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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 684 ) नाम कान्तेति निवेदयाशु / (यहाँ पहेली का उत्तर है / प्रहलिका (स्त्री०) दे० प्रहेलिका। --- सारिका) यह शाब्दी का उदाहरण है। दण्डी ने प्रायः [प्र--ह्वे-घा | बुलावा, आमंत्रण, निमंत्रण / सोलह प्रकार की पहेलियाँ बतलाई हैं--काव्या० प्रांशु (वि०) [प्रकृष्टा अंशवो यस्य-प्रा० ब०] 1. ऊँचा, 3 / 96-~124 / लंबा, कहांवर, ऊँचे कद का (मनुष्य)-शालप्रांशुर्महाप्रह्लन (भू० क० कृ०) [ प्रह्लाद्-क्त, ह्रस्वः] खुश, भुजः— रघु० 1113, 15 / 19 2. लंवा, बढ़ाया हुअर आनंदित, प्रसन्न / ---श० २।१५,-शुः लंबा मनुष्य, बड़े कद का प्रह्ला (ला) दः प्र--ह्लाद+घञ, रलयोरैक्यम् / आदमी-प्रांशुलभ्ये फले लोभादुदाहुरिव वामनः 1. अत्यधिक हर्ष, प्रसन्नता, खुशी, आनन्द 2. शब्द, --रघु० 1 / 3 / आवाज़ 3. हिरण्यकशिपु राक्षस के पुत्र का नाम प्राक् (अव्य०) [प्राचि सप्तम्यर्थे असिः तस्य लुक ] (पद्मपुराण के अनुसार प्रह्लाद अपने पूर्व जन्म में 1. पहले (अपा० के साथ)--सकलानि निमित्तानि ब्राह्मण था। जब उसने हिरण्यकशिपु के यहाँ जन्म प्राकप्रभातात्ततो मम भट्टि० 810, 6, प्राक् सृष्टे: लिया तो भी उसकी विष्णु के प्रति अनन्यभक्ति बनी केवलात्मने ... कु० 2 / 4, रघु० 14178, श० 5 / 21 रही। उसका पिता यह नहीं चाहता था कि उसका 2. सबसे पहले, पहले ही-प्रमन्यवः प्रागपि कोशलेन्द्रे अपना पुत्र ही उसके घोर शत्रु देवों का ऐसा पक्का -... रघु० 7 / 34 3. पहले, पूर्व, पूर्व अंश में (पुस्तक भक्त बनें ! अतः उससे छुटकारा पाने के उद्देश्य से के)-इति प्रागेव निर्दिष्टम् - मनु० 271 4. पूर्व में, उसने अपने पुत्र प्रहलाद को नाना प्रकार की यातनाएँ से पूर्व दिशा में ग्रामात्प्राक पर्वतः 5. सामने 6. जहाँ दीं। परन्तु विष्णु की कृपा से प्रह्लाद का कुछ नहीं तक हो वहाँ तक, पर्यंत, तक प्राक् कडारात् / बिगड़ा, उसने और भी अधिक उत्साह से इस बात का प्राकटयम् [प्रकट व्यञ ] प्रकट करना, प्रकाशित उपदेश करना आरम्भ कर दिया कि विष्ण सर्वव्यापक, करना, कुख्याति / सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है। हिरण्यकशिपू ने क्रोधावेश प्राकरणिक (वि.) (स्त्री०--की) [प्रकरण+ठक ] में प्रह्लाद से पूछा कि बता कि यदि विष्णु सर्वव्यापक विचारणीय विषय से संबंध रखने वाला, प्रस्तुत विषय है तो इस वृक्ष के स्तंभ में वह मुझे क्तों नहीं दिखाई (अलंकार शास्त्रियों द्वारा प्रायः 'उपमेय' के अर्थ देता? इस पर प्रह्लाद ने स्तंभ पर मुक्के का आघात में प्रयुक्त हआ है) से संबद्ध,--अप्राकरणिकस्याभिधानेन किया (दूसरे मतानुसार स्वयं हिरण्यकशिपू ने क्रोध में प्राकरणिकस्याक्षेपोऽप्रस्तुतप्रशंसा-काव्य०१० / भरकर अपने पुत्र के विश्वास की मुर्खता का उसे प्राकर्षिक (वि.) (स्त्री० की) [प्रकर्ष-ठक ] श्रेष्ठतर विश्वास दिलाने के लिए स्वयं स्तंभ को ठोकर मारी) / या अधिक अच्छा समझा जाने का अधिकारी। फलतः विष्णु नरसिंह (अर्ध मनुष्य तथा अर्ध सिंह) / प्राकषिकः [प्र---आ-+-कष्-+इकन् ] 1. लौंडा, गांडू के रूप में प्रकट हुआ और हिरण्यकशिपु के टुकड़े टुकड़े 2. दूसरे की स्त्री से अपनी जीविका चलाने वाला। कर दिये / प्रह्लाद अपने पिता का उत्तराधिकारी बना : प्राकाम्यम् [प्रकाम+ध्यञ् ] 1. इच्छा को स्वतंत्रता और बुद्धिमत्ता पूर्वक, तथा न्यायपूर्वक राज्य किया)। -प्राकाम्यं ते विभूतिषु-कु० 21112. स्वच्छाप्रह्ला (ला) दन (वि०) [प्र+ह्लाद्+णिच् + ल्युट, रल चारिता 3. अनिवार्य संकल्प, शिव की आठ प्रकार योरैक्यम् ] आनन्द देने वाला, प्रसन्न करने वाला की सिद्धियों में से एक (जिसकी प्राप्ति से सब -- रघु० १३१४,...नम् हर्ष या प्रसन्नता पैदा करना, मनोरथ पूरे हो जाते हैं) दे० 'सिद्धि' / आनन्द देना, खुश करना---यथा प्रह्लादनाच्चन्द्रः प्राकृत (वि.) (स्त्री०-ता,-ती) [प्रकृति | अण। --रघु० 4 / 12 / 1. मौलिक नैसर्गिक, अपरिवर्तित, अविकृत-स्यातामप्रत (वि.) [प्र--ह्व+वन्, नि० साधुः ] 1. ढलुवाँ, मित्रो मित्रे च सहजप्राकृतावपि--शि० 2 / 36, (इस तिरछा, झुका हुआ - शि० 12156 2. झुकता हुआ, पर देखो मल्लि.) 2. प्रचलित, सामान्य, साधारण नीचे को झुका हुआ, विनम्र,-- विनीत एष प्रह्वोऽस्मि 3. असंस्कृत, गंवार, असभ्य, अशिक्षित प्राकृत इब भगवन् एषा विज्ञापना च नः-महावी० 1147, 6 / 37 परिभूषमानमात्मानं न रुणत्सि-का० 146, भग० 3. दीन, विनीत, सुशील, विनयी- प्रह्वेष्वनिर्वन्धरुषो 18 // 24 3. नगण्य, महत्त्वहीन, तुच्छ-मुद्रा० 1, हि सन्तः-रघु० 16180 4. अनुरक्त, भक्त, व्यस्त, 4. प्रकृति से उत्पन्न-- प्राकृतो लयः 'प्रकृति में ही आसक्त / सम०-अञ्जलि (वि०) सम्मान के चिह्न पुनः लीन होना' 5. प्रान्तीय, देहाती (बोली), दे० स्वरूप दोनों हाथ जोड़ कर सिर झुकाए हुए। नी०,-तः ओछा मनुष्य, साधारण व्यक्ति, देहाती प्रहयति (ना० धा०–पर०) विनीत करना, वशवर्ती पुरुष,-तम् एक देहाती या प्रान्तीय बोली जो संस्कृत बनाना। से व्युत्पन्न तथा उससे मिलती-जुलती है-प्रकृतिः For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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