SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 695
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 686 ) (प्राकफल:) कटहल का पेड़,--फ (फाल्गुनी (प्राक्फ २६३,-कल्पः पहला कल्प,-गाया पुरानी कहानी, (फा)ल्गुनी) ग्यारहवाँ नक्षत्र, पूर्वाफाल्गुनी, भवः | --तिलकः चन्द्रमा,--पनसः बेल का वृक्ष,--बहिस् 1. बृहस्पतिग्रह 2. बृहस्पति का नाम,---फाल्गुनः, (पुं०) इन्द्र का विशेषण,-मतम् पुरानी सम्मति / -- फाल्गुनेयः (प्राकफाल्गुनः, प्राकफाल्गनेयः) वह- प्राचीरम् [प्र+आ- चिकन, दीर्घः ] धेरा, बाड़, स्पतिग्रह,- भक्तम् (प्राग्भक्तम् ) भोजन से पूर्व दीवार / औषधिसेवन - भागः (प्राग्भागः) 1. सामने का भाग | प्राचुर्यम् [प्रचुर+ध्य] 1. बहुतायत, पर्याप्तता, बहुलता 2. अगला भाग,-भारः (प्राग्भारः) 1. पहाड़ का 2. समुच्चय / शिखर या चोटी--मा० 9 / 15 2. सामने का भाग, | प्राचेतसः [प्रचेतसः अपत्यम्-प्रचेतस्+अण् ] 1. मनु का (किसी चीज़का) अगला भाग या किनारा क्रन्द- पैतृक नाम 2. दक्ष का कुलसूचक नाम 3. वाल्मीकि त्फेरवचण्डडात्कृतिभृतप्रारभारभीमस्तटैः-मा० 9 / 15 | का गोत्रीय नाम। 3. बड़ा परिमाण, ढेर, समुच्चय, बाढ़-भर्त० 3.129, | प्राच्य (वि०) [प्राचि भवः यत् ] 1. सामने से स्थित मा० ५।२९,-भावः (प्राग्भाव:) 1. पूर्वजन्म 2. श्रेष्ठता, या विद्यमान 2. पूर्व दिशा में रहने वाला, पुरबैया, उत्तमता, -मुख (वि.) (प्राङ्मुख) 1. पूर्व की ओर पूर्वाभिमुखी 3. प्राथमिक पूर्ववर्ती, पहला 4. प्राचीन, को मुड़ा हुआ --कु० 7 / 13, मनु० 2 / 51, 8187, पुराना--(ब० व०-च्याः) 1. पूर्वी देश, सरस्वती 2. झुका हुआ, कामना करता हुआ, इच्छुक, वंशः के दक्षिण में या पूर्व में स्थित देश 2. इस देश के (प्राग्वंशः) 1. यज्ञशाला जिसके स्तंभ पूर्व की ओर निवासी। सम० --- भाषा पूर्वी बोली, भारत के पूर्व मुड़े हुए हों- रघु०१६।६१ (प्राचीनस्थणो यज्ञशाला- में बोली जाने वाली भाषा। विशेषः- मल्लि०, परन्तु कुछ लोगों के मतानुसार प्राच्यक (वि.) [प्राच्य+कन / पूर्वी, पूरवैया, पूर्वाइस का अर्थ है 'वह कक्ष जहाँ यजमान का परिवार भिमुखी। और मित्र इकठे रहते हों') 2. पहला वंश या पीढ़ी, | प्राछ (वि०) [प्रच्छ--क्विप, नि० दीर्घः ] (कर्त०. ए० -वृत्तम् -दे० प्राङ्न्याय,-वृत्तान्तः (प्राग्वृत्तान्तः) व०-प्राट्,प्राड्) पूछने वाला, पूछताछ करने वाला, पहली घटना,-शिरस,शिरस,-शिरस्क (वि.) प्रश्न करने वाला, जैसा कि 'शब्द प्राट्' में। सम० (प्राकशिरस आदि) पूर्व दिशा की ओर सिर मोड़े हए, -बिवाकः (प्राविवाक) न्यावाधीश, कचहरी या --संध्या (प्रासंध्या) प्रातःकालीन संध्या,-सेवनम् अदालत में प्रधान पद पर अधिष्ठित अधिकारी (प्राकसेवनम्) प्रातःकालीन जलतर्पण या यज्ञ, -मनु०८1७९, 181, 9 / 234 / / -स्रोतस् (वि०) (प्रास्रोतस) पूर्व की ओर | प्राजक: [प्र+अ+णिच-+ण्वुल ] सारथि, चालक, बहने वाला। रथवान् मनु० 8 / 293 / प्राचण्डपम् [प्रचण्ड+यज 11. उत्कटता, उग्रता, प्राजनः तम् / प्र+अ+ ल्युट् ] हंटर, चाबुक, अंकुश 2. भीषणता, विकराल दृष्टि-मा० 3 / 17 / -त्यक्तनाजनरश्मिरङ्किततनुः पार्थाङ्कितर्गिणः प्राचिका [प्र+अञ्चन-कुन+टाप, इत्वम् | 1. मच्छर --वेणी० 5 / 10 / ___डांस की जाति की एक जंगली मक्खी। प्राजापत्य (वि.) [प्रजापति-+यक] प्रजापति से संबंध प्राची [प्र+अञ्च+क्विन्+डीप्] पूर्व दिशा,--तन रखने वाला या जो प्रजापति के लिए पुण्यप्रद हो,-स्यः यमचिरात् प्राचीवार्क प्रसूध च पावनम-श० 4 / 18 / हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार आठ प्रकार के विवाहों सम०----पतिः इन्द्र का विशेषण, --मूलम् पूर्वी क्षितिज में से एक जिसमें लड़की का पिता वर से बिना किसी --प्राचीमुले तनुमिव कलामात्रशेषां हिमांशोः प्रकार का उपहार लिए केवल इस लिए कन्यादान -.-मेघ० 89 / करता है जिससे वह सानन्द, श्रद्धा और भक्तिपूर्वक प्राचीन (वि०) [ प्राच्+ख ] 1. सामने की ओर या पूर्व साथ 2 रहकर दाम्पत्य जीवन बिताएँ--सहोभी दिशा की ओर मुड़ा हुआ, पूर्वी, पुरवंया, पूर्वाभिमुखी चरतां धर्ममिति वाचानुभाष्य च, कन्याप्रदानमभ्यर्च्य 2. पहला, पूर्वकाल का, पूर्वोक्त 3. पुराना, पुरातन, प्राजापत्यो विधिः स्मृतः---मनु० 3 / 30, या, इत्यु---नः,-नम् बाड़, दीवार / सम--अग्र (वि०) क्त्वाचरतां धर्म सह या दीयतेऽथिने, स कायः दे० प्रागन,---आवीतम् यज्ञोपवीत, जनेऊ (जो दाहिने (अर्थात-प्राजापत्यः) पावयेत्तज्जः षट् षड़ वंश्यान्सकंधे के ऊपर से तथा बाई भुजा के नीचे से पहना हात्मना-याज्ञ० 160 2. गंगा और यमुना का हुआ हो जैसा कि श्राद्ध के अवसर पर),---आवीतिन, संगम, प्रयाग,-त्यम् 1. एक प्रकार का यज्ञ जो पुत्र -उपवीत (वि०) जनेऊ को दायें कंधे के ऊपर से हीन पिता अपनी लड़की के पुत्र को अपना उत्तरातथा बाईं भुजा के नीचे से पहनने वाला --मनु० / धिकारी नियत करने से पूर्व करता है 2. सर्जनात्मक साथ 2 मिति वाचानुभा मनु० 3 / 30 - कायः For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy