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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ८६ ) श्रवाः” नामक घोड़ा, - स्रवः अमृत का प्रवाह, स्रुत् । (वि० ) अमृत चुवाने वाला - कु० ११४५ । अमृतकम् [ अमृत + कन् ] अमृत, अमरतत्व प्रदायक रस । अमृतता - स्वम [ अमृत + तल्, त्वल् वा ] अमरत्व, अमरता । अमृतेशयः [ अलुक् स०] विष्णु (क्षीर सागर में सोने वाला) अमृषा ( अव्य० ) [ न० त०] झूठपने से नहीं, सचमुच । अमुष्ट (वि० ) [ न० त०] न मसला हुआ, न रगड़ा हुआ । सम० - मूज ( वि० ) अक्षुष्ण पवित्रता वाला । अमेदस्क ( वि० ) [ न० ब० कप् च ) जिसमें चर्बी न हो, दुबला-पतला । अमेधस् (वि० ) [ न० ब० ] बुद्धिहीन, मूर्ख, जड़ । अमेध्य (वि०) [न० त०] 1. जो यज्ञ के योग्य, या अनुमत न हो 2. यज्ञ के अयोग्य - नामेध्यं प्रक्षिपेदग्नौ - मनु० ४/५३, ५६, ५/५, १३२, 3. अपवित्र, मलयुक्त, मैला, गंदा, अस्वच्छ - भग० १७११०, भर्तृ० ३।१०६, ध्यम् 1. विष्ठा, लीद - समुत्सृजेद्राजमार्गे | वस्त्वमेध्यमनापदि मनु० ९।२८२, ५/१२६ 2. अपशकुन, अशुभशकुन -- अमेध्यं दृष्ट्वा सूर्यमुपतिष्ठेत -- कात्या० । सम० - कुणपाशिन् (वि०) मुर्दा खाने वाला - युक्त, लिप्त (वि०) मलयुक्त, मैला, मलिन, गंदा । अमेय ( वि० ) [ न० त०] 1. अपरिमेय, सीमारहित - अमेयो मितलोकस्त्वम् - रघु० १०।१८ 2. अज्ञेय । सम० -- आत्मन् अपरिमेय आत्मा को धारण करने वाला, महात्मा, महामना, (पुं० ) विष्णु 1 अमोघ (वि० ) [ न० त०] 1. अचूक, ठीक निशाने पर लगने वाला --- धनुष्य मोघं समधत्त बाणम् - कु० ३/६६, रघु० ३५३, १२/९७, कामिलक्ष्येष्वमोघः - मेघ ० ७३, 2. निर्भ्रान्त, अचूक ( शब्द, वरदान आदि ) -अमोघाः प्रतिगृह्णन्तावर्ध्यानुपदमाशिषः- रघु० १/४४, 3. अव्यर्थ, सफल, उपजाऊ यदमोघमपामन्तरुप्तं बीजमज त्वया कु० २५, इसी प्रकार 'बलम्, 'शक्ति, वीर्य, क्रोध आदि, घः 1. अचूक 2. विष्णु 1 सम० - दण्डः दंड देने में अटल, शिव, - वशिन् - दृष्टि (वि० ) निर्भ्रान्त मन वाला, अचूक नज़र वाला, बल ( वि० ) अटूट शक्ति सम्पन्न, - वाच् (स्त्री०) वाणी जो व्यर्थ न जाय, वाणी जो अवश्य पूरी हो, (वि०) जिसके शब्द कभी व्यर्थं न हों - वांछित (वि० ) जो कभी निराश न हो, -- विक्रमः अटूट शक्तिशाली, शिव । अम्ब ( वा० पर ० ) 1. जाना 2. ( आ०) शब्द करना । अम्ब: [ अम्ब् + ञ, अच् वा ] पिता, बम् 1 आँख, 2. जल, -ब ( अव्य स्वीकृति बोधक 'हाँ' 'बहुत Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अच्छा' अव्यय | क अम्बकम् [अम्ब् + ण्वुल] 1. आँख ( त्र्यम्बक' में) 2. पिता । अम्बरम् [ अम्बः शब्दः तं राति घत्ते इति -- अम्ब+रा+ 1. आकाश, वायुमंडल, अन्तरिक्ष-- तावतर्जयदम्बरे -- रघु० १२।४१, 2. कपड़ा, वस्त्र, परिधान, पोशाक - दिव्यमाल्यांबरधरम् - भग० १११११, रघु ० ३।९, दिगंबर, सागराम्बरा मही-समुद्र की परिधि से युक्त पृथ्वी 3. केसर 4. अबरक 5. एक प्रकार का सुगंधित द्रव्य । सम० अन्त: 1. वस्त्र की किनारी 2. क्षितिज, ओकस् (पुं०) स्वर्ग में रहने वाला, देवता - ( भस्मरजः ) विलिप्यते मौलिभिरंबरौकसाम् -- कु० ५/७९, बम् कपास, मणिः सूर्य, लेखिन् (वि०) गगनचुंबी रघु० १३।२६ । अम्बरीषम् | अम्ब + अरिष् नि० दीर्घ० ] (कुछ अर्थों में 'अम्बरीपम् ' भी ) 1. भाड़, कड़ाही 2. खेद, दुःख 3. युद्ध, संग्राम 4. नरक का एक भेद 5. छोटा जानवर, बछड़ा 6. सूर्य 7. विष्णु 8. शिव । अम्बष्ठः [ अम्ब + स्था + क]1. ब्राह्मण पिता तथा वैश्यमाता से उत्पन्न सन्तान ब्राह्मणाद्वैश्यकन्यायामम्बष्ठो नाम जायते - मनु० १०१८, याज्ञ० ११९१, २. महावत 3. ( ब० व०) एक देश तथा उसके निवासियों का नाम, --ष्ठा कुछ पौधों के नाम-- ( क ) गणिका, यूथिका ( जूही ), (ख) पाठा (ग) चुत्रिका (घ) अंबाड़ा, ---ष्ठा, ष्ठी अम्बष्ठ जाति की स्त्री । अम्बा [ अम्ब् + घञ् +टाप् ] (वैदिक संबोधन - अंबे; बाद की संस्कृत में अम्ब) 1. माता, (स्नेह अथवा आदर पूर्ण संबोधन में भी इसका प्रयोग होता है) भद्र महिला, भद्र माता - किमम्बाभिः प्रेषितः, अम्बानां कार्य निर्वर्तय श०२, कृताञ्जलिस्तत्र यदम्ब सत्यात् - रघु० १४/१६, 2. दुर्गा, भवानी 3. पांडु की माता, काशिराज की कन्या [ यह और इसकी दो बहनें भीष्म के द्वारा सन्तानहीन विचित्रवीर्य के लिए अपहृत की गई थीं। क्योंकि अम्बा की सगाई पहले ही शाल्व के राजा से हो चुकी थी, अतः इसे उन्हीं के पास भेज दिया गया। परन्तु दूसरे के घर में रही होने के कारण शाल्व के राजा न उसे ग्रहण नहीं किया, अतः वह वापिस आई और उसने भीष्म से प्रार्थना की कि वह अब उसे स्वीकार करें, परन्तु उन्होंने अपना आजन्म ब्रह्मचय भंग करना उचित नहीं समझा, फलतः वह जंगल में जाकर भीष्म से प्रतिशोध लेने की तपश्चर्या करने लगी । शिव उस पर प्रसन्न हुए और उन्होंने उसके दूसरे जन्म में अभीष्ट प्रतिशोध दिलाने की प्रतिज्ञा की। बाद में वह द्रपद के घर शिखण्डिनी के रूप में पैदा हुई, और शिखंडी कहलाने लगी, और अंत में वही भीष्म की मृत्यु का कारण बनी || For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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