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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १०४ ) सम० - अल्प - रूपम्, - ल्पेन, रूपात् ( क्रि० वि० ) 1. जरा 2. जरा से कारण से, - प्रीति रल्पेन भिद्यते - रामा० 3. अनायास, बिना किसी कष्ट या कठिनाई के । (वि०) बहुत ही जरा सा सूक्ष्म, थोड़ा-थोड़ा करके, - असु प्राण दे०, आकांक्षिन् ( वि० ) थोड़ा चाहने वाला, संतुष्ट, थोड़े से ही संतुष्ट, आयुस् (वि०) थोड़ी देर जीने वाला - मेघ० ४।१५७, (-यु: पुं० ) 1. छोटी आयु का, बच्चा, 2. बकरी, आहार, - आहारिन् (वि०) मिताहारी, खाने में औसतदर्जे | का (-र: ) परिमितता, भोजन में संयम - इतर (वि०) 1. जो छोटा न हो, बड़ा 2. जो कम न हो, बहुत, जैसे 'राः कल्पनाः, नाना प्रकार के विचार, ऊन ( वि० ) ईषद्दोषी, अधूरा, – उपायः छोटे साधन, गंध ( वि०) थोड़ी गंध वाला (-धम्) लाल कमल, - चेष्टित ( वि० ) क्रियाशून्य, छव, छाद ( वि० ) थोड़े वस्त्र धारण किये हुए मृच्छ० ११३७, ( वि० ) थोड़ा जानने वाला, उथले ज्ञान वाला, मोटी जानकारी रखने वाला - तनु ( वि० ) 1. ठिंगना, छोटे कद का 2. दुर्बल, पतला, दृष्टि (वि० ) जिसका मन उदार न हो, अदूरदर्शी, धन (वि०) जो धनवान् न हो, घनहीन मनु० ३।६६, १११४०, धी (वि०) दुर्बलमना, मूर्ख, प्रजस् (वि० ) थोड़ी संतान वाला, - प्रमाण, प्रमाणक (वि०) 1. थोड़े वजन का, थोड़ी माप का, 2. थोड़े प्रमाणों वाला, थोड़े से साक्ष्य पर निर्भर रहने वाला - प्रयोग (वि०) विरलता से प्रयुक्त, कभी-कभी प्रयुक्त, प्राण, असु ( वि० ) थोड़ा श्वास रखने वाला, दमे का रोगी ( ---णः ) 1. थोड़ा श्वास लेना, दुर्बल श्वास 2. ( व्या० में) वर्णमाला के महा प्राणताहीन अक्षर - उदा० स्वर, अर्धस्वर, अनुनासिक तथा क् च् ट् त् प् ग् ज् ड् द् व् अक्षर; (वि०) दुर्बल, बलहीन, कम शक्ति रखने वाला, - बुद्धि, मति (वि०) दुर्बलबुद्धि, मूर्ख, अज्ञानी - मनु० १२०७४, भाषिन् (वि०) वाक् - कृपण, थोड़ा बोलने वाला, - मध्यम (वि०) पतली कमर वाला, - - मात्रम् (वि० ) थोड़ा सा जरा सा, मूर्ति ( वि० ) छोटे कद का, ठिगना (-तिः - स्त्री० ) छोटी आकृति या वस्तु - मूल्य ( वि० ) थोड़ी कीमत का सस्ता, - मेधस् ( वि० ) थोड़ी समझ का अज्ञानी, मूर्ख, --- वयस् (वि० ) थोड़ी आयु का, कमसिन, - वादिन् ( वि० ) अल्पभाषी, -विद्य ( वि० ) अज्ञानी, अशिक्षित, विषय ( वि० ) सीमित परास या घारिता से युक्त, क्वचाल्पविषया मतिः -- रघु० १२, शक्ति ( वि०) कमजोर, दुर्बल, सरस् ( नपुं०) पोखर, छोटा जोहड़ (जो गर्मियों में सूख जाता है) । - बल Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir [ अल्प + कन् ] 1. अल्पक ( वि० ) [स्त्री० - ल्पिका ] छोटा, थोड़ा 2. क्षुद्र, नीच । अल्पम्पच ( वि० ) [ अल्प + पच् + खश् मुम् ] ( थोड़ा पकाने वाला) लालची, कंजूस, मक्खीचूस; चः www कृपण । अल्पश: ( अव्य० ) [ अल्प + शस् ] 1. थोड़े अंश में, ज़रा, थोड़ा-बहुशो ददाति आभ्युदयिकेषु, अल्पशः श्राद्धेषु - पा० ५/४१४२, टीका, 2. कभी-कभी, यदा कदा । अल्पित ( वि० ) [ अल्प कृतार्थे णित्रु कर्मणि -क्त ] 1. घटाया हुआ, 2. सम्मान की दृष्टि से नीचा, तिरस्कृत --मृषा न चक्रेऽल्पितकल्पपादपः - नै० १।१५ अल्पिष्ठ (वि० ) [ अतिशयेन अल्पः -- इष्ठन् ] न्यूनातिन्यून, छोटे से छोटा, अत्यन्त छोटा । अल्पीक ( तना० उभ० ) छोटा बनाना, घटाना, संख्या में कमी करना । अल्पीयस् (वि० ) [ अतिशयेन अल्पः -- - ईयसुन् ] अपेक्षाकृत छोटा, दूसरे से कम, बहुत थोड़ा । अल्ला [ अल्यते इति अल् + क्विप्, अले भूषार्थे लाति गृह्णाति -ला + क] माता ( संबोधन - अल्ल) । अव (स्वा० पर० ) [ अवति, अवित या ऊत ] 1. रक्षा करना, बचाना, - यमवतामवतां च धुरि स्थितः- रघु० ९।१, प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभि रीश:- श० १1१, 2. प्रसन्न करना, संतुष्ट करना, सुख देना, विक्रमस्ते न मामवति नाजिते त्वयि - रघु० ११।७५, न मामवति सद्वीपा रत्नसूरपि मेदिनी११६५, 3. पसन्द करना, कामना करना, इच्छा करना 4. कृपा करना, उन्नत करना ( धातुपाठ में इस धातु के और अनेक अर्थ दिये गये हैं, परन्तु श्रेण्य साहित्य में उनका प्रयोग विरल होता है ) । अव ( अन्य ० ) [ कई बार आरंभिक 'अ' को लुप्त कर दिया जाता है जैसा कि "पूर्वापरी तोयनिधी वगाह्य" कु० १।१ में ] [ अव् + अच् ] 1. (सं० बो० अव्य० के रूप में) दूर, परे, फासले पर नीचे, 2. (क्रिया से पूर्व उपसर्ग के रूप में) यह प्रकट करता है (क) संकल्प, दृढ़ निश्चय — अवघृ ( ख ) विसरण, परिव्याप्ति - अवकू ( ग ) अनादर – अवज्ञा (घ) थोड़ा पन, व्रीहीनवहन्ति (ङ) आश्रय लेना, सहारा लेना अवलम्ब (च) पवित्रीकरण - अवदात (छ) अवमूल्यन्, पराजय -- अवहन्ति शत्रून् ( पराभवति ) (ज) आदेश देना - अवक्लप (झ) अवसाद, नीचे झुकनाअवतु, अवगाह (ञ) ज्ञान – अवगम् अवइ, 3. तत्पुरुष समास के प्रथम खण्ड के रूप में इसका अर्थ होता है :- अवष्ट, उदा० अवकोकिलः अवक्रुष्टः कोकिलया सिद्धा० । अवकट ( वि० ) [ अव — स्वार्थे— कटच् 1. नीचे की For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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