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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -हस्त (वि.) मितव्ययी, कंजूस (कदर्थना के लिए) अल्पव्ययी, परिमितव्ययी,--सदा प्रहृष्टया भाव्यं व्यये चामुक्तहस्तया-मनु० ५।१५० । अमुक्तिः (स्त्री०) [न० त०] 1. स्वातंत्र्यशून्यता 2. स्वतंत्रता या मोक्ष का भाव ।। अमुतः (अव्य०) [ अदस+तसिल उत्व-मत्व ] 1. वहां से, वहां 2. उस स्थान से, ऊपर से अर्थात् परलोक से या स्वर्ग से 3. इस पर, ऐसा होने पर, अब से आगे। अमुत्र (अव्य०) [ अदस्+अल उत्व-मत्व] (विप० इह) 1. वहां, उस स्थान पर, वहां पर, अमुत्रासन् यवनाः -~~दश०१२७ 2. वहां, (जो कुछ पहले हो चुका है या कहा गया हैं) उस अवस्था में 3. वहां, ऊपर, परलोक में, आगामी जन्म में-यावज्जीवं च तत्कुर्याद्यनामुत्र सुखं बसेत् 4. वहां-अनेनैवार्भका सर्वे नगरेऽमुत्र भक्षिताः --कथा। अमुथा ( अव्य०) [अदस्-+-थाल उत्व-मत्व ] इस प्रकार, इस रीति से। अमुष्य ( अदस्-संब०) ऐसे का (केवल समास में) । सम० -कुल [ अलुक स०] (वि.) ऐसे कुल से संबंध रखने वाला (---लम्) प्रसिद्ध घराना,--पुत्रः,-पुत्री ऐसे प्रसिद्ध कुल का पुत्र या पुत्री, दे० आमुष्यायण । अमूदृश,-श, क्ष (वि.) [स्त्री०-शी,-क्षी ] [ अदस् +देश+-क्विन, का, क्स वा स्त्रियां डीप् ] ऐसा, इस प्रकार का, इस रूप या ढंग का। अमूर्त (वि०) [न० त०] आकारहीन, अशरीरी, शरीर रहित (विप०--मूर्त-मूर्तत्वम् =अवच्छिन्नपरिमाणवत्वम्-मुक्ता०), तःशिव । सम-गुणः (वैशे में) धर्म, अधर्म जैसे गुणों को अमूर्त या अशरीरी समझा जाता है। अमूर्ति (वि.) [न० ब०] आकार हीन, रूपरहित,—तिः ___ विष्णु, तिः (स्त्री०)[ न० त० ] रूप या आकार का न होना। अमूल-लक (वि.) [न० ब०] 1. निर्मल (शा.), (आलं.) बिना किसी आधार के, निराधार, आधार रहित 2. बिना किसी प्रमाण के, जो मूल में न हो --नामूलं लिख्यते किंचित-मल्लि०, 3. बिना किसी भौतिक कारण के जैसा कि सांख्य का 'प्रधान' । अमूल्य (वि.) [न० ब०] अनमोल, बहुमूल्य । अमृणालम् [ सादृश्ये न० त०] एक सुगन्धित घास की जड़, (खस या उशीर) जिस के परदे या टट्टियां बनती है। अमृत (वि.) [न० त०] 1. जो मरा न हो 2. अमर 3. अविनाशी, अनश्वर, तः 1. देव, अमर, देवता, 2. देवों के वैद्य धन्वन्तरि, ता 1. मादक शराब 2. नाना प्रकार के पौधों के नाम, तम् 1. (क) अमरता (ख) परममुक्ति, मोक्ष-मनु० १२।१०४, स श्रिये । चामृताय च-अमर०, 2 देवों का सामूहिक शरीर 3 अमरता की दुनिया, स्वर्गलोक 4. सूधा, पीयष, अमृत (विप० विष) जो समुद्र मंथन के फल स्वरूप प्राप्त समझा जाता है-देवासुरैरमतमम्बनिधिर्ममन्थे -कि० ५।३०, विषादप्यमृतं ग्राह्यम्-मनु० २।२३९, विषमप्यमृतं क्वचिद्भवेदमुतं वा विषमीश्वरेच्छयारघु०८।४६, (प्रायः वाच, वचनम्, वाणी आदि शब्दों के साथ प्रयुक्त होता है) कुमारजन्मामृतसंमिताक्षरम्रघु० ३।१६ 5. सोमरस 6. विष नाशक औषध 7 यज्ञशेष--मनु० ३।२८५, 8 अयाचितभिक्षा (दान), बिना मांगे दान मिलना-मृतं स्याद्याचितं भैक्ष्यममतं स्यादयाचितम्-मनु० ४१४, ५, 9 जल--अमृताध्मात जीमूत-उत्तर० ६।२१, तु० भोजन के पूर्व या अन्त में आचमन करते हुए ब्राह्मणों के द्वारा पढ़े जानवाले मंत्र (अमतोपस्तरणमसि स्वाहा, अमतापिधानमसि स्वाहा) 10 औषधि 11 घी, अमृतं नाम यत्सन्तो मन्त्र जिह्वेषु जुह्वति-शि० २०१०७, 12 दूध 13 आहार 14 उबले हुए चावल, भात 15 मिष्ट पदार्थ, कोई भी मधुर वस्तु 16 सोना 17 पारा 18 विष 19 परब्रह्म । सम०-अंशुः,-करः,-दीषितिः,-द्युतिः,- रश्मिः चन्द्रमा के विशेषण,---अमृतदीधितिरेष विदर्भजे-न०.४।१०४, -अन्धस्,-अशनः,-आशिन् (पुं०) वह जिसका भोजन अमृत है, देवता, अमर,-आहरणः गरुड़ जिसने एक बार अमृत चुराया था,-उत्पन्ना--मक्खी (-प्रम), --उद्धदम् एक प्रकार का सुर्मा,-कुंडम् वह बर्तन जिसमें अमृत रक्खा हो,-क्षारम् नौसादर,-गर्भ (वि.) अमृत या जल से भरा हुआ, अमृतमय (-भः) 1. आत्मा 2. परमात्मा,-तरंगिणी ज्योत्स्ना, चांदनी, --द्रव (वि.) 'चन्द्रकिरण जो अमृत छिड़कती हैं (-वः) अमृत प्रवाह,-धारा 1. एक छन्द का नाम 2. अमृत का प्रवाह,-प: 1 अमृत पान करने वाला, देव या देवता 2. विष्ण 3 शराब पीने वाला,-ध्रुवममतपनामवाञ्छयासावधरममुं मघपस्तवाजिहीते-शि. ७१४२, (यहां अ° का 'अमृत पीनेवाला' भी अर्थ है) --फला अंगूरों का गुच्छा, अंगूरों की बेल, दाख, द्राक्षा,-बंधुः 1 देव, देवता 2 घोड़ा, चन्द्रमा,-भुज (पुं०) अमर, देव, देवता जो यज्ञशेष का स्वाद लेता है,-भू (वि०) जन्ममरण से मुक्त,-मंथनम् अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र का मंथन,-रसः 1 अमृत, पीयूष,-काव्यामृतरसास्वाद:-हि०, विविधकाव्यामृतरसान् पिबामः-भर्तृ० ३।४०, 2 परब्रह्म,--लता, -लतिका अमृत देने वाली बेल,-वाक् अमृत जैसे मधुर वचन बोलने वाला,-सार (वि.) अमृतमय (-रः)धी,--सू:-सूतिः 1 चन्द्रमा(अमृत चुवाने वाला) 2 देवताओं की माता, सोदरः अमृत का भाई, "उच्च: For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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