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को प्रकट करता है जो 'अभागा' या 'कंबख्त' आदि शब्दों | से पुकारा जा सकता है, नगरखेदम् अभागा नगर ) 'खेट' के लिए देखें ख के नीचे ।
खेटितानः, -लः [ खिट् + इन् खेटि, खेटि: तानोऽस्य, तालोऽस्य वा ] वैतालिक, स्तुतिपाठक जो गृहस्वामी को गा वजा कर जगाता है ।
खेटिन् (पुं० ) [ खिट् | गिनि ] दुराचारी, दुश्चरित्र । खेदः [ विद्+घञ् ] 1. अवसाद, आलस्य, उदासी
2. थकान, श्रान्ति - अलसलुलित मुग्धान्यध्वसंजातखेदात् -- उत्तर० ११२४, अध्यखेद नयेथाः मेघ० ३२, रघु० १८/४५ ३. पीडा, यन्त्रणा - अमरु ३ 4. दुःख, शोक --- गुरुः खेदं खिन्न मदि भजति नाद्यापि कुरुपु वेणी ० १।११, अमरु ५३ |
खेयम् [ खत्+पप्, इकारादेशः ] खाई, परिखा, यः पुल । खेल (स्वा० पर ० - खेलति खेलित ) 1. हिलाना, इधरउधर आना जाना 2. कांपना 3. खेलना । खेल (त्रि० ) [ खेल् + अच् | खिलाड़ी, - रघु० ४।२२, वि० ४।१६ ४३ । खेलनम् [ ल् + ल्युट् ]
रसिया, क्रीडापूर्ण
1. हिलाना 2. खेल, मनोरंजन
3. तमाशाः ।
खेला | खेल | अ | टप् ] क्रीडा, खेल । खेल: (स्त्री० ) [ से आकाशे अलति पर्याप्नोति से ! अल्+इन् ] 1. क्रीडा, खेल 2. तीर । खोटि : (स्त्री० ) [ खोट् +इन् ] चालाक और चतुर स्त्री । खोड (वि० ) [ खोड + अच् ] विकलांग, लंगड़ा, पंगु । खोर (क) (वि० ) [ खोर् (ल्) + अच् ] पंगु, लंगड़ा । खोलकः [ खोल + कन् ] 1. पुरवा 2. बांबी 3. सुपारी का छिलका 4. डेगची ।
खोलिः [ खोल्+इन् । तरकस | गया (अदा० पर० ( आर्धधातुक लकारों में आ० भी )
-- ख्याति ख्यात ) कहना, घोषणा करना, समाचार देना (संप्र० के साथ ) - कर्म० ख्यायते 1 कहलाना -भट्टि० ६१९७२ प्रसिद्ध या परिचित होना, प्रेर० - ख्यापयति - ते 1. ज्ञात कराना, प्रकथन करना - मनु० ७/२०१ 2 कहना, घोषणा करना, वर्णन
ग
ग (वि० ) [+] ( केवल समास के अन्त में प्रयुक्त ) जो जाता है, जाने वाला, गतिमान् होने वाला, ठहरने वाला शेष रहने वाला, मैथुन करने वाला, 1. गन्धर्व 2. गणेश का विशेषण 3. दीर्घ मात्रा ('गुरु'
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करना -- भर्तृ० २।५९, मनु० ११९९ 3. स्तुति करना, प्रख्यात करना, प्रशंसा करना । अभि-, ( कर्म ० ) ज्ञात होना, प्रेर० घोषणा करना, प्रकथन करना, आ--- 1. कहना, घोषणा करना, समाचार देना ( प्रायः संप्र० के साथ), - ते रामाय वधोपायमाचख्युविबुधद्विषः -- रघु० १५५, ४१, ७१, ९३ १२/४२, ९१; भग० ११/३१, १८६३, ( कभी कभी संबं० के साथ-आख्याहि भद्रे प्रियदर्शनस्य ) पंच० ४।१५ 2. घोषणा करना, व्यक्त करना 3. पुकारना, नाम लेना- रघु० १०/५१, मनु० ४/६ परि-, सुपरिचित होना, परिसम्-गिनती करना, प्रसुपरिचित होना, प्रत्या- 1. मुकर जाना 2. इंकार करना, मना करना अस्वीकार करना 3. मना करना, प्रतिषेध करना 4. वर्जित करना 5. पोछे छोड़ देना, आगे बढ़ जाना - मालवि० ३।५, वि सुपरिचित या प्रसिद्ध होना, व्या-, 1. कहना, समाचार देना, घोषणा करना- भट्टि० १४।११३ 2. व्याख्या करना, वर्णन करना रावणस्यापि ते जन्म व्याख्यास्यामि
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महा० 3. नाम लेना, पुकारना - विद्वद्वन्दैवणावाणी व्याख्याता सा विद्युन्माला - श्रुत० १५, सम्- गिनना, गणना करना, हिसाब लगाना, जोड़ना तावन्त्येव च तत्त्वानि सास्यैः सख्यायन्ते शारी० ।
स्यात (भू० क० कृ० ) [ ख्या । क्त ] 1. ज्ञात रघु० १८६ 2. नाम लिया गया, पुकारा गया 3. कहा गया 4. विश्रुत, प्रसिद्ध, बदनाम | सम० – गर्हण ( वि० ) कुख्यात, दुष्ट, बदनाम | ख्यातिः [ रूपा | क्तिन् ] विश्रुति प्रसिद्धि, यश, कीर्ति, प्रतिष्ठा - मनु० १२।३६, पंच० १३७१ 2 नाम, शीर्षक, अभिधान 3. वर्णन 4. प्रशंसा 5. ( दर्शन० में ) ज्ञान, उपयुक्त पद द्वारा वस्तुओं का विवेचन करने की शक्ति - शि० ४।५५ ।
ख्यापनम् [ख्वा+णिच् + ल्युट् ] 1. घोषणा करना, (रहस्य
का) उद्घाटन करना 2. अपराध स्वीकार करना, मान लेना, सार्वजनिक घोषणा करना- मनु० ११/२२७ 3. विख्यात करना, प्रसिद्ध करना ।
शब्द का संक्षिप्त रूप, छन्द: शास्त्र में ), गम्
गायन ।
गगनम --णम् [ गच्छन्त्यस्मिन् गम् + ल्युट् ग आदेशः ] ( कुछ लोग 'गगण' को अशुद्ध समझते हैं जैसा कि एक
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