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( २०८ ) उपभाषा [प्रा० स०] बोलचाल को गौण भाषा।
3. (न्या० दर्शन में) सादृश्य, समानता को मान्यता, उपभूत् (स्त्री०) [ उप+भ+क्विप्, तुकागमः ] यज्ञों में चार प्रकार के प्रमाणों में से एक जो यथार्थ ज्ञान तक प्रयुक्त होने वाला गोल प्याला।
पहुंचाने में सहायक होता है की परिभाषा उपभोगः [ उप+भज्+घञ्] 1. (क) रसास्वादन, । - प्रसिद्धसाधात् साध्यसाधनम्, था, उपमितिकर
खाना, चखना-न जातु कामः कामानामुपभोगेन णमुपमानं तच्च सादृश्यज्ञानात्मकम् --तर्क० । शाम्यति—मन० २।९४, याज्ञ० २११७१, काम-भग० ! उपमितिः (स्त्री०) [उ+मा+क्तिन । 1. समरूपता, १६।११ (ख) उपयोग, प्रयोग ---श० ४।४ 2. रति- तुलना, समानता--पल्लवोपमितिसाम्यसपक्षम् - सा० सुख, स्त्रीसहवास- रघु० १४।२४ 3. फलोपभोग द०, . तदाननस्योपमिती दरिद्रता---० ११२४ 4. आनन्द, संतृप्ति।
2. (न्या० द० में) सादृश्य, नियमन, सादव से प्राप्त उपमन्त्रणम् [ उप---मन्त्र+ल्यट्] 1. संबोधित करना, वस्तूज्ञान, उपमान के द्वारा निगमित उपसंहार-प्रत्यआमंत्रण, बुलावा 2. उकसाना, उपच्छंदन ।
क्षमप्यनुमितिस्तथोपमितिशब्दजे-भाषा० ५२ 3. एक उपमन्थनी [उप+मन्थ्-+ ल्यट- ङीप् | अग्नि को उद्दीप्त
अलंकारः उपमा। करने वाली लकड़ी।
उपमेय (सं० कृ०) [उप-मा-यत् । समानता या उपमर्दः । उप-+-मद्+घा ] घर्षण, रगड़, दबाव, बोझ तुलना करने के योग्य, तुल्य (करण के साथ या
के नीचे कुचल जाना,--अन्यासु तावदुपमर्दसहासु भृङ्गं समास में) भूयिष्ठमासीदुपमेयकान्ति: गहेन-रघ० ६१४, लोल विनोदय मनः सुमनोलतासु --सा० द० (यहाँ १८१३४, ३७, कु० ७२, · यम् तुलना करने का 'उपमर्द' का अर्थ है--उद्धत व्यवहार या संभोगजन्य विषय, तुलनीय (विप० उपमान). उपमानोपमेयत्वं रतिसुख) 2. नाश, आघात, वध करना 3. झिड़कना, यदेकस्यैव वस्तुनः-चन्द्रा० ५।७, ९ । सम० .--उपमा दुर्वचन कहना, अपमानित करना 4. भूसी अलग करना एक अलंकार जिसमें उपमेय और उपमान की तुलना 5. आरोप का निराकरण ।
इस दृष्टि से की जाती है कि उनके समान कोई और उपमा [ उप+मा+-अङ-टाप] 1. समरूपता, समता वस्तु है हो नहीं,-विपर्यास उपमेयोपमानयोः ---काव्य०
साम्य-स्फुटोपमं भूतिसितेन शम्भुना-- शि० ११४, १० । १७।६९, 2. (अलं० शा०) एक दूसरे से भिन्न दो उपयन्त (पुं०) [ उप+यम्+तच ] पति - अयोपयन्तारपदार्थों की तुलना, तुल्यता, तुलना--साधर्म्यमुपमा मलं समाधिना , कु० --५।४५, रघु० ७१, शि० भेदे--काव्य० १०, सादृश्यं संदरं वाक्यार्थोपस्कारक- १०।४५ । मुपमालंकृतिः-रस०, या-उपमा यत्र सादृश्यलक्ष्मी- उपयन्त्रम [ प्रा० स० ] चीरफाड़ का एक छोटा उगकरण । रुल्लमति द्वयोः, हंसीव कृष्ण ते कोतिः स्वर्गङ्गामवगाहते। उपयमः[ उप+यम्+अप् | 1. विवाह, नियाह करना चन्द्रा०, ५।३, उपमा कालिदासस्य---सुभा० 3. तुलना - कन्या त्वजातोषयमा सलज्जा नवयौवना सा० का मापदण्ड-उपमान, यथा वातो निवातस्थो मेंगते द. 2. प्रतिबंध। सोपमा स्मता--भग० ६।१९ दे० 'द्रव्य नी०, बहुधा उपयमनम् [उप-यम् +ल्यट 1 वियाह करना समासान्त में 'की भांति' 'मिलते-जलते'- --बब न 2. प्रतिबंध लगाना 3. अग्नि को स्थापित करना । बधोपमः-रघ. ११४७, इसी प्रकार अमरोपम, अनुपम उपयष्ट्र (पुं०) [ उप+यज+तुच ] यज्ञ के सोलह आदि 4. समानता (चित्र, मूर्ति आदि की)। सम० ऋत्विजों में से 'उपयज' का पाठ करने वाला प्रति--द्रव्यम् तुलना के लिए प्रयक्त किये जाने वाला प्रस्थाता नामक ऋत्विक् ।
पदार्थ-सर्वोपमाद्रव्यसमुच्चयेन-कु० ११४९। उपयाचक (वि०) [ उप+याच् ।- वुल ] मांगने वाला, उपमातृ (स्त्री०) [प्रा० स०] 1. दूसरी माता, दूध पिलाने प्रार्थी, विवाहार्थी, भिक्षुक ।
वालो धाय 2. निकट संबंधिनी स्त्री---मातष्बसा मात्- | उपयाचनम् | उप+याच-+ल्यूट ] निवेदन करना, मांगना, लानी पितृव्यस्त्री पितष्वसा, श्वश्रः पूर्वजपत्नी च प्रार्थना करने के लिए किसी के निकट जाना। मातृतुल्याः प्रकीर्तिताः-शब्द० ।
उपयाचित (भू० क. कृ०)[ उप-।-याच्+क्त ] जिससे उपमानम् [उप+मा+ल्यट] 1. तुलना, समरूपता-जाता- मांगा गया हो, या प्रार्थना की गई हो,---तम् 1. निवेदन
स्तदूर्वोरुपमानवाद्याः-कु० ११३६ 2. तुलना का माप- या प्रार्थना 2. मनौती, अपनी अभीष्टसिद्धि हो जाने दण्ड जिससे किसी की तुलना की जाय (विप० उपमेय)
पर देवता को प्रसन्न करने के लिए प्रतिज्ञात भेंट उपमा के चार अपेक्षित गणों में से एक---उपमानम- (चाहे वह कोई पशु हो या गनुप्य).. निक्षेपी म्रियते भूद्विलासिनाम्----कु०४।५, उपमानस्यापि सखे प्रत्युप- तुभ्यं प्रदास्याम्युपयाचितम् पंच० १२१४. अद्य मया मानं वपुस्तस्या:-विक्रम० २१३, शि २०१४९ । भगवत्याः करालायाः प्रागुपयाचितं स्त्रीरलमपहर्तव्यम्
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