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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जोड़ दिया जाता है) स्वाम्यमात्यसूहृत्कोशराष्ट्र- का एक दोष (काव्य०७ में वर्णित 'भग्न-प्रक्रमता' दुर्गबलानि च-अमर 4. अनेक प्रभु जो युद्ध के समय यही है, सममिति या समरूपता का अभाव चाहे वह विचारणीय होते हैं (पूरे विवरण के लिए दे० मनु० अभिव्यक्ति में हो चाहे रचना में नाथे निशायां 7 / 155, और 157 पर कुल्लू.) 5. आठ प्रधान नियतेनियोगादस्तं गते हंत निशापि याता—यह अभितत्त्व जिनसे सांख्यशास्त्रियों के अनुसार प्रत्येक वस्तु व्यक्ति की समरूपता के अभाव का उदाहरण है, यहां उत्पन्न होती है, दे० सां० का० 3 6. सृष्टि के पांच 'गता निशाऽपि' ने अभिव्यक्ति की अनियमितता को प्रधान तत्त्व, पंच महाभूत अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, शान्त कर दिया है,-विश्रब्धं क्रियतां वराहततिभिवायु और आकाश / सम० -ईशः राजा या दण्डा- मुस्ताक्षतिः पल्वले--रचना की अनियमितता का धिकारी,-कृपण (वि.) स्वभाव से सुस्त, या विवेकहीन उदाहरण है, यहाँ कविता की समरूपता को स्थिर –मेघ० ५,-तरल (वि.) चंचल स्वभाव का, रखने के लिए कर्मवाच्य के बजाय कर्तवाच्य रचना असंगत, बेमेल ----अमरु २७,-पुरुषः मन्त्री, (राज्य का) की आवश्यकता है, इसी पंक्ति को बदलकर 'विश्रब्धा कार्य निर्वाहक-मेघ० 6, --मंडलम् समस्त प्रदेश या रचयंतु शुकरवरा मुस्ताक्षति पल्वले' पढ़ने से दोष का राजधानी-रघु० ९।२,-लयः प्रकृति में समा जाना, परिहार हो जाता है-अधिक विवरण के लिए दे० विश्व का विघटन, सिद्ध (वि०) अन्तर्जात, सहज, काव्य 7 'भग्न प्रक्रमता' के नीचे / / नैसर्गिक--भर्तृ० 2 / 52, सुभग (वि.) स्वभाव से प्रकान्त (भू० क० कृ०) [प्र+क्रम् + क्त ] 1. आरंभ प्रिय, रुचिकर, स्थ (वि.) 1. प्राकृतिक अवस्था किया गया, शुरू किया गया 2. गत, प्रगत 3. प्रस्तुत, में होने वाला, स्वाभाविक, असली 2. अंतहित, सहज, / विवादग्रस्त 4. बहादुर। प्रकृति के अनुरूप --रघु०८।२१ 3. स्वस्थ, तन्दुरुस्त | प्रक्रिया प्रकृ---श+टाप 11. रीति, प्रणाली, पद्धति 4. जिसने आरोग्य प्राप्त कर लिया हो 5. स्वस्थ, 2. कर्मकांड, संस्कार 3. राजचिह्न का धारण करना आत्मलोन 6. विवस्त्र, नंगा। 4. उच्च पद, समुन्नति 5. (किसी पुस्तक का) एक प्रकृष्ट (भू० क० कृ०) [प्र+कष + क्त ] 1. खींचकर अध्याय या अनुभाग-यथा उणादिप्रक्रिया 6. (व्या० निकाला हुआ 2. सुदीर्घ, लंबा, अतिविस्तृत 3. सर्वो- में) व्युत्पत्तिजन्य रूपनिर्माण 7. प्राधिकार / त्तम, पूज्य, श्रेष्ठ प्रमुख, गौरवशाली 4. मुख्य, प्रधान प्रक्रीडः [प्र+-क्रीड्+अच् ] क्रीडा, मनोरंजन, खेल या 5. विक्षिप्त, अशांत / आमोद-प्रमोद / प्रक्लुप्त (भू० क० कृ.) [प्र-क्लप् + क्त ] तैयार किया प्रक्लिन्न (भू० क० कृ०) [प्र+क्लिद्+क्त ] 1. तर, हुआ, सज्जीकृत, व्यवस्थित / __ नमी वाला, गीला 2. तृप्त 3. दया से पसीजा हुआ। प्रकोयः [प्र+कुथ्+घञ ] सड़ांध, बदबू / प्रक्वणः, प्रक्वाणः [प्र+क्वण+-अप, घाच] वीणा प्रकोष्ठः [प्र-कुष् + स्थन् ] 1. कोहनी से नीचे की भुजा, की झनकार / गट्टे से ऊपर का हाथ-वामप्रकोष्ठापितहेमवेत्रः-कु० | प्रक्षयः [ प्रक्षि -+-अप] नाश, बरबादी। 3 / 41, कनकवलयभ्रंशरिक्तप्रकोष्ठ: ... मेघ० 2, प्रक्षर दे० प्रक्खर / / रघु० 3 / 59 श० 666 2. फाटक के निकट का प्रक्षरणम् [प्र+क्षर् + ल्युट् ] मन्द 2 स्रवित होना, कमरा मुद्रा० 1 3. घर का आँगन, (चारों ओर रिसना। मकानों से घिरा हुआ) चौकोर या वर्गाकार आँगन प्रक्षालनम् [ प्र+क्षल+कि+ल्युट ] 1. धोना, धो -----इमं प्रथम प्रकोष्ठं प्रविशत्वार्य:-आदि--मुच्छ० 4 / डालना--रघु० 6 / 48 2. मांजना, साफ करना, स्वच्छ प्रकोष्ठकः [प्रकोष्ठ+कण् ] फाटक के पास का कमरा करना 5. धोने के लिए पानी। - तस्थुर्विनप्रक्षितिपालसंकुले तदङ्गनद्वारबहिः प्रको प्रक्षालित (भू० क० कृ०) [ प्र+क्षल+णिच्+क्त ] ष्ठके-कु० 15 / 6 / / 1. धोया गया, मांजा गया 2. स्वच्छ किया गया प्रक्वरः [ =प्रखरः पृषो०] 1. हाथी या घोड़े की रक्षा ____ 3. जिसने प्रायश्चित्त कर लिया है। के लिए कवच 2. कुत्ता 3, खच्चर / प्रक्षिप्त (भू० क० कृ०) [प्र+क्षिप्-+क्त ] 1. फेंका प्रकमः [ प्र-क्रम्+घञ्] 1. पग, कदम 2. दूरी मापने गया, ढाला गया, उछाला गया 2. डाला गया—मा० का गज, पग का अन्तर (लगभग 30 इंच 3. आरंभ, 5 / 22 3. निकला हुआ 4. बीच में डाला गया, शुरू 4. प्रगमन, मार्ग----मा० 5 / 24 5. प्रस्तुत बात नकली या खोटा -यथा 'प्रक्षिप्तोऽयं श्लोकः' में। 6. अवकाश, अवसर 7. नियमितता, क्रम, प्रणाली प्रक्षीण (भू० क० कृ०) [प्र+क्षि+क्तं ] 1. मुझया 8. मात्रा, अनुपात, माप / सम-भंगः नियमितता हुआ, दुर्बला होने वाला 2. नष्ट किया हुआ 3. जिसने और सममिति का अभाव, क्रम का टूट जाना, रचना प्रायश्चित्त कर लिया है 4. लुप्त, ओझल / 81 SHARE For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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