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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 685 ) संस्कृतं तत्र भवं तत आगतं च प्राकृतम-हेम० --आ+पूर्ण + वुल, प्राघूर्ण+ ठञ् ] अतिथि, (इनमें बहत सी बोलियाँ संस्कृत नाटकों में निम्न पाहुना, अभ्यागत, मेहमान-चिरापराधस्मतिमांसलोपि श्रेणी के पात्रों या स्त्री पात्रों द्वारा बोली जाती है) रोषः क्षणप्राघुणिको बभूव भामि० 2066, श्रवणताद्धवस्तत्समो देशीत्यनेकः प्राकृतक्रमः--काव्या० प्राघुणिकीकृता जनैः (कथा)-०२१५६ / 1233.34, 35 त्वमप्यस्मादश जनयोग्ये प्राकृतमार्गे प्राङ्गम् [ प्रकृष्टमगं यस्य-प्रा० ब०] एक प्रकार की प्रवृत्तोऽसि-विद्ध०१। सम-अरिः नैसर्गिक शत्र ढोलक, पणव / अर्थात पड़ोसी देश का शाराक दे०, शि० 2 / 26 पर | प्राङ्गणं (नम्) [प्रकर्षेण अंगनं गमनं यत्र-प्रा० ब०] मल्लि,-उदासीन: नैसर्गिक तटस्थ अर्थात् वह राजा ____ 1. सहन, आंगन 2. (घर का) फर्श 3. एक प्रकार जिसका राज्य नसगिक मित्र राज्य के परे है,-ज्वरः की ढोलक / सामान्य या साधारण बुखार,---प्रलयः विश्व का पूर्ण / प्राच, प्राञ्च (वि.) (स्त्री०-ची) प्र-अञ्च --क्विन] विघटन,-मित्रम् नैसगिक मित्र अर्थात वह राजा: 1. सामने की ओर मुड़ा हुआ, सामने बिल्कुल आगे जिसका राज्य नैसर्गिक शत्रु राज्य से मिला हुआ है रहने वाला 2. पूर्वदिशा संबंधी, पूर्व का 3. प्राथमिक, (अथवा जिसका देश उस देश से पृथक है जिसके साथ पहला, पूर्वकाल का (पुं० ब०व०) 1. पूर्व देश के मित्रता का संबंध हो चुका है)। लोग 2. पूर्वीय वैयाकरण / सम०- अग्र (वि.) प्राकृतिक (वि०) (स्त्रो०-को) / प्रकृति --ठा ] (प्रागन) पूर्वदिशा की ओर दृष्टि फेरे हुए, अभावः 1. नैसगिक, प्रकृति से व्युत्पन्न --महावी० 7 / 39 (प्रागभावः) पिछला, सत्ता का अभाव, किसी वस्तु 2. भ्रान्तिजनक, भ्रमोत्पादक / की उत्पत्ति के पूर्व का अनस्तित्व, उत्पत्ति से पूर्व की प्राक्तन (वि.) (स्त्री० ---नी) [ पाच +टयु, तुडागमः ] अवस्था,-अभिहित (वि.) (प्रागभिहित) पूर्वोक्त, 1. पहला, पूर्व का, पिछला–प्रपेदिरे प्रावतनजन्भविद्याः --अवस्था (प्रागवस्था) पहली दशा,-न तर्हि प्राग -कु० 130 2. पुराना, प्राचीन, पहले का 3. पूर्व- बस्थायाः परिहीयसे—मा० 4, 'पहली अवस्था की जन्म से संबद्ध, या पूर्वजन्म में किये हुए कार्य अपेक्षा कमी पर नहीं हो,'--आयत (वि.) (प्रागा -संस्काराः प्राक्तना इव-रधु० 1 / 20, कु० 6 / 10 / यत) पूर्व दिशा की ओर बढ़ा हुआ,-उिक्तिः (स्त्री०) प्राखर्यम् प्रखर-ध्यन / 1. पैनापन 2. तीक्ष्णता (प्रागुक्तिः ) पूर्वकथित,--- उत्तर (व०) (प्रागुत्तर) 3. दुष्टता। पूर्वोत्तर का.--उदीची (स्त्री०) (प्रागुदीची) पूर्वोत्तर प्रागल्भ्यम् [प्रगल्भ : यज] 1. साहस, भरोसा--निःसाध्व- दिशा,-कर्मन् (नपुं) (प्राक्कर्मन्) पूर्वजन्म में किया सत्वं प्रागल्भ्यम् -सा० द. 2. धमंड, अहंकार, हुआ कार्य-काल: (प्राक्काल:) पहला यग,--कालीन 3. प्रवीणता, कुशलता 4. विकास, बडप्पन, परिपक्वता (वि०) (प्राक्कालीन) पूर्वकाल से संबंध रखने .....बुद्धिप्रागल्भ्य, तभः प्रागल्भ्य आदि 5. प्रकटीकरण, वाला, पुराना, प्राचीन,-कूल (वि.) (प्राक्कूल) प्रतीति-अवाप्तः प्रागल्भ्यं परिणतरुचः शैलतनये जिसकी नोक पूर्वदिशा की ओर मुड़ी हुई हो (कुश-काव्य 0 10 'जो प्रतीत हुआ' 6. वाकपटुता ग्रास) मनु० २१७५,—कृतम् (प्राक्कृतम्) पूर्वजन्म --प्रागल्भ्यहीनस्य नरस्य विद्या शस्त्रं यथा कापुरुपस्य में किया गया कार्य,-चरणा (प्राक्चरणा) स्त्री की हस्ते (यहाँ 'प्रागल्भ्य' का अर्थ 'साहस' भी है)--मा० जननेन्द्रिय, योनि,- चिरम् (अव्य०) (प्राचिरम्) 3 / 11 7. धूमधाम, मर्यादा 8. घृष्टता, ढिठाई। समय रहते, देर न करके,-जन्मन् (नपु०) (प्राग्जप्रागारः [प्रकृष्ट: आगार:--प्रा० स०] घर, भवन / न्मन),-जातिः (स्त्री०) (प्राग्जातिः) पूर्वजन्म प्राप्रम् [प्रा० स० ] उच्चतम बिन्दु / सम०-सर (वि०) -- ज्योतिषः (प्राग्ज्योतिषः) 1. एक देश का नाम, प्रथम, अग्रणी, हर (वि०) मुख्य, प्रधान-रघु० कामरूप देश का नामांतर 2. (ब०व०) इस देश 1623 / के रहने वाले लोग, (षम) एक नगर का नाम, प्राग्राटः [प्राग्र+अट्+अच् ] पतला जमा हुआ दूध / / ज्येष्ठ: बिष्ण का विशेषण, दक्षिण (वि०) (प्राप्राग्य (वि.) [ प्राग्र-यत् ] मुख्य, अग्रणी, उत्तम, . ग्दक्षिण) दक्षिणपूर्वी,- देशः (प्राग्देशः) पूर्वदिशा का अतिश्रेष्ठ। देश,--द्वार,-द्वारिक (वि०) (प्रारद्वार, प्रारद्वारिक) प्राघातः | प्रकृष्ट आघातः-प्रा० स० ] युद्ध, लड़ाई।। जिसका दरवाज़ा पूर्व दिशा की ओर हो.-..-न्यायः प्राधारः [प्र+-+घन ] टपकना, बूंद बूद गिरना, (प्राङ् न्यायः) पहली जांचपड़ताल का तर्क, पहले से रिसना / ही निर्णीत मुकदमा-आचारेणावसन्नोऽपि पुनर्लेखयते प्राघुणः, प्राघुणकः, प्राघुणिकः, प्र+धण+क, प्राघुण यदि, सोऽभिधेयो जितः पूर्वं प्राङन्यायस्तु स उच्यते प्राघर्णकः, प्राणिकः +कन्, प्राघुण+ठक् प्र 1. -प्रहारः (प्राकप्रहारः) पहला मुक्का, फल: For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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