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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५०८ ) नदोलवण,-मातक (वि.) (देश आदि) जहां नदी -नंदयति--ते-प्रसन्न करना, खुश करना, हर्षित के पानी से सिचाई होती हो, सिंचित, नदी या नहर करना, आनन्दित करना—अन्तहिते शशिनि सैव कूमद्वारा सिंचाई पर जो निर्भर करता हो, नै० ३।३८, द्वती मे दृष्टिं न नन्दयति संस्मरणीयशोभा-श०४१२, तु० देवमातृक,-रयः नदी की धार,-वंकः नदी का भट्टि० २।१६, रघु० ९।५२ अभि---1. हर्ष प्रकट मोड़,----ण (वि.) (स्त) 1. नदी में स्नान करने करना, प्रसन्न होना, संतुष्ट होना--आत्मविडंबनामवाला 2. नदियों के भयानक स्थानों, उनकी गहराइयों भिनंदति-का० १०८, नाभिनंदति न द्वेष्टि ... भग० और प्रवाहों को जानने वाला-ततः समाज्ञापयदाश २।५७ 2. बधाई देना, जय जयकार करना, स्वागत सर्वानानायिनस्तद्विचये नदीष्णान् रघु० १६७५, ! करना, नमस्कार करना-तापसीभिरभिनंद्यमानातिष्ठति अत: 3. अनुभवी, चतुर,-सर्ज: अर्जुन वृक्ष। -श०४, तमभ्यनंदप्रथमं प्रबोधितः रघु० ३१६८, नड (भू० क० कृ०) [ नह+क्त ] 1. बंधा हुआ, बाँधा । २०७४, ७६९, १११३०, १६६४ 3. प्रशंसा करना, हुआ, जकड़ा हुआ, चारों ओर से बद्ध, धारण किया । तारीफ करना, श्लाघा करना, अच्छा समझना-नाम हुआ 2. ढका हुआ, जड़ा हुआ, अन्तर्ग्रथित 3. संयुक्त, यस्याभिनंदति द्विषोऽपि स पुमान् -कि० १११७३, संयोजित दे० 'नह',--सम् गांठ, बंधन, बंध, गिरह । श० ३।२४, रघु० १२।३५, न ते वचोऽभिनंदामि-श. नवध्री [नह+ष्ट्रन +डोप् ] चमड़े का फीता। २ 4. कामना करना, चाहना, पसन्द करना, अपेक्षा ननंद, ननाद (स्त्री०) [ननन्दति सेवयापि न तुष्यति न+ करना (प्राय: 'न' के साथ) नाभिनंदति केलिकला: नन्द+ऋन् ] पति को बहन, ननान्दुः पत्या च देव्या: ---मा० ३, नाभिनंदेत मरणं नाभिनंदेत जीवितम् संदिष्टमष्यशृंगेणं--उत्तर० १। सम० --मनांदपतिः - - मनु० ६।४५, हि० ४।४, आ-प्रसन्न होना, खुश (ननांदुःपतिः) ननदोई, पति की बहन का पति ।। होना-आनंदितारस्त्वां दृष्ट्वा भट्टि० २२११४, ननु (अव्य०) (मूल रूप से न और नु का संयुक्त रूप, : प्रेर... प्रसन्न करना, खुश करना...-उत्तर० ३३१४, जिसे आज कल पृथक् शब्द के रूप में प्रयुक्त किया । याज्ञ० ११३५६, प्रति -, 1. आशीर्वाद देना-रघु० जाता है) यह अव्यय निम्नांकित अर्थ प्रकट करता ११५७, मनु० ७।१४६, कु० ७८७ 2. स्वागत करना, है---1. पूछताछ, प्रश्न, ननु समाप्त कृत्यो गौतमः बधाई देना, जयजयकार करना, हर्ष पूर्वक सत्कार मालवि०४ 2. निश्चय ही, अवश्य, निस्संदेह, क्या करना-प्रतिनंद्य स तां पूजाम्-महा०, मनु० २।५४ | यह असन्दिग्ध नहीं (प्रश्न सूचक बल के साथ) यदा- नन्दः [ नन्द +अच्] 1. आनन्द, सुख, हर्ष 2. (११ इंच उमेधाविनी शिष्योपदेश मलिनयति तदाचार्यस्य दोषो लम्बी) एक प्रकार की बांसुरी 3. मेंढक 4. विष्णु नन-मालवि० १3. निस्सन्देह, बेशक, अवश्य- 5. एक ग्बाले का नन जो यशोदा का पति तथा कृष्ण उपपन्नं ननु शिवं सप्तस्वंगेष-रघु० २६०, त्रिलोक- का पालकपिता (जिसको देख रेख में कृष्ण को रक्खा नाथेन सदा मद्विषस्त्वया नियम्या ननु दिव्यचक्षुपा- गया था जब कि कंस उसे मारना चाहता था) 6. नंद ३१४५ 4. संबोधन सूचक अव्यय ('आ' 'अहो') नन वंश का प्रतिष्ठाता (यह वही नंदवंश था जिसके नो मानव-दश०, ननु मूर्खाः पठितमेव युष्माभिस्तकांडे भाई पाटलिपुत्र में राज्य करते थे तथा जिन्हें चन्द्रगप्त ---उत्तर. ४ 5. 'कृपा करके' 'अनग्रह करके' अर्थ के मंत्री चाणक्य की नीति के द्वारा यमलोक भेज दिया को प्रकट करने के लिए प्रतिषेधात्मक कथन के रूप : गया था)--समुत्खाता नंदा नव हृदयरोगा इस भव: में प्रयुक्त होता है-नन म प्रापय पत्युरन्तिकम् ----- ! -मद्रा० १४१३, अगृहीते राक्षसे किमुखातं नन्दकु० ४।३२ 6. कभी-कभी संशोधनशब्द के रूप में वंशस्थ ---मुद्रा० ११३, २७, २८। सम-आत्मजः, प्रयुक्त होता है-नन पदे परिवृत्य भण-मच्छ० ५, -नंदनः कृष्ण का विशेषण-पालः वरुण का विशेषण । नन भवानग्रतो में वर्तते --श० २, ननु विचिनोतु नन्धक (वि०) [नन्द्+गिच । वल ] 1. हर्पित करने भवान--विक्रम २ 7. तानुबद्ध चर्चा के समय बाला, आनन्दित करने वाला, प्रसन्न करने वाला आक्षेप करने या विरोवो प्रस्ताव प्रस्तुत करने के 2. बुशहाने बाला, हर्ष मनाने वाला 3. परिवार को लिए प्रयुक्त होता है (इसके पश्चात् प्रायः 'उच्यते । प्रसन्न करने वाला क: 1. मेंढक 2. कृष्ण की तलवार आता है) नवचेतनान्येव वृश्चिकादिशरोराणि अचेत- । 3. तलवार +. आनन्द । नानां च गोमादोना कार्या गोति उच्यते -शारो। नन्दकिन् (पुं०) [ नन्दक :-इनि ] विष्ण का विशेषण । नन्द (भ्वा० पर० नंदति, नंदित) प्रसन्न होना, हर्षित नन्दथः। नन्द+अथव आनन्द, प्रसन्ना , खुशी। होना, खुश होना सन्तुष्ट होना, (किसी बात पर) ' नन्दन (वि०) [नन्द +णिव + ल्युट 1. खुश करने हर्ष प्रकट करना-नंदतुस्तत्सदशेन त समो- रब वाला, सुहावना, प्रसन्न करने वाला-नः 1. पुत्र ३३२३, ११, २।२२, ४।३, भट्टि० १५२८, प्रेर० –याज०११२७४, रघु० ३।४१ 2. मेंढक 3. विष्णु For Private and Personal Use Only
SR No.020643
Book TitleSanskrit Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVaman Shivram Apte
PublisherNag Prakashak
Publication Year1995
Total Pages1372
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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