________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ओर, पीछे की ओर 2. विपरीत, विरोधी, -टम् । अवकृष्ट ( भू० क० कृ०) [अव+कृष्+क्त] 1. खींचकर विरोध, वैपरीत्य।
नीचे किया हुआ, 2. दूर हटाया हुआ 3. निष्कासित, अबकरः [ अव+क+अप् ] धूल, बुहारन ।
बाहर निकाला हुआ 4. घटिया, नीच, पतित, बहिष्कृत अवकतः [अव+कृत्+घञ ] टुकड़ा, धज्जी।
(विप० उत्कृष्ट या प्रकृष्ट)--ष्टः वह नौकर जो अवकर्तनम् [अव+कृत्+ ल्युट ] काटना, धज्जियां करना। झाडू-बुहारु आदि का काम करता है (संमार्जनशोधनअवकर्षणम् [अव+कृष् + ल्युट्] 1. बाहर निकालना, विनियुक्त);--पणो देयोऽवकृष्टस्य, षडुत्कृष्टस्य वेतखींचना 2. निष्कासन।।
नम्-मनु० ७.१२६ । अवकलित (वि.)[अव- कलक्त ] 1. दृष्ट, अवलो
अवक्लप्तिः (स्त्री०) [ अव+क्लप+क्तिन् ] 1. संभव कित 2. ज्ञात 3. लिया हुआ, गृहीत ।
समझना, संभावना, संभाव्यता- क्वेव भोक्ष्यसे अनवअवकाशः[अव+काश+घा ] 1. अवसर, मोका,-ताते क्लप्तावेव-सिद्धा० (अनवक्लप्तिरसम्भावना) 2.
चापद्वितीये वहति रणधुरां को भयस्यावकाशः-वेणी० . उपयुक्तता। ३७, लभ के साथ प्रयुक्त होकर इसका अर्थ होता | अवकेशिन (वि.) [अवच्युतं कं सुखं यस्मात्-अवकम् है—कार्य के लिए क्षेत्र या अवसर प्राप्त करना, (फलशन्यता) तदोशितुं शीलमस्य इति अवक+ईश -लब्धावकाशोऽविध्यन्मां तत्र दग्धो मनोभव:---कथा०
+णिनि ] फलहीन, बंजर (जैसा कि वृक्ष)। श४१ 2. (क) स्थान, जगह, ठौर-अवकाशं किलो- | अवकोकिल (वि.) [ अवक्रुष्ट: कोकिलया] कोयल द्वारा दन्वान्रामायाभ्यथितो ददौ --रघु० ४।५८ इसी प्रकार | तिरस्कृत। -अन्यमवकाशमवगाहे-विक्रम ४, यथावकाशं नी । अवक्र (वि.) [न० त०] जो टेढ़ा न हो, (आलं.) ईमाउचित स्थान पर ले जाना-रघु०६।१४,-अस्माकम- नदार, सच्चा। स्ति न कथंचिदिहावकाशः—पंच० ४८, अवकाशो अवकन्द (वि.) [अव+ऋन्द्+घञ्] शनैः २ रुदन करने विविक्तोऽयं महानद्योः समागमे-..-रामा० (ख) वाला, दहाड़ने वाला, हिनहिनाने वाला,पदार्पण, प्रवेश, पहुँच, अन्तर्गमन (छाया) शुद्धे तु | चिल्लाना, चीख, चीत्कार। दर्पणतले सुलभावकाशा-श०७३२, लम् के साथ । अब कन्दनम् [ अव---ऋन्द + ल्युट | जोर से चिल्लाना, ऊँचे बहधा इन्हीं अर्थों में प्रयोग-लब्धावकाशो मे मनोरथः
स्वर से रोना। श०१, शोकावेगदूषिते मे मनसि विवेक एव । अवक्रमः [ अव+क्रम+घा 1 नीचे उतरना, उतार । नावकाशं लभते—प्रबो०, कृ या दा से पूर्व लगकर भी अवक्रयः [अव+की+अच्] 1. मूल्य 2. मजदूरी, अर्थ होता है.---'स्थान देना' 'प्रवेश कराना' 'मार्ग किराया, खेत का भाडा 3. किराये पर देना, पट्टे पर देना'- असो हि दत्त्वा तिमिरावकाशम्-मृच्छ० देना 4. (राजा को दिया जाने वाला) कर या राजस्व, ३।६, तस्माद्देयो विपूलमतिभिनदिकाशोऽधमानाम- शुल्क (राजग्राह्य द्रव्यम् सिद्धा०)। पंच० ११३६६; अवकाशं रुध--रोकना, बाधा अवक्रान्तिः (स्त्री०) [अव+कम+क्तिन् ] 1. उतार 2. डालना-नयनसलिलोत्पीडरुद्भावकाशा (निद्रा)- उपागम । मेघ० ९१, 3. अन्तराल, बीच का स्थान या समय 4. अवक्रिया [अव++ +टाप् ] भूल, चूक ।। द्वारक, विवर।
अवक्रोशः [अव+-क्रुश्+घश] 1. बेमेल ध्वनि 2. अवकोणिन् (वि०) [अवकीर्ण + इनि] संयम का उल्लंघन कोसना 3. दुर्वचन, निन्दा ।
करने वाला, ब्रह्मचर्य व्रत को तोड़ देने वाला, (पुं०---- | अवक्लेदः [अव+क्लिद्+घञ्] 1. टपकना, ओस ो) धर्मनिष्ठ विद्यार्थी जिसने (मैथुनादिक करके) पड़ना 2. कचलहूँ, पीप । अपने ब्रह्मचर्य व्रत को तोड़ा और संयमहीनता का | अवक्लेदनम् [ अव-+क्लिद्+ल्युट ] बंद २ टपकदा, ओस परिचय दिया;-अवकीर्णी भवेदगत्वा ब्रह्मचारी तु या कुहरे का गिरना । योषितम्, गर्दभं पशुमालभ्य नैर्ऋतं स विशुध्यति- अवस्वणः [अव+क्वण्+अच् ] अलाप। याज्ञ० ३।२८०, मनु० ३।१५५ ।।
अवक्वाथः [ अव+ क्वथ्+घञ् ] अधूरा पचन या अधूरा अवकुञ्चनम् [अव+कुञ्च् + ल्युट् ] झुकाव, मोड़,
उबालना। सिकुड़न ।
अवक्षयः [अब+क्षि+अच् नाश, बरबादी, ध्वंस, तबाही। अवकुण्ठनम् [ अब+कुण्ठ् + ल्युट ] 1. घेरना, घेरा डालना अवक्षयणम् [ अव+क्षि+ल्युट ] (आग आदि को) बुझाने 2. आकृष्ट करना, कस के पकड़ना।
के साधन । अवकुण्ठित (वि०) [ अव+कुण्ठ+वत] 1. घेरा हुआ, | अवक्षेपः [ अव-+-क्षिप-घश ] 1. लांछन, निन्दा 2. परिवेष्टित 2. आकृष्ट ।
आक्षेप।
For Private and Personal Use Only