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( ११० )
-चर (वि०) पृथ्वी पर घूमने वाला, आवारागर्द | घुमक्कड़, धः पहाड़, तलम् पृथ्वीतल, -- मंडलम् भूमंडल, रुहः, -रुट् वृक्ष । अवनेजनम् [ अव +- निज् + ल्युट् ] 1. प्रक्षालन, मार्जन -न कुर्याद्गुरुपुत्रस्य पादयोश्चावनेजनम् मनु० २।२०९, 2. धोने के लिए पानी, पैर बोना 3. श्राद्ध में पिंडदान की वेदी पर विछाये हुए कुशों पर जल छिड़कना । अवन्तिः -- तो ( स्त्री० ) [ अव + झिच् वा० पक्षे ङीप् |
नाम, -
1. एक नगर का नाम, वर्तमान उज्जयिनी, हिन्दुओं के सात पवित्र नगरों में से एक, कहा जाता है कि यहाँ मरने से शाश्वत सुख मिलता है- अयोध्या मथुरा माया काश काञ्चिरवन्तिका पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिकाः । अवन्ती की स्त्रियां काम-कला में अत्यन्त कुमल होती हैं, तु० आवंत्य एवं निपुणाः सुदृशो रतकर्मणि - बालग० १० ८२; 2. एक नदी का - ( पुं० व० व०) एक देश का नाम जिसे आजकल मालवा कहते हैं, तथा वहाँ के निवासी, इसकी राजधानी सिप्रा नदी के तट पर स्थित उज्जयिनी नगरी है - इसके नगरांचल में महाकाल का एक मन्दिर भी है; अवन्तिनाथोऽयमुदग्रबाहुः रघु० ६।३२, असौ महाकालनिकेतनस्य वसन्नदूरे किल चन्द्रमौले: - ६१३४, ३५ प्राप्यावन्तीनुदयनकथाकोविदग्रामवृद्धान् मेघ० ३०, अवन्तीपूज्जयिनी नाम नगरी का० ५२ । सम० - पुरम् अवन्ती नामक नगर, उज्जयिनी ।
अबन्ध्य ( वि० ) [ न० त०] जो बंजर न हो, उर्वर, उपजाऊ । अवपतनम् [अव + पत् + ल्युट् ] उतरना, नीचे आना । अवपाक (fro ) [ अवकृष्टः पाको यस्य ब० स०] बुरी
तरह पकाया हुआ, कः बुरी तरह से पकाना । अवपातः [ अव + त् + घञ ] 1. नीचे गिरना - अधश्चरणा
वपातम् भर्तृ० २।३१, पैरों पर गिरना, ( आलं ० ) चापलूसी 2. उतरना, नीचे आना 3. विवर, गर्त 4. विशेषकर हाथियों को पकड़ने के लिए बनाया गया बिल या गर्त अवपातस्तु हस्त्यर्थे गर्ते छन्ने तृणादिना - यादव: रोधांसि निघ्नन्नवपातमग्नः करीव वन्यः परुषं ररास रघु० १६ । ७८ ।
अवपातनम् [अव + पत् + णिच् + ल्युट् ] गिराना, ठुकराना, नीचे फेंकना ।
अवपात्रित (वि० ) [ अवपात्र ( ना० धा० ) + गिच् + क्त ] जातिबहिष्कृत, ऐसा व्यक्ति जिसको बिरादरी के लोग अपने पात्र में भोजन कराने के लिए अनुमति न देते हों ।
अवपीड: [ अव + पीड़ + णिच् । ] 1. नीचे दवाना, दबाव 2. एक प्रकार की औषधि जिसके सूंघने से छींके आती हैं, नस्य ।
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अवपीडनम् [ अव + पीड् + णिच् + ल्युट् ] 1. दबाने की क्रिया 2. नस्य, ना क्षति, आघात ।
अवबोधः (अव + बुध् + घा] 1. जागना, जागरूक होना ( विप० स्वप्न ) यौ तु स्वप्नावबोधी तो भूतानां प्रलयोदयौ कु० २२८, भग० ६ १७, 2. ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण- स्वभर्तृनामग्रहणादृभूव सान्द्रे रजस्यात्मपरावबोध: - रघु० ७१४१, ५/६४, प्रतिकूलेषु तैक्ष्णस्यावबोध: क्रोध इष्यते - सा० द०, 3. विवेचन, निर्णय 4. शिक्षण, संसूचन 1
अवबोधक ( वि० ) [ अव + बुध् + ण्वुल् ] संकेतक, दर्शाने
वाला, कः 1. सूर्य, 2. भाट 3 अध्यापक । अवबोधनम् [ अव + बुध् । ल्युट् ] ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण | अवभङ्गः [अव + भञ्ज्+घञ] नीचा दिखाना, जीतना, हराना ।
अवभासः | अव + भास् + घञ्न् ] 1. चमक-दमक, कान्ति,
प्रकाश 2. ज्ञान, प्रत्यक्षीकरण 3 प्रकट होना, प्रकाशन, अन्त: प्रेरणा 4. स्थान, पहुंच, क्षेत्र 5 मिथ्याज्ञान । अवाक ( fro ) [ अव + भास् + ण्वुल् ] प्रकाशक, कम् परब्रह्म ।
अवभुग्न (वि० ) [ अव + भुज् + क्त] सिकुड़ा हुआ, झुका हुआ, टेढ़ा किया हुआ ।
अवभृथः [अव + भू+ कथन ] 1. मुख्य यज्ञ की समाप्ति पर शुद्धि के लिए किया जाने वाला स्नान-१ - भुवं कोन कुण्डोनी मेध्येनावभृथादपि - रघु० १०८४, ९/२२, ११।३१, १३/६१, 2. मार्जन के लिए जल 3. अतिरिक्त यज्ञ जो पूर्वकृत मुख्य यज्ञ की त्रुटियों की शांति के लिए किया जाता है, सामान्य यज्ञानुष्ठान -- स्नातवत्यवभृथे ततस्त्वयि - शि० १४ । १० । सम० --स्नानम् यज्ञानुष्ठान की समाप्ति पर किया जाने
वाला स्नान । अवनः अपहरण, उठाकर ले जाना ।
अवट (वि० ) ( नतं नासिकायाः अव + भ्रटच् ] चपटी
नाक वाला ।
अक्षम (वि० ) [ अत् | अमच्] 1. पापपूर्ण 2. घृणित, कमीना 3. खोटा, नीच, घटिया (विप० परम ) --अनलकानलकानवमां पुरीम् - रघु० ९।१४, दे० 'अनवम' 4. अगला, घनिष्ट 5. पिछला, सबसे छोटा ।
(भू० क० कृ० ) [ अव + मन् + क्त ] घृणित, कुत्सित । सम० अङकुश: अंकुश को न मानने वाला हाथी, मदमत्त कामवमतांङकुराग्रहः- शि० १२।१६ । अमतिः (स्त्री० ) [ अव + मन् + क्तिन्] 1 अवहेलना, अनादर 2. अरुचि, नापसंदगी ।
अवमर्दः [ अव + मृद् + घा] 1. कुचलना, 2. वर्बाद करना,
अत्याचार करना ।
अवमर्शः [ अव + मृश् + घञ
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