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( ३८४ ) विरजीव (वि.) [चिरम् +जीव + अच्] दीर्घायु या लम्बी ) चीत्कारः [ चीत् + कृ+घञ्] अनुकरणमूलक शब्द, कुछ उम्र वाला,-वः काम का विशेषण ।
जानवरों की क्रन्दन विशेषकर गधे की रेंक या हाथी चिरण्टी, चिरिण्टी [चिरे अटति पितगृहात् भर्तगेहम - अट् की चिंघाड़, स विषीदति चीत्कारादगर्दभस्ताडितो यथा
+अच, पृषो० तारा०] 1. विवाहित या अविवाहित -हि० २।३१, वैनायक्यश्चिरं वो वदनविधुतयः पान्तु लड़की जो सयानी होने पर भी अपने पिता के घर ही चीत्कारवत्यः मा० १११ । रहे 2. तरुणी, जवान स्त्री।
चीनः [चि+नक, दीर्घः] 1. एक देश का नाम, वर्तमान चिरन (वि०) (स्त्री०–त्नी) चिरे भवः चिर-न] चीनदेश 2. हरिण का एक प्रकार 3. एक प्रकार का चिरकालीन, पुराना, प्राचीन ।
कपड़ा नाः (पुं० ब० व०) चीन देश के निवासी या चिरन्तन (वि.) (स्त्री० -नी) [चिरंम् +टयुल, तुट, च] शासक,नम् 1. झंडा 2. आँखों के किनारों पर बाँधने
चिरागत, पुराना, प्राचीन,-स्वहस्तदत्ते मुनिमासनं के लिए पट्टी 3. सीसा । सम०-अंशकम,-बासस् मुनिश्चिरन्तनस्तावदभिन्यवीविशत् - -शि० १।१५, (नपुं०) चीन का कपड़ा, रेशम, रेशमी कपड़ा चिरन्तनः सुहृद-आदि।
--चीनांशुकमिव केतोः प्रतिवातं नीयमानस्य-श० चिरायति (ना. घा० पर० (चिरायते भी)) विलम्ब १३४, कु०७।३, अमरु ७५, -- कर्परः एक प्रकार का
करना, ढील देना-कथं चिरयति पाञ्चाली-वेणी०१, कपूर, - जम इस्पात, -- पिष्टम् 1. सिन्दूर 2. सीसा, कि चिरायितं भवता, संकेतके चिरयति प्रवरो विनोद: -- वङ्गम् सीसा । -... मच्छ० ३।३।
चीनाक: [चीन+अक् -|-अण्] एक प्रकार का कपूर । चिरिः चिनोति मनष्यवत वाक्यानि -चि+रिक तोता। चीरम चि-क्रन दीर्घश्च] 1. चिथडा. फटा पराना कपडा. चिरु [चि+रुक] कन्धे का जोड़।।
धज्जी, मनु०६६ 2. वल्कल 3. वस्त्र या पोशाक चिर्भटी [चिर-|-भट् । अच् + ङीष्, पृषो०] एक प्रकार की 4. चार लड़ियों का मोतियों का हार 5. चौड़ी धारी, ककड़ी।
रेखा, लकीर 6. रेखाएँ बनाकर लिखना 7. सीसा । चिल (तुदा० पर० ---चिलति) कपड़े पहनना, वस्त्र धारण सम० परिग्रहा-वासस् (वि० ) 1. वल्कलधारी करना।
कु०६।९२, मनु० ११११०१ 2. चिथड़े या फटे चिलमी (मि) लिका [चिल् +-मी (मि) ल--- बुल् +-टाप, पुराने कपड़े पहने हुए।
इत्वम्] 1. एक प्रकार का हार 2. जुगन 3. बिजली। | चीरिः (स्त्री० [चि |-कि, दीर्घ०] 1. आँखों को ढकने का चिल्ल (भ्वा० पर०-चिल्लति, चिल्लित) 1. ढीला होना, पर्दा 2. झोंगर 3. नीचे पहनने वाले कपड़े की झालर
शिथिल होना पिलपिला होना 2. आराम से काम या गोट । करना, क्रीड़ासक्त होना।
चोरि (रु) का [चीरि । के+क+टाप्] [=चीरिका पृषो० चिल्लः,--ल्ला [चिल्ल+अच्, स्त्रियां टाप्] चील । सम० साधुः] झीगुर। -~-आभः गठकतरा, जेबकतरा।
चीर्ण (वि) [चर-नक, पृषो० अत ईत्वम् ] 1. किया चिल्लिका,चिल्ली [चिल्ल +इन+कन्+टाप, चिल्लि-|- | हुआ, अनुष्ठित, पालित 2. अधीत, दोहराया हुआ डोष झींगर-तू० भिल्लिका।
3. विदीर्ण किया हुआ, विभाजित, 1. सम० - पर्णः चिविः [चीव +-इन् पृषो०] ठोडी।
खजूर का पेड़। चिह्नम [ चिह्न+अच ] 1. निशान, धब्बा, छाप, प्रतीक, | चोलिका [ची। ला+क+टाप् इत्वम्] झिंगुर । कुलचिह्न, बिल्ला, लक्षण--ग्रामेषु यपचि ह्वेषु रघु०
चीव (भ्वा० उभ०-चीवति-ते) 1. पहनना, ओढ़ना 2. लेना १।४४, ३१५५, संनिपातस्य चिह्नानि-पंच० १११७७
ग्रहण करना 3. पकड़ना। 2. संकेत, इंगित --प्रसादचिह्नानि पुरः फलानि रघु० चीवरम [ चि--प्वरच नि० दीर्धः, ची+अरच वा ] २।२२, -प्रहर्षचिह्न - २।६८ 3. राशिचिह्न 4. लक्ष्य 1. पोशाक, फटा-पुराना, चिथड़ा - प्रेतचीवरवसा दिशा। सम० --कारिन (वि) 1. चिह्न लगाने वाला, स्वनोग्रया. रघु० ११११६ 2. भिक्षुक का परिधान, दाग लगाने वाला 2. प्रहार करने वाला, घायल करने विशेषकर बौद्ध भिक्षु के वस्त्र, चीवराणि परिधत्ते
वाला, हत्या करने वाला 3. डरावना, विकराल । सिद्धा०, चीरचीवरपरिच्छदा--मा० १, प्रक्षालित चिह्नित (व०) चिह्न+क्त, 1. निशान लगा हआ, संके- मेतन्मया चीवरखण्डम् - मृच्छ० ८।
तित, मुद्रांकित, किसी पद का बिल्ला लगाये हुए-याज्ञ० चीवरिन् (पुं०) [चीवर---इनि] 1. बौद्ध या जैन भिक्षक २१८६, २३१८, दिवा चरेयः कार्यार्थ चिह्निता 2. भिक्षुक । राजशासनैः-मनु० १०.५५, २।१७० 2. दागी | चुक्कारः [चुक्क् +अच्=चुक्क - आ+रा+क] सिंह की 3. ज्ञात, अभिहित ।
गर्जन या दहाड़।
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