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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( 640 ) ण्वुल] 1. प्रकट करने वाला, खोजने वाला, उघाड़ने / प्रकृत (भू० क० कृ०) [प्र++क्त ] 1. निष्पन्न, पूरा वाला, सूचित करने वाला, बतलाने वाला, प्रदर्शित किया हुआ 2. आरंभ किया हआ, शुरु किया हुआ करने वाला 2. अभिव्यक्त करने वाला, संकेत करने 3. नियुक्त किया हुआ, जिसे कार्य भार संभाला जा वाला 3. व्याख्या करने वाला 4. उजला, चमकीला, चुका 4. असली, वास्तविक 5. चर्चा का विषय, उज्ज्वल 5. माना हुआ, प्रसिद्ध, विख्यात,---क: 1. सूर्य विचारणीय विषय, प्रस्तुत विषय (अलंकारग्रंथों में 2. खोजी 3. प्रकाशित करने वाला। सम०--ज्ञात 'उपमेय' के लिए बहुधा प्रयुक्त) संभावनमथोत्प्रेक्षा (पुं०) मुर्गा / प्रकृतस्य समेन यत् काव्य० 10 6. महत्त्वपूर्ण, प्रकाशन (वि.) [प्र-+-काश् ।-णिच् + ल्युट्] रोशनी करने मनोरंजक,-तम् मूलविषय, प्रस्तुत विषय, यातु वाला, विख्यात करने वाला,--नम् 1. जतलाना, प्रकट किमनेन प्रकृतमेव अनुसरामः / सम०---अर्थ (वि.) करना, प्रकाश में लाना, उघाड़ना 2. प्रदर्शन, स्पष्टी- मूल अर्थ को रखने वाला (-र्थः) मूल अर्थ / करण 3. रोशनी करना, चमकाना, उजला करना, | प्रकृतिः (स्त्री०) [प्र++क्तिन् ] 1. किसी वस्तु की -नः विष्णु / नैसर्गिक स्थिति, माया, जड़जगत, स्वाभाविक रूप प्रकाशित (भू०क०कु०)[ प्रकाश+णिच्+क्त]1. प्रकट (विप० विकृति जो या तो परिवर्तन है या कार्य) किया गया, स्पष्ट किया गया, प्रदर्शित, प्रकटीकृत प्रकृत्या यद्वक्रम्-श०११९, उष्णत्वमग्न्यातपसंप्रयोगात् 2. छापा गया-प्रणीतो न त् प्रकाशितः-उत्तर०४ शैत्यं हि यत्सा प्रकृतिर्जलस्य-- रघु० 5 / 54, मरण 3. रोशन किया गया, चमकाया गया, ज्योतिर्मान प्रकृतिः शरीरिणां विकृतिर्जीवितमुच्यते बुधः-रघु० किया गया 4. जो दिखलाई दे, दृश्य, स्पष्ट, प्रकट / 8187, अपेहि रे अत्रभवान् प्रकृतिमापन्न:--श० 2, प्रकाशिन् (वि.) [प्रकाश+इनि] साफ, उजला, चमकदार (उन्होंने फिर अपना सामान्य स्वभाव धारण कर आदि। लिया है) प्रकृतिमापद्, प्रकृतिप्रतिपद्, प्रकृतौ स्था प्रकिरणम् [प्र-+-कृ + ल्युट्] इधर उधर बिखेरना, होश में आना, अपना चैतन्य फिर प्राप्त करना छितराना। 2. नैसर्गिक स्वभाव, मिजाज, स्वभाव, आदत, (मानप्रकीर्ण (भू० क० कृ०) [प्र+कृ-|-क्त 1. इधर उधर सिक) रचना, वृत्ति-प्रकृतिकृपण, प्रकृतिसिद्धि-दे० बिखरा हुआ, छितराया हुआ, खिंडाया हआ, तितर नी0 3. बनावट, रूप, आकृति-महानुभावप्रकृतिः बितर किया हुआ--प्रकीर्णः पूष्पाणां हरिचरणयो- -मा० 1 4. वंशानुक्रम, वंशपरंपरा--मृच्छ० 7 रंजलरियम् वेणी० 111 2. फैलाया हुआ, प्रकाशित, 5. मूल, स्रोत, मौलिक या भौतिक कारण, उपादानउद्घोषित 3. लहराया हआ लहराता हुआ- शि. कारण- प्रकृतिश्चोपादानकारणं च ब्रह्माभ्युपगन्तव्यम् 12 / 17 + विपर्यस्त, शिथिल, अस्तव्यस्त 5. अव्य शारी० (ब्रह्म० 114 / 23 पर की गई चर्चा का पूरा वस्थित, असंबद्ध-बह्वपि स्वेच्छया कामं प्रकीर्णमभि विवरण देखिये) यामाहः सर्वभूतप्रकृतिरिति-- श० धीयते-शि० 2 / 63 6. क्षुब्ध, उत्तेजित 7. विविध, 111 6. (सांख्य में) प्रकृति (पुरुष से विभिन्न) मिथित --जैसा कि भट्रिकाव्य का प्रकीर्णकांड,--र्णम - भौतिक सृष्टि का मूलस्रोत जिसमें तीन (सत्त्व, 1. नाना-संग्रह, फुटकर संग्रह 2. फुटकर नियमों के रजस् और तमस् ) प्रधान गुण सन्निविष्ट है 7. (व्या० संग्रह का एक अध्याय / में०) मूलधातु या शब्द (प्रातिपदिक) जिसमें लकार प्रकीर्णक (वि०) [प्रकीर्णकन्] इधर उधर विखरे हए, और कारकों के प्रत्यय लगाए जाते हैं 8. आदर्श, छितरे हुए,... कः,-- कम् चंवर, मोरछल शि० नमूना, मानक (विशेषतः कर्मकाण्ड की पुस्तकों में १२।१७,--कः घोड़ा,-कम् 1. नाना संग्रह, फुटकर 9. स्त्री 10. सृष्टि रचना में परमात्मा की मूर्त इच्छा वस्तुओं का संग्रह 2. विविध विषयों का अध्याय / (इसी को 'माया' या मरीचिका कहते हैं) भग० 9 // प्रकीर्तनम् [प्र.-कृ+ ल्युट] 1. उद्घोषण, घोषणा 2. प्रशंसा 10 11. स्त्री या पुरुष की जननेन्द्रिय, योनि, लिङ्ग करना, स्तुति करना, श्लाघा करना / 12. माता, (ब० व.) 1. राजा के मन्त्री, मन्त्रिपरिप्रकीतिः (स्त्री०) [प्रा० स०] 1. प्रसिद्धि, प्रशंसा 2. यश, षद्, मन्त्रालय-रघु० 12 / 12, पंच० 048, 301 ख्याति 3. घोषणा। 2. (राजा की) प्रजा--प्रवर्ततां प्रकृतिहिताय पार्थिवः प्रकुंचः [प्र+कुञ्च -+-घा] धारिता का विशेष माप / --श० 7.35, नृपतिः प्रकृतीरवेक्षितुम् .. रघु० 8 / प्रकुपित (भू० क० कृ०) [प्र+कुप्+क्त] 1. अतिक्रुद्ध, 18, 10 3. राज्य के संविधायी सात तत्त्व या अंग कोपाविष्ट, रुष्ट 2. उत्तेजित / अर्थात् 1. राजा 2. मन्त्री 3. मित्रराष्ट्र ४.को प्र प्रकुलम् [प्र+कुल+क] सुन्दर शरीर, सुडौल काया / 5. सेना, 6. प्रदेश 7. गढ़ आदि 8. नगरपालिका या प्रकूष्मांडी [प्रा० ब०-हीष] दुर्गा का विशेषण / निगम (यह भी कभी-कभी उपर्यक्त सातों के साथ For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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