SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 651
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रक्षुण्ण (भू० क. कृ.) [प्र+क्षुद्+क्त ] 1. कुचला | 6 / 20 4. हाजिर जवाब, मुस्तैद 5. दृढ़ संकल्पी, हुआ 2. आरपार भेदा हुआ 3. उत्तेजित किया हुआ। ऊर्जस्वी 6. (आयु की दृष्टि से) परिपक्व, कु. 1 // प्रक्षेपः [प्र-+-क्षिपघा 11. आगे फेंकना, उभारना 51 7. परिपक्व, विकसित, पूरा बढ़ा हुआ, बलवान् फेंकना, डालना 3. बखेरना 4. खोट धसाना, बीच प्रगल्भवाक-कु० 5 / 30, (प्रौढवाक्) मा० 9 / 29, में मिलाना 5. गाड़ी का बक्स 6. किसी व्यापारिक उत्तर० 635 8. कुशल- का० 12 1. बेघड़क, संघ के प्रत्येक सदस्य द्वारा जमा की गई धनराशि / उद्धत, घमंडी, उपकारशील 10. निर्लज्ज, ढीठ-रघु० प्रक्षेपणम् [प्र+क्षिप्+णिच् + ल्युट ] फेंकना, डालना, 13 / 9 11. गौरवशाली प्रमुख,-ल्भा 1. साहसी स्त्री उछालना। 2. कर्कशा, झगड़ाल स्त्री 3. उद्धत या प्रौढ़ स्त्री, प्रक्षोभणम् [प्र+क्षुभ् + ल्युट ] उत्तेजना, क्षोभ / काव्यनाटक को नायिकों में से एक' (सब प्रकार के प्रक्वेडनः [प्र+विड्+ल्युट ] लोहे का तीर 2. हल्ला- लाडप्यार व चूमा-चाटी में चतुर, ऊंचे दर्जे के व्यव. गुल्ला, हड़बड़ी। हार से युक्त, शालीनता-सम्पन्न, प्रौढ़ आयु की तथा प्रक्वेडित (वि.) [प्र+विड्+णिच्+क्त ] मुखर, अपने पति पर शासन करने वाली-सा० द०१०१ वीत्कार से पूर्ण, कोलाहलमय / तथा तत्संबंधी उदाहरण)। प्रखर (वि०) [प्रकृष्टः+खर:-प्रा० स०] 1. अत्यन्त | प्रगाढ (भू० क० कृ०) [प्र+गाह+क्त] 1. डुबोया हुआ, गरम-यथा प्रखरकिरण 2. तेज गंधयुक्त, तीक्ष्ण तर किया हुआ, भिगोया हुआ 2. अति, अत्यधिक, 3. अत्यंत कठोर, रूखा,-रः दे० 'प्रक्खर' / तीब 3. दृढ़, मजबूत 4. कठोर, कठिन,-ढम् 1. प्रत्य (वि.) [प्र+ख्या+क ] 1. साफ, प्रत्यक्ष, स्पष्ट कंगाली 2. तपस्या, शारीरिक, कष्ट,-तुम् (अव्य०) 2. (के समान) दिखाई देने वाला, मिलता-जुलता ___ 1. अत्यधिक, अत्यंत 2. दृढ़तापूर्वक / (समास के अन्त में प्रयुक्त) अमृत°, शशाक आदि / प्रगात (पु.) [ प्रेग+तृच् ] उत्तम गाने वाला। प्रख्या [प्र+ख्या+अङ+टाप् ] 1. प्रत्यक्षज्ञेयता, दृश्यता प्रगुण (वि०) [ प्रकर्षण गुणो यत्र प्रा० ब० ] 1. 2. विश्रुति, यश, प्रसिद्धि-व्यवसत्परमप्रख्यः संप्रत्येव सीधा, ईमानदार, खरा, (आलं०, शा० से)-बहिः पुरीमिमाम्--रामा० 3. उखाड़ना 4. समरूपता, समा- सर्वाकारप्रगुणरमणीयं व्यवहरन्-मा० 1 / 14 2. नता (समास में)-याज्ञ०३।१०। सुदशासम्पन्न, उत्तम गुणों से युक्त-श्रमजयात्प्रगणां प्रख्यात (भू० क. कृ.) [ प्र+ख्या+क्त ] 1. मशहूर, च करोत्यसो तनुमतोऽनुमतः सचिवर्ययो- रघु० 9 / 49 प्रसिद्ध, विश्रुत माना हुआ 2. पहले से मोल लिया 3. (क) योग्य, उपयुक्त, गुणी- मा० 116 (ख) हुआ, पूर्वक्रयाधिकार केवल पर अभ्यथित 3. खुश, प्रवीण -9 / 454. कुशल, चतुर (प्रगुणी कृ 1. सीधा प्रसन्न / सम०-वप्तक (वि.) प्रसिद्ध पिता वाला। करना, क्रम से रखना, व्यवस्थित करना 2. चिकना प्रख्यातिः (स्त्री० [प्रख्या +क्तिन् ] 1. कीर्ति, विश्रुति, करना 3. पालन-पोषण करना, परवरिश करना)। प्रसिद्धि 2. प्रशंसा, स्तुति / प्रगुणित (वि.) [प्र+गण+क्त ] 1. सीधा या समतल प्रगंडः [प्रकृष्ट: गंडो यस्य प्रा० ब० कोहनी से ऊपर किया हुआ 2. चिकना किया हुआ। कंधे तक की भुजा।। प्रगृहीत (भू० क. कृ०) [प्र+ग्रह+क्त ] 1. थामा प्रगंडी [ प्रगंड +डोष् ] (नगर का) परकोटा, बाहरी हुआ, संभाला हुआ 2. प्राप्त, स्वीकृत 3. संधि के दीवाल। नियमों की अधीनता का अभाव, दे० नीचे 'प्रगा'। प्रगत (भू.क. कृ.) [प्र+गम्+क्त ] 1. आगे गया प्रगृह्यम् [प्र+ग्रह -क्यप् ] संधि के नियमों से मुक्त हुआ 2. पृथक्, अलग / सम-जानु,-जानुक (वि.) स्वर जो स्वतंत्र रूप से बोला या लिखा जाय 'ईदूदेद्धनुष्पदी, घुटने पर मुड़ी हुई टाँगो वाला। द्विवचनं प्रगृह्यम्' पा० 111 / 11 / / प्रगमः [प्र+गम्+अप् ] प्रेम की आराधना में प्रथम | प्रगे (अव्य०) [प्रकर्षण गीयतेऽत्र--प्र-गै–के ] भोर प्रगति, प्रेम की प्रथम अभिव्यक्ति / होते ही, पौ फटते ही- इत्यं रथाश्वेभनिषादिनां प्रगे प्रगमनम् [प्र+गम् + ल्युट् ] 1. आगे बढ़ना, प्रगति 2. प्रेम गणो नपाणामथ तोरणाद् बहि:--शि० 1211, सायं की आराधना में पहला कदम, दे० ऊ. 'प्रगम'। स्नायात्पगे तथा-मनु०.६९, 4162 / सम-तन प्रगर्जनम् [प्र+गर्ज + ल्युट] दहाड़ना, चिधाड़ना, (वि०) प्रातः काल अनुष्ठेय कर्म,--निश,-शय गरजना। (वि०) जो दिन निकल जाने पर भी सोया पड़ा है। प्रगल्भ (वि.) [प्र+गल्भ् +अच् ] 1. साहसी, भरोसा | प्रगोपनम् [प्र+गुप् + ल्युट ] रक्षण, संधारण / करने वाला 2. हिम्मती, बहादुर, निःशंक, उत्साही, प्रग्रपनम् [प्र+ग्रन्थ ल्युट / नत्थी करना, गूंथना, साहसी,-रषु० 2 / 41 3. वाग्मी, वाक्पटु-रघु० / बुनना। For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy