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( ३८३ ) परिचिन्तय स्वयं कदाचिदेते यदि योगमहतः ---कू० । चि आदेशः] चपटी नाक वाला,---टचिउड़ा, चपटा ५।६७, भग०१०।१७ 2. चिन्तन करना, याद करना, किया हुआ चावल या अनाज, चौले ।। ध्यान में लाना 3. तरकोब निकालना, भालूम करना,
चिपिटः | नि--पिटन चि आदेशः ] दे० चिपट । सम० वि.-, 1. सोचना, विधारता 2. चिन्तन करना,
-ग्रीव (वि०) छोटी दर्दन वाला, नास, नासिक आकलन करना, ध्यानमग्न होना--श० ४।१
(वि०) चपटी नाक वाला। 3. विचारकोटि में रखना, ध्यान रखना, खयाल करना
चिपिटकः, चिपुटः चिपिट-+-कन, चिपिट पृषो० साधुः] -अस्मान्साधु विचिन्त्य गंयमवनानुच्वः कुल चात्मनः
चिउड़ा, चौले। -श० ४१६ 4. इरादा करनः, स्थिर करना, निश्चय !
| चिबु (वृ) कम् | चिन् (व)+उ |-कन्, पृषो० ह्रस्वः ] करना----5. उपाय इंदना, नालन करना, खोज
ठोडी, चिबुकं सुदृशः स्पृशामि यावत् –भामि० २।३४ निकालना, सम्-, 1. सोचना, विचारना, विमर्श
याज्ञ० ३।९८ । करना, चिन्तनरत होना ---याज्ञ० १।३५९, चौर० ३२ |
चिमिः [चिन-मिक बा०] तोता। 2. (मन में) तोलना, विशेषता बताना।
चिर (वि.) [चि+रक दीर्घ, दीर्घकाल तक रहने वाला, चिन्तनम्,-ना [चिन्त् + ल्युट्] 1. सोचना, विचारना,
दीर्घकाल से चला आया, पुराना-चिरविरह, चिरचिन्तनरत होना-मनसाऽनिष्टचिन्तनम् मनु० १२१५
काल, चिरमित्रम्---आदि, रम् दीर्घकाल (विशे० 2. आतुर चिन्तन ।
'चिर' शब्द का अप्रधान कारकों में एक बचन क्रिया चिन्ता [चिन्त-णिन् +अ+टाप 1. चिन्तन, विचार
विशेषण की भाँति प्रयुक्त होता है और निम्नांकित 2. दुःखद या शोकपूर्ण विचार, परवाह, फ़िकर
अर्थ प्रकट करता है :-'दीर्घकाल' 'दीर्घकाल तक' ----चिन्ताजडं दर्शनम् -... श० ४।५, इसी प्रकार बीत
'दीर्घकाल के पश्चात' 'दीर्घकाल से 'आखिर कार' चिन्तः १२ 3. विचारविमर्श, विचारण 4. (अलं.
'अन्त में' आदि-न चिरं पर्वते वसेत् -मनु० ४।६०, शा० में) चिन्ता-३३ संचारी भावों में से एक
ततः प्रजानां चिरमात्मना धृताम् – रघु० ३३५, ६२, -ध्यानं चिन्ता हितानाप्तेः शून्यता श्वासतापकृत् अमरु ७९, कियच्चिरेणायपुत्रः प्रतिपतिं दास्यति --श० --सा० द० २०१ । सम० --आकुल (वि०) चिन्ता
६, रघु० ५।६४, प्रीतास्मि ते सौम्य चिराय जीव मग्न, व्याकुल, आतुर,-कर्मन् (नपुं०) चिन्ता करना
--रघु० १४१५९, कु० ५।४७, अमरु ३, चिरात्सुत-पर (वि.) चिन्तनशील, चिन्तातुर, ---मणिः
स्पर्शरसज्ञतां ययौ - रघु० ३।२६, १११६३, १२६७, कालनिक रत्न-(यह जिसके पास होता है, कहते
चिरस्य वाच्यं न गतः प्रजापतिः ....श० ५।१५, चिरे है, उसकी सब कामनाएं पूर्ण कर देता है) दार्शनिकों
कुर्यात् -शत० । सम-आयुस् (वि.) दीर्घ आयु को मणि--काचमूल्येन विक्रीतो हन्त चिन्तामणिर्मया
वाला (पुं०) देवता, -आरोधः विलम्बित घेरा, नाके--शा० १११२, तदेकलुब्धे हृदि मेऽस्ति लब्धं निन्ता न
वन्दी, ---उत्य (वि०) दीर्घ काल तक रहने वाला, चिन्तामणिमप्यनय॑म् -नै० ३।८१, १११४५, वेश्मन्,
कार, -कारिक, .. कारिन्—क्रिय (वि०) मन्थर, (नपुं०) परिषद् भवन, मंत्रणागृह ।
विलम्बी, ढीला, दोर्घसूत्री, कालः दीर्घकाल, कालिक, चिन्तिडी [ --तिन्तिडी, पृषो० तस्य चत्वम् ] इमली का --कालीन (वि०) दीर्वकाल से चला आता हुआ, पेड़।
पुराना, दीर्घकाल से चाल, (रोग के विषय में) जीर्ण चिन्तित (वि०) [चिन्त्+क्त ] 1. सोचा हुआ, विमृष्ट या दोर्घकालानुबन्धी,--जात (वि.) बहुत समय पहले 2. उपेत, विचार किया हुआ।
उत्पन्न, पुराना,—जीबिन् (वि०) दीर्घजीवी (पुं०) चिन्तितिः (स्त्री०) चिन्तिया [चिन्त-+-क्तिन्, घ वा] सोच, उन सात चिरजीवियों का विशेषण जो 'अमर' समझे विमर्श, विचार।
जाते हैं (अश्वत्थामा बलिया॑सो हनुमांश्च विभीषणः, चिन्त्य (सं० कृ०) [ चित+यत ] 1. सोचने-विचारने के कृपः परशरामश्च सप्तते चिरजीविनः)-पाकिन (वि.)
योग्य 2. खोजने के योग्य, मालम किये जाने या देर से पकने वाला,-पुष्पः बकुल वृक्ष,-मित्रम् पुराना उपाय ढूंढ लिये जाने के योग्य 3. विचारसापेक्ष, मित्र, मेहिन् (पु०) गधा, -रात्रम् बहुत रातें, दीर्घसंदिग्ध, प्रष्टव्य यच्च क्वचिदस्फुटालंकारत्वे उदा- काल, उषित (वि.) जो दीर्घकाल तक रह चुका हो,
हृतम् (यः कौमारहरः") एतच्चिन्त्यम् ---सा० द०१। ...-विप्रोषित (वि.) दीर्घकाल से निर्वासित, प्रवासी, चिन्मय (वि०) [चित्+मय विशुद्ध बौद्धिकता से युक्त, -सूता,--सूतिका वह गाय जो काई बछड़े दे चुकी हो
आत्मिक (जैसे कि परमात्मा), यन् 1. विशुद्ध ज्ञान- तेवकः पुराना नौकर, --स्थ, स्थाथिद--स्थित मय 2. परमात्मा।
(वि०) टिकाऊ, देर तक चलने वाला, चालू रहने चिपट (वि.) [नि नता नासिका विद्यतेऽस्प नि--पटच, । वाला, पायेदार।
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