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( ५०९ ) का विशेषण 4. शिव---नम् इन्द्र का उद्यान, आनन्द- नप्त (पु.) [न पतन्ति पितरो येन-न- पत्+ तृच् धाम-अभिज्ञाश्छेदपातानां क्रियते नन्दनद्रुमाः कु० । नि० ] पाता नाती, (लड़के का पुत्र या लड़की का २२४१, रघु० ८।९५ 2. हर्ष मनाने वाला, प्रसन्न होने पुत्र)। वाला, 3. हर्ष, सम..- जम् पीले चंदन की लकड़ी, | नभः [ नम्--अच् ] श्रावण मास,--भम् आकाश, अन्तहरिचंदन ।
रिक्ष। नंदतः, नंदयन्तः [नंद । झन्, अन्त आदेशः, नन्द णिच् नभस् (नपुं०) [नह्यते मेघः सह--नह+असून, भश्चा+झच् (अन्त) ] पुत्र, बेटा ।।
न्तादेशः ] 1. आकाश, अन्तरिक्ष-रघु० ५।२९, नन्दा | नन्द |-टाप् ] 1. खुशो, हर्ष, आनन्द 2. सम्पन्नता, भग० १२१९, ऋतु० ११११ 2. बादल 3. कोहरा,
धनाढयता, समृद्धि 3. छोटा मिट्टी का जल-पात्र बाष्प 4. पानी 5. जीवन की अवधि, आयु (पुं०) 1. 4. ननद, पति की बहन 5. प्रतिपदा, षष्ठी और एका- वर्षा ऋतु 2. नासिका, ध्राण 3. (जुलाई-अगस्त के दशी, चांद्रमास की तीन तिथियाँ, (यह शुभ तिथियाँ अनुरूप, इस अर्थ में नपुं० भी) श्रावण मास-प्रत्यासमझी जाती हैं।
सन्ने नभसि दयिताजीवितालवनाथीं-मेघ० ४, रघु० नन्दिः (१०, स्त्री०) [नन्द+इन | हर्ष, प्रसन्नता, खुशी
१२।२९, १७।४१, १८५ 4. पीकदान । सम० ---कौशल्यानन्दिवर्धन: - दिः (पु०) 1. विष्णु का
अंबुपः चातक पक्षी,-कांतिन् (पुं०) सिंह-जः विशेषण 2. शिव 3. शिव का अनुचर 4. जूआ खेलना,
बादल,-चक्षुस् (पुं०) सूर्य, चमसः 1. चन्द्रमा 2. क्रीडा (इस अर्थ में नपुं० भी)। सम०.--ईशः,
जादू-चर (वि०) गगन बिहारी-कु० ५।२३, -- ईश्वरः 1. शिव का विशेषण 2. शिव का प्रधान
(---र:) 1. देवता, उपदेवता रघु० १८१६. 2. पक्षी अनुचर-ग्रामः वह गाँव जहाँ राम के बनवासकाल
--दुहः बादल, दृष्टि (वि.) 1. अंधा 2. आकाश में भरत रहा-रघु० १२।१८,---घोषः अर्जुन का
की ओर देखने वाला,-द्वीपः,-धूमः बादल, नदी रथ - वर्धनः 1. शिव का विशेषण 2. मित्र 3. चांद्र
आकाश गंगा-प्राणः हवा,-मणिः सूर्य,-मंडलम् पक्ष का अन्त अर्थात् अमावस्या या पूणिमा।
आसमान, अन्तरिक्ष, नेदं नभोमंडलमंबुराशि:-- सा० नन्विकः [ नन्दि-1-कन् ] 1. हर्ष, प्रसन्नता 2. छोटा जल
द० १०, द्वीपः चन्द्रमा,-रजस् (पुं०) अंधकार, पात्र 3. शिव का अनुचर। सम०---ईशः,...ईश्वरः
-रेणुः (स्त्री०) कोहरा, धुंध,-लयः धूआँ, --लिह, 1. शिव का एक मुख्य अनुचर 2. शिव ।
(वि०) आकाश को चाटने वाला, उन्नत, बहुत
ऊँचा तु० अभ्रंलिह,--सद् (पुं०) देवता-शि० १।११, नन्दिन् (वि.) [नन्द+णिनि, नन्द -- णिच + णिनि वा ]
-सरित् (स्त्री०) 1. छायापथ 2. आकाशगंगा 1. आनन्दित, हृष्ट, प्रसन्न, खुश 2. आनन्दित करने
---स्थली आकाश,--स्पृश् (वि०) गगनचुंबी, उन्नत । वाला, प्रसन्न करने वाला- (१०) 1. पुत्र, 2. नाटक में नान्दीपाठ या आशीर्वचन कहने वाला व्यक्ति
नभसः [ नम्-असन् ] 1. आकाश 2. वर्षा तु 3. शिव का मुख्य अनुचर, द्वारपाल, या वह बैल जिस
3. समुद्र। पर शिव सवारी करता है - लतागृहारगतोऽथ नंदी
नमसंगयः [ नभस+गम् +खच्+मुम् ] पक्षी। --- कु० ३१४३, मा० १११, नी 1. पुत्री उत्तर०
नभस्यः [नधस् । यत् ] (अगस्त-सितंबर के अनुरूप) १२९ 2. ननद, पति की बहन 3. काल्पनि गाय, काम
भाद्रपद का महीना-रघु० ९/५४, १२।२९, धेनु - (जो सब इच्छाओं को पूरा करतो है तथा जिस
१७:४१ का स्वामी कुलगुरु वसिष्ठ है) अनिद्या नन्दिनो नाम
नभस्वत् (वि०) [ नभस्+मतुप, मस्य वः ] बाष्पयुक्त, वेनुराववृते वनात् - रघु० ११८२, २०६९ 4. गंगा का
धुंधवाला, मेघाच्छन्न,--(पुं०) हवा, वायु नै० विशेषण 5. पवित्र काली तुलसी।
१२९७, रघु० ४१८,१०।७३, शि०१।१०।। नपात् (पुं०) [ पाती इति-पा---शत, ततो नभा समासे नभाकः [ नभ्+आक] 1. अंधकार 2. राह का विशेषण
प्रकृतिभावः] (प्रायः वेद में प्रयक्त) पोता, यथा नभ्राज् (पु.) [ भ्राज्+क्विम्, नत्रा समासे प्रकृतितनूनपात् ।
भावः ] काला बादल, काली घटा ।। नपुंस् (पुं०) नपुंसः [ ना समासे प्रकृतिभावः ] जो नन् (भ्वा० पर०--कभी कभी अ०- नमति-ते, नत, पुरुप न हो, हिजड़ा।
प्रेर० नमयति-ते, परन्तु उपसर्ग पूर्व होने पर केवल नपुंसकः,-कम् [ न पुमान् न स्त्री, नि० स्त्रीसयो: पंसक 'नमयति', इच्छा० निनसति) 1. झुकना, नमस्कार
आदेशः ] 1. उभयलिंगी (न स्त्री न पुरुष) 2. करना, अभिवादन करना (सम्मान सूचक लक्षण) नामर्द, हिजड़ा 3. भीरु, डरपोक,--कम् 1 नपुंसक (कर्म या संघ के साथ) इयं नमति व: सर्वान लिंग का शब्द 2. नपुंसकलिंग।
त्रिलोचनवरिति-कु. ६८९, भग० ११११७,
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