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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १९२ ) वाला 2. उत्तराधिकारी, बन्धु-बांधव, दानम् = कर्मन् -- धरः बादल, भारः, बीवधः पानी ढोने की बहंगी, वज्रः गरज के साथ बौछार, शाकम् कोई भी बनस्पति जो जल में पैदा होती है, शान्तिः ( स्त्री० ) ज्वर दूर करने के लिए रोगी के ऊपर अभिमंत्रित जल छिड़कना तु० शान्त्युदकम् स्पर्शः शरीर के विभिन्न अंगों पर जल के छींटे देना, - हारः पानी ढोने वाला कहार । उबक ( कि ) ल ( वि० ) [ उदक + लच्, इलच् वा ] पनीला, रसेदार जलमय । उदकेचर: [ अलुक् स०] जलचर, जल में रहने वाला जन्तु । उक्त (वि० ) [ उद् + अञ्च् + क्त ] उठाया हुआ, ऊपर को उभारा हुआ, -- उदक्तमुदकं कूपात् — सिद्धा० । उबश्य (वि०) [ उदकमर्हति दण्डा० उदक + यत् ] जल की अपेक्षा करन वाला - क्या ऋतुमती स्त्री, रजस्वला स्त्री । उदग्र ( वि० ) [ उद्गतमयं यस्य - ब० स० ] 1. उन्नत शिखर वाला, उभरा हुआ, ऊपर की ओर संकेत करता हुआ, यथा - दंत 2. लंबा, उत्तुंग, ऊँचा, उन्नत, उच्छ्रित ( आलं० ) - उदग्रदशनांशुभिः -- शि० २१२१, ४) १९. उदग्र क्षत्रस्य शब्द: रघु० २।५३, उदग्रप्लुतत्वात् श० १७ ऊँची छलांगें 3. विपुल विशाल, विस्तृत बड़ा अवन्तिनाथोऽयमुदग्रबाहुः- रघु० ६।३२ 4. वयोवृद्ध 5. उत्कृष्ट, पूज्य, श्रेष्ठ, अभिवृद्ध, वर्धित --स मंगलोदग्रतरप्रभावः -- रघु० २१७१, ९६४, १३।५० 6. प्रखर असह्य ( तापादिक ), 7. भीषण, भयावह - संदधे दृशमुदग्रतारकाम्-- रघु० ११।६९, 8. उत्तेजित प्रचण्ड, उल्लसित - मदोदग्राः ककुद्मन्तः -- रघु० ४।२२। उदङ्क: [ उद् + अञ्च् + घा] (तेल आदि रखने के लिए) चमड़े का बर्तन, कुप्पा | उबच्, उदञ्च् [ उद् + अञ्च् + क्विप् ] ( पुं० - - उदङ नपुं० - उदक्, स्त्री० - उदीची ) 1. ऊपर की ओर मुड़ा हुआ, या जाता हुआ, 2. ऊपर का, उच्चतर 3. उत्तरी, उत्तर की ओर मुड़ा हुआ 4. वाद का सम० - अद्रि: उत्तरी पहाड़, हिमालय, अयनम् ( उत्तरायण), भूमध्यरेखा से उत्तर की ओर सूर्य की प्रगति - आवृत्तिः (स्त्री० ) उत्तर दिशा से लौटना, उदगावृतिपथेन नारद: रघु० ८1३३, - पथः उत्तरी देश, --- प्रषण | ( वि०) उत्तरोन्मुख, उत्तर की ओर झुका हुआ, मुख (वि० ) उत्तराभिमुख, उत्तर की ओर मुंह किये हुए उत्पतोमुखः खम् - मेघ० १४ । उदचनम् [ उद् +अञ्च् + ल्युट् ] 1. बोका, डोल, - उदञ्चनं सरज्जुं पुरः चिक्षप दश० १३०, 2. उदय होता हुआ, चढ़ता हुआ 3. ढकना, ढक्कन । | Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उदञ्जलि ( वि० ) [ ब० स० ] दोनों हथेलियों को मिला कर संपुट बनाये हुए । दण्डपाल: [ अत्या० स० ] 1. मछली 2. एक प्रकार का साँप । उदधिः दे० 'उदन्' के नीचे । उवन् (नपुं० ) [ उन्द् - कनिन् उदक इत्यस्य उदन् आदेश; ] जल, (यह शब्द प्रायः समास के आरंभ या अन्त में प्रयुक्त होता है, और कर्म० के द्वि० व० के पश्चात् -'उदक' के स्थान में विकल्प से आदेश होता है, सर्वनामस्थान में इसका कोई रूप नहीं होता, समास में अन्तिम न् का लोप हो जाता है उदा० उदधि, अच्छोद, क्षीरोद आदि) । सम० - कुंभ : जल का घड़ा - मनु० २१८२, ३।६८, - ज ( वि० ) जलीय पनीला - धानः 1. पानी का बर्तन 2. बादल, -धि: 1. पानी का आशय, समुद्र - उदधेरिव निम्नगाशतेष्वभवन्नास्य विमानना क्वचित् - रघु० ८1८, 2. बादल, 3. झील, सरोवर 4 पानी का घड़ा - कन्या, तनया, "सुता समुद्र की पुत्री लक्ष्मी, मेखला पृथ्वी, "राजः जलों का राजा अर्थात् महासागर, सुता लक्ष्मी, द्वारका (कृष्ण की राजधानी), पात्रम्, श्री पानी का घड़ा, बर्तन, पान:- नम कएँ के निकट का जोहड़ या कुआं, "मंडूकः ( शा० ) कुएँ का मेंढक, ( आलं० ) अनुभवहीन, जो केवल अपने आस-पास की वस्तुओं का ही सीमित ज्ञान रखता है तु० कूपमंडुक, पेषम् लेप, लेई, पेस्ट, - विन्दुः जल की बूँद कु० ५।२४, - भारः जल धारण करने वाला अर्थात् बादल, मन्यः जौ का पानी, मानः नम् आढक का पचासवाँ भाग, मेघः पानी बरसाने वाला बादल, - लावणिक ( वि० ) नमकीन या खारी, वज्रः बादल की गरज के साथ बौछार, पानो की फुआर, - वासः जल में रहना या बसति, सहस्यरात्रीरुदवासतत्परा - कु० ५।२७, - वाह (वि०) पानी लाने वाला ( -हः) बादल, बाहनम् पानी का बर्तन, शरावः पानी से भरा कसोरा, शिवत् [ उदकेन जलेन श्वयति ] छाछ, मट्टा ( जिसमें दो भाग पानी तथा एक भाग मट्ठा हो ) - हरणः पानी निकालने का बर्तन | उवन्तः | उद्गतोऽन्तो यस्य व० म० ] 1. समाचार, गुप्तवार्ता, पूरा विवरण, वर्णन, इतिवृत्त - श्रुत्वा रामः प्रियोदन्तं रघु० १२/६६, कान्तादन्तः सुहृदुपगतः सङ्गमात्किचिदून: मेघ० १०० 2. पवित्रात्मा, साधु । उदन्तकः [ उदन्त -+-कन् ] समाचार, गुप्त वातें । उदन्तिका [ उद् + अन्त् + णिच् + ण्वुल्+टाप् इत्वम् ] संतोष, संतृप्ति । उदन्य ( वि० ) [ उदक : क्यच् नि० उदन् आदेशः - विवत् ] प्यासा न्या प्यास, निर्वर्त्यतामुदन्याप्रतीकारः - श्रेणी० ६ भट्टि० ३।४० । For Private and Personal Use Only = --
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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