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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir / 639 ) करना, विचारविमर्श करना 2. विषय, प्रसंग, विभाग, / प्रकांडकः [प्रकाण्ड+कन] दे० 'प्रकाण्ड' / (चित्रण का) विषय —कतमत्प्रकरणमाश्रित्य-श० प्रकांडरः [प्रकाण्ड+रा+क] वृक्ष, पेड़। 1 3. अनुभाग, पाठ, परिच्छेद आदि किसी कृति का प्रकाम (वि.) [प्रा० स०] 1. शृंगारप्रिय 2. अत्यन्त, छोटा प्रभाग 4. मौका, अवसर 5. मामला, बात 6. अति, मनभर कर, सानन्द-प्रकाम विस्तर-रघु० प्रस्तावना, आमुख 7. नाटक का एक भेद जिसकी 2 / 11, प्रकामा लोकनीयताम् कु० २।२४,-मः इच्छा, कथावस्तु कृत्रिम हो जैसा कि मृच्छकटिक, मालती- आनन्द, संतोष--मम् (अव्य०) 1. अत्यधिक, अत्यंत माधव, पुष्पभूषित आदि / सा० द० कार द्वारा दी -जातो ममायं विशदः प्रकामम् (अन्तरात्मा), श० गई परिभाषा--भवेत्प्रकरणे वृत्तं लौकिक कवि- 4 / 21, रघु० 6 / 44, मृच्छ० पा२५ 2. पर्याप्तरूप कल्पितम्, शृंगारोंगी नायकस्तु विप्रोऽमात्योऽथवा से, मन भर कर, इच्छानुकूल 3. स्वेच्छापूर्वक, मन वणिक, सापायधर्मकामार्थ परो धीरप्रशांतकः 511 // से। सम०-भुज् (वि०) अधा कर खाने वाला, प्रकरणिका, प्रकरणी [प्रकरणी+कन्+टाप्, ह्रस्वः, मन भर कर खाने वाला--रघु० 1166 / / प्रकरण+डीप] एक नाटक जो प्रकरण के लक्षणों से प्रकारः [प्र+कृ+घञ] 1. ढंग, रीति, तरीका, शैली ही युक्त हो। सा० द० कार उस परिभाषा इस प्रकार ----कः प्रकारः किमेतत्-मा० 520 2. किस्म, करता है-नाटिकैव प्रकरणिका सार्थवाहा- दिनायिका, जिन्स, भेद, जाति (प्रायः समास में प्रयुक्त) बहुप्रकार समानवंशजा नेतुर्भवेद्यत्र च नायिका 554 / / विविध प्रकार का, त्रिप्रकार, नाना आदि 3. समरूपता प्रकरिका [प्रकरी+क+टाप, ह्रस्वः] एक प्रकार का 4. विशेषता, विशिष्ट गुण / विष्कभ या उपकथा जो नाटक में आगे वाली घटना | प्रकाश (वि.) प्र--काश् +अच] 1. चमकीला, चमकने को बतलाने के लिए सम्मिलित कर दी जाय / वाला, उज्ज्वल-प्रकाशश्चाप्रकाशश्च लोकालोक प्रकरी [प्रकर+डी] एक प्रकार का विष्कंभ या उपकथा इवाचल:- रघु० 1168, 512 2. साफ, स्पष्ट, . जो नाटक में आगे आने वाली घटना को बतलाने प्रत्यक्ष-शि० 1256, भग० 7 / 25 3. विशद, के लिए सम्मिलित कर दी जाय 2. नटों की पोशाक प्रांजल -कि० 1414 4. विख्यात, विश्रुत, प्रसिद्ध, 3. रंगस्थली 4. चौराहा 5. एक प्रकार का गीत / / माना हुआ-रघु० 3 / 48 5. खुला, सार्वजनिक प्रकर्षः [प्र+कृष् +घञ] 1. श्रेष्ठता,प्रमुखता, सर्वोपरिता 6. वृक्षादि काट कर साफ किया हुआ स्थान, खुली --वपुः प्रकर्षादजयद्गुरुं रघु:-रघु० 3 / 34, वर्ण जगह-रघु० 4 / 31 7. खिला हुआ, विस्तरित प्रकर्ष सति-कु३२८ 2. तीव्रता, प्रबलता, 8. (समास के अन्त में) (के) समान दिखाई देने आधिक्य-प्रकर्षगतेन शोकसंतानेन-उत्तर० 3 वाला, सदृश, मिलता-जुलता, शः 1. दीप्ति, कान्ति, 3. सामर्थ्य, शक्ति 4. निरपेक्षता 5. लम्बाई, विस्तार आभा, उज्ज्वलता 2. (आलं०) प्रकाशन, स्पष्टीकरण, प्रकर्षेण प्रकर्षात् क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त व्याख्या करना (प्रायः पुस्तकों के नामों के अन्त में) होकर 'अत्यंत' 'अधिकता के साथ' या 'उत्कृष्टता के काव्य प्रकाश, भाव प्रकाश, तर्क प्रकाश आदि 3. धप साथ' अर्थ प्रकट करते हैं)। 4. प्रदर्शन, स्पष्टीकरण शि०९।५ 5. कीर्ति, ख्याति, प्रकर्षणम् [प्र+कृष् + ल्युट] 1. खींचने की क्रिया, आकर्षण प्रसिद्ध, यश 6. विस्तार, प्रसार 7. खुली जगह, खुली 2. हल चलाना 3. अवधि, लंबाई, विस्तार 4. श्रेष्ठता, हवा --प्रकाशं निर्गतोऽवलोकयामि --श० 4 8. सुनहरी सर्वोपरिता 5. ध्यान हटाना। शीशा 9. (पुस्तक का) अध्याय, परिच्छेद या अनुभाग प्रकला [प्रा० स०] अत्यन्त सूक्ष्म अंश / ---शम् (अव्य०) 1. खुले रूप से, सार्वजनिक रूप से प्रकल्पना [प्र+क्लप्+णिच् +-युच+टाप्] स्थिर करना, -प्रतिभूपितो यत्तु प्रकाशं धनिनो धनम्-याज्ञ० निश्चयन, नियत करना-मनु०८।२११ / 2 / 56, मनु० 8 / 193 942282. ऊँचे स्वर से, प्रकट प्रकल्पित (भू० क. कृ०) प्र+क्लप+णिच्+क्त] 1. होकर, (रंगमंच के अनुदेश के रूप में नाटकों में बनाया हुआ, कृत, निर्मित 2. निश्चत किया हआ, प्रयुक्त-विप० आत्मगतम्) / सम०.-आत्मक नियत किया हुआ, ता एक प्रकार की पहेली। (वि.) चमकीला, उजला,-आत्मन् (वि०) उज्ज्वल, प्रकांड:-डम् [प्रकृष्टः कांड:--प्रा० स०] 1. वृक्ष का चमकदार (पुं०) शिव का विशेषण 2. सूर्य-इतर तना जड़ से शाखाओं तक-शि० 9:45 2. शाखा, (वि०) जो दिखाई न दे, अदृश्य,-क्रयः खुल्लमखुल्ला किसलय 3. (समास के अंत में) कोई भी श्रेष्ठ या खरीदना,-नारी वारांगना, रंडी, वेश्या-अलं चतु:प्रमुख प्रकार का पदार्थ ऊरूप्रकांडद्वितयेन तस्याः शाल मिमं प्रवेश्य प्रकाशनारीधृत एष यस्मात्-मच्छ. -07 / 9 3. क्षत्र प्रकांड:-महावी० 4135 . 317 / 5 / 484. भुजा का ऊपरी भाग / | प्रकाशक (वि०) (स्त्री०-शिका) [प्र+काश्+णिच् For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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