगोट, पुट: काँख, शायः, -युः कुत्ता ।
कक्ष्या [कक्ष + यत्+टाप् ] 1. घोड़े या हाथी का तंग 2. स्त्री
की तगड़ी या करवनी - शि० १०।६२ 3. उत्तरीय वस्त्र 4 वस्त्र की किनारी 5. महल का भीतरी कमरा 6. दीवार, घेर या बाड़ा 7. समानता ।
[ख्+ यत्+टाप्] घेर या बाड़ा, विशाल भवन का
प्रभाग या खण्ड ।
कङकः [ कडक् + अच् ] 1. बगला 2. आम का एक प्रकार
3. यभ 4. क्षत्रिय 5. बनावटी ब्राह्मण 6. विराट के महल में युधिष्ठिर द्वारा रक्खा गया अपना नाम । सम० - पत्र बगले के परों से सुसज्जित ( - त्रः ) बगले के पंखों से युक्त बाण - रघु० २/३१, उत्तर० ४।२० महावी० १११८, - पत्रिन ( पुं० ) कंकपत्रः, मुखः . चिमटा वेणी० ५११, शाय, कुत्ता ( बगले की भांति सोता हुआ ) ।
कङकटः, कडकटक: [+क् + अटन्, कन् वापि ] 1. कवच, रक्षात्मक जिरह बस्तर, सैनिक साज-सामान वेणी० २।२६, ५।१, रघु० ७/५९ 2. अंकुश । कडकणः, -- णम् [ कम् इति कणति, कम् + कण् +अच् ]
1. कड़ा - दानेन पाणिर्न तु कडकणेन विभाति भर्तृ • २०७१, इदं सुवर्णकणं गृह्यताम् हि० १2. विवाहसूत्र, कंगना ( कलाई के चारों ओर बँधा हुआ ) - उत्तर० १११८, मा० ९१९, देव्यः कङ्कणमोक्षाय
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